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एक्सप्लेनर: पंजाब-हरियाणा जल विवाद, क्या है मामला और इसके पीछे की पूरी कहानी

09:47 AM May 01, 2025 IST
एक्सप्लेनर  पंजाब हरियाणा जल विवाद  क्या है मामला और इसके पीछे की पूरी कहानी
सांकेतिक फाइल फोटो।
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रुचिका खन्ना/ट्रिब्यून न्यूज सर्विस, चंडीगढ़, 1 मई

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Punjab-Haryana water row: सप्ताह की शुरुआत में हरियाणा सरकार ने भाखड़ा डैम से 8,500 क्यूसेक पानी की मांग कर हलचल मचा दी। सरकार का दावा है कि राज्य के पास घरेलू उपयोग के लिए भी पानी नहीं बचा है। वहीं, पंजाब ने इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया है और कहा है कि उसके पास अतिरिक्त पानी नहीं है। जब दोनों राज्यों के बीच टकराव बढ़ा, तो भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) ने केंद्रीय विद्युत मंत्रालय को सूचित किया कि पंजाब अतिरिक्त पानी देने को तैयार नहीं है।

पंजाब की दलील क्या है?

पंजाब का कहना है कि हरियाणा 21 सितंबर 2024 से 20 मई 2025 तक की 'डिप्लीशन अवधि' में पहले ही अपना निर्धारित हिस्सा उपयोग कर चुका है। इसके अलावा, पोंग और रंजीत सागर जैसे दो बड़े बांधों में जलस्तर औसत से काफी नीचे है। इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन (कम वर्षा व हिमपात) और पोंग डैम की टरबाइनों का सालाना रखरखाव है।

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भाखड़ा डैम में जरूर 19 फीट अतिरिक्त पानी है, परंतु पंजाब का कहना है कि इसे धान की फसल के लिए जून अंत तक संचित रखना आवश्यक है।

हरियाणा की मांग

हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने 27 अप्रैल को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को पत्र लिखकर दावा किया कि पंजाब सरकार 23 अप्रैल को BBMB द्वारा लिए गए फैसले का सम्मान नहीं कर रही है, जिसमें हरियाणा को अतिरिक्त 4,500 क्यूसेक पानी देने की अनुमति दी गई थी। यह मांग 4 अप्रैल को उन्हें दिए गए 4,000 क्यूसेक से अलग है।

पंजाब सरकार ने 28 अप्रैल को बीबीएमबी की बैठक में हरियाणा को अतिरिक्त पानी आवंटित करने का विरोध किया। सीएम भगवंत मान ने एक वीडियो जारी कर कहा कि हरियाणा पहले ही 2.987 MAF के निर्धारित हिस्से के मुकाबले 3.110 MAF यानी 103% पानी उपयोग कर चुका है।

हरियाणा की चेतावनी

मुख्यमंत्री सैनी ने कहा कि यदि अब पानी नहीं छोड़ा गया, तो मानसून में पूर्वी नदियों से अतिरिक्त पानी पाकिस्तान की ओर चला जाएगा, जो इंडस वाटर ट्रीटी (सिंधु जल संधि) के निलंबन के बाद नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि पानी की कमी से हिसार, सिरसा और फतेहाबाद प्रभावित होंगे।

पानी बंटवारे का ढांचा

1960 की इंडस जल संधि के तहत सतलुज, रावी और ब्यास का जल भारत को मिला। 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद भाखड़ा प्रबंधन बोर्ड (बीएमबी) का गठन किया गया। भाखड़ा-नंगल परियोजना का प्रशासन और रखरखाव 1967 में इसे सौंप दिया गया। बाद में, जब ब्यास परियोजना का काम पूरा हो गया, तो ब्यास निर्माण बोर्ड को बीएमबी को सौंप दिया गया, जिसके बाद 1976 में इसका नाम बदलकर बीबीएमबी कर दिया गया। बोर्ड पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और चंडीगढ़ को पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करता है। हर साल, राज्यों को पानी का आवंटन दो बार तय किया जाता है। इसमें कमी अवधि (डिप्लीशन पीरियड) 21 सितंबर से 20 मई के बीच है, जबकि भरने की अवधि (फिलिंग पीरियड) 21 मई से 20 सितंबर के बीच है।

पंजाब की मजबूरी
जल विवाद के राजनीतिक पक्ष के अलावा, पंजाब गहराते भूजल संकट से जूझ रहा है। इस कारण राज्य ने नहरों से सिंचाई पर बल देना शुरू किया है। इसके लिए पंजाब सरकार ने 4,000 करोड़ रुपये खर्च कर 79 छोड़ी गई नहरों और 1,600 किमी लंबे 'खालों' को पुनर्जीवित किया है। इससे नहर जल उपयोग में 12–13% की वृद्धि हुई है। पंजाब का तर्क है कि यदि अब और पानी छोड़ा गया, तो 10 जून के बाद गुरदासपुर, पठानकोट, अमृतसर और तरनतारन में धान की फसल प्रभावित होगी।

आगे क्या?

दोनों राज्यों को आपसी बातचीत से समाधान निकालना होगा। यदि ऐसा नहीं हो पाया, तो केंद्रीय विद्युत मंत्रालय हस्तक्षेप कर निर्देश जारी कर सकता है, जिससे कानूनी प्रक्रिया की संभावना भी बन सकती है।

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