एक अंतहीन तलाश की अभिव्यक्ति
रतन चंद ‘रत्नेश’
एक यहूदी लड़की डोरा ब्रूडर की गुमशुदगी की खबर 31 दिसंबर, 1941 को पेरिस के एक समाचारपत्र में प्रकाशित होती है जिसे उसके माता-पिता ने अपने पते के साथ सूचित किया था। सुप्रसिद्ध फ्रांसिसी कथाकार पैट्रिक मोदिआनो एक उपन्यास उसी युवती के नाम से लिखते हैं जिसका हिंदी अनुवाद युगांक धीर ने ‘एक यहूदी लड़की की तलाश’ नाम से किया है और जान पड़ता है कि यह पूर्णतः सत्य घटना पर आधारित है। लेखक की नजर वर्षों बाद उस समाचार पर पड़ती है और उस लड़की डोरा के बारे में जानने के लिए 1996 में अपनी खोजबीन शुरू करते हैं। इस क्रम में विभिन्न स्थानों का विवरण और उनके बदलते रूप-स्वरूप का बारीकी से जिक्र हुआ है।
अंततः यह उजागर होता है कि पंद्रह साल की डोरा जर्मनों के कब्जे में थी और वह बंदी शिविर में भेज दी गई थी। उसे अन्य यहूदियों के साथ नाजियों ने मार डालने की योजना बना रखी थी परंतु वह कैसे बची और किस तरह अपने मां के पास वापस पहुंची, इस बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता है। 9 मई, 1940 के बर्फीले मौसम में अचानक डोरा अपने स्कूल से गायब हो जाती है जबकि स्कूल के रजिस्टर में 14 दिसंबर, 1941 को वहां से भागने की बात दर्ज होती है। 17 अप्रैल, 1942 को डोरा अपनी मां के पास लौटती है और फिर से कुछ दिनों के लिए गायब हो जाती है।
दरअसल इस उपन्यास में नाजियों द्वारा यहूदियों पर किए गए जुर्म का किस्सा बयान हुआ है। डोरा एक स्वतंत्र और विद्रोही प्रवृत्ति की लड़की होती है और ऐसे यहूदी लोगों को किस तरह नाजी यातनाएं देते थे, इसकी पृष्ठभूमि में यही बताने की कोशिश हुई है।
पुस्तक : एक यहूदी लड़की की तलाश लेखक : पैट्रिक मोदिआनो अनुवाद ः युगांक धीर प्रकाशक ः राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 158 मूल्य ः रु. 199.