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उल्लुओं बिन जग में सब सून

07:39 AM Aug 11, 2021 IST
उल्लुओं बिन जग में सब सून
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फारूक आफरीदी

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खबर सुनने में आ रही है भाई साहब कि हमारे देश के उल्लू अन्धविश्वासी लोगों के हाथों मारे जा रहे हैं और उनकी तस्करी हो रही है। यह तो गहन चिंता में डालने वाली बात हो गई कि उल्लुओं की चिताएं सजाई जा रही हैं। इस तरह उल्लुओं का सफाया हम किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे। उल्लुओं के कारण तो देश के समझदारों की रोजी-रोटी चल रही है। आप ही बताओ कि यदि इस तरह उनका सफाया हो गया तो उनके नाम पर रोजी रोजगार कमाने वालों का तो खाया-पीया ही बराबर हो जाएगा। सोने का अंडा देने वाली मुर्गी पर ऐसे तो कौन आंच आने देगा भाई साहब!

देश भर में चतुर्दिक फैले हमारे विद्वान, समझदार, गरीबों के तारणहार, सपनों के सौदागर, विकास गंगा के खिवैए सैकड़ों महान जनसेवकों का तो सारा कारोबार ही उल्लुओं पर टिका हुआ है। चुनाव महोत्सव में घर-घर नेता और घर-घर उल्लू का नारा उल्लुओं के कारण ही परवान पर चढ़ता है। उल्लू ही नहीं रहेंगे तो ये दुनिया कैसे चलेगी भाई साहब! ये संसार स्वाहा ना हो जाएगा? फिर विकास का चश्मा किस पर चढ़ाएंगे? कुहनी पर गुड़ लगाकर लोगों को पांच साल तक कैसे नचाएंगे! जीत की प्रत्यंचा किस पर चढ़ेगी! छम-छम करती लक्ष्मीजी पर सवारी कौन करेगा? कैसे कानून का डर इस कान से डाल उस कान से निकालेंगे! उल्लू ही नहीं रहे तो समाज और देश श्रीहीन, लक्ष्मीविहीन और विकासहीन न हो जाएगा! देश की नैया भंवर में जाएगी। आश्वासनों की रबड़ी पिलाने वालों की मैया ही मर जाएगी साहब!

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उल्लुओं के लुप्त होने से केवल हमारे जनप्रतिनिधि ही रुआंसे नहीं होंगे बल्कि उनके मातहत, लक्ष्मीजी को मजबूत रस्सी से बांधने के सौ रास्ते बताने वाली, जनता को खून के आंसू रुलाने वाली, जनता के रक्त की अंतिम बूंद तक निचोड़ने वाली, रीढ़हीन, कमजोर नस्लों पर भौंकने वाली जमात भी उल्लुओं के अभाव में सूखकर कांटा न हो जाएगी।

यूं इस जमात की चमड़ी भले ही गेंडे जैसी एवं इन्सल्ट प्रूफ होती है लेकिन कोई अनहोनी हो जाए तो वह कैसे बर्दाश्त कर पाएगी भाई साहब! ख़ासतौर से यही वह जमात है, जिसे पल-पल उल्लुओं की जरूरत पड़ती है। हर तलुआ-चाट अफसर को एकाध उल्लू तो हर हालत में चाहिए अन्यथा अपने कमाऊ नेताओं और अंधी कमाई की आदी अर्धांगिनी की डांट के बाद सातवें आसमान पर चढ़ा पारा उल्लू जैसों के बिना वे बेचारे आखिर किस जीव पर उतारेंगे! संकट की इस घड़ी में एक ही करबद्ध और साष्टांग प्रार्थना है कि प्रभु! हमारी रक्षा करो, चाहे गिद्धों को उठा लो लेकिन उल्लुओं की नस्लों को बचा लो अन्यथा हम विलुप्ति के कगार पर पहुंच जाएंगे।

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