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रिसते जख्मों के निहितार्थों की पड़ताल

10:42 AM May 26, 2024 IST
रिसते जख्मों के निहितार्थों की पड़ताल
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डॉ. अजय शर्मा
कश्मीर का नाम मन में जिज्ञासा पैदा करने के लिए काफी है। अगर कश्मीर का रिसता घाव के बारे में बात हो तो पढ़ने को भी मन करता है। ऐसी ही एक किताब लेकर डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री आए हैं जो कश्मीर को सही-सही समझाने में कामयाब रहे हैं।
किताब हमारे मन में उठे हुए कई सवालों के जवाब सहज रूप से देती है और हमारे अंदर प्रश्न भी पैदा करती है। किताब खत्म होते-होते हमारे सभी प्रश्नों का उत्तर सहज रूप से दे जाती है। इस किताब में कश्मीर केवल नाम भर का नहीं है, जब किताब पढ़ते हैं तो आंखों के सामने कश्मीर जैसे कई शहर और देश घूमने लगते हैं जो हमें सोचने पर मजबूर करते हैं। जाहिर-सी बात है हर देश में हरेक का अपना-अपना कश्मीर है जिसकी अपनी-अपनी समस्याएं हैं।
पुस्तक कश्मीर के माध्यम से पूरी दुनिया का पोस्टमार्टम करने में सफल रही है। किताब पढ़ते हुए तो लगता है कि सारी किताब ही मुख्य बिंदुओं से भरी पड़ी है। किताब के मुख्य बिंदु जो प्रत्यक्ष रूप से हमारे सामने आता है वह कश्मीर में या पूरे मुल्क में आस्था व विश्वास के अंतर्विरोध से उपजे टकराव का अक्स।
यहां पर इस बात को लेकर एक लंबी-चौड़ी बहस हो सकती है। कई-कई सेमिनार इस बात पर किए जा सकते हैं। जिस तरह से सूत्र दिए गए हैं उनसे यही पता चलता है कि राष्ट्रवादी मुस्लिम कभी चाहते नहीं थे कि बाहरी तत्व इस धरती पर आएं। इससे भी एक विसंगति यह पैदा हुई कि जो यहां सदियों से रहते थे उनके हकों को ताक पर रखकर उनकी अनदेखी की गई और उन्हें सिसकने पर मजबूर होना पड़ा।
मूल रहवासियों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होने लगा, क्योंकि जो विदेशी यानी जो लोग अरब, तुर्की या फिर दूसरे मुल्कों से आए, देसी मुसलमानों से अन्याय करते थे। इस व्यवहार के चलते देसी और विदेशी समान धर्मियों के बीच ऐसी खाई पड़ी जो आज तक नहीं भरी। उसका नतीजा सामने है हर समय इस खाई से निकले जख्म गाहे-बगाहे रिसते रहते हैं।
अन्याय की फेहरिस्त काफी लंबी है। इस बात को समझने के लिए हमें उनको नहीं भूलना चाहिए क्योंकि जिन्होंने विदेशी मूल के मुसलमानों यानी अशरफ समाज का भारतीयकरण करना चाहा। यह किताब उनके जुल्मों से होते हुए कश्मीर घाटी के मसले तक धीरे-धीरे आती है और बताती है कि कैसे कश्मीर घाटी में आज भी समानधर्मी दो वर्गों में बंटे हुए हैं। किताब से पता चलता है कि कैसे सेना पर पत्थरबाजी का काम होता रहा और देश की राजनीति में ये लोग कैसे अपनी भूमिका अदा करते हैं।

पुस्तक : कश्मीर का रिसता घाव लेखक : डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 280 मूल्य : रु. 400.

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