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हर किसी को लगे अपने गीत

07:37 AM Aug 26, 2023 IST
हर किसी को लगे अपने गीत
नूतन के साथ गायक मुकेश
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वेद विलास उनियाल

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मुकेश की मधुर गायकी मन को छूती है। उन्होंने जब भी कोई गीत गाया वह सुनने वालों को भाव विभोर करता रहा। वजह यही थी कि मुकेश की आवाज सुकून देती रही। भारतीय फिल्म संगीत के सुनहरे दौर में चर्चित के साथ ही कुछ कम चर्चित विलक्षण संगीतकारों के साज में मुकेश के अद्भुत गीत सुनने को मिले। आज भी उन गीतों को लोग रह-रहकर सुनते हैं। मुकेश के गायन में जमाने भर का दर्द समाया था। उनके गीत हर सुनने वाले को अपने गीत लगते थे।

कभी कभी मेरे दिल में...

मुकेश चालीस के दशक में भारतीय फिल्म संगीत से जुड़े और यह सफर सातवें दशक के उस मोड़ तक चलता रहा जब जमाना उनसे कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है और चंचल शीतल निर्मल कोमल संगीत की देवी स्वर सजनी जैसे गीत सुन रहा था। भारतीय फिल्म संगीत में संगीतकार शंकर जयकिशन ने अपने भव्य आकेस्ट्रा के साथ फिल्म संगीत को नई दिशा दी। असल में मुंबई में कई विलक्षण संगीतकार अपने अभिनव प्रयोग के साथ भारतीय फिल्मों को संगीत से सजाने लगे थे। यह वह दौर था जब गायकी के आकाश में कुंदन लाल सहगल का नाम चमक रहा था। इसके बाद शंकर जयकिशन, नौशाद, मदन मोहन, कल्याणजी आनंदजी, लक्ष्मी कांत प्यारे लाल व खैयाम जैसे साधकों के साज मानो किसी दिव्य आवाज की प्रतीक्षा कर रहे थे।

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आ लौट के आजा...

मुकेश की आवाज की चाहत दान सिंह सरदार मलिक, इकबाल कुरेशी, एसएन त्रिपाठी जैसे विलक्षण संगीतकारों को भी थी। मुकेश की आवाज में जिक्र होता है जब कयामत का, वो तेरे प्यार का गम , जैसा गीत सुनने को मिलता है तो दान सिंह के संगीत के स्तर का अहसास होता है। फिल्म रानी रूपमति के गीत ‘आ लौट के आजा मेरे मीत’ के लिए मुकेश के ही स्वर चाहिए थे।

धरोहर हैं मुकेश-लता के युगल गीत

जब बात बेहद लोकप्रिय संगीतकारों की आती है तो शंकर जयकिशन के संगीत में तो मुकेश ने जो गाया वो फिर जमाने का गीत हो गया। बरसात , आवारा, श्री चार सौ बीस, हरियाली और रास्ता जैसी फिल्में, शंकर जयकिशन के संगीत और शैलेंद्र हसरत जयपुरी के गीत और मुकेश-लता की गायकी लोगों को दशकों तक मंत्रमुग्ध करती रही। शो मैन राजकपूर अपनी फिल्मों को जिस फ्रेम में लाते थे उसमें उनके लिए मुकेश की आवाज अनमोल उपहार की तरह थी। वे पर्दे पर राजकपूर की आवाज बन गए। मुकेश-लता के युगल गीत भारतीय फिल्म संगीत ही नहीं विश्व संगीत की धरोहर है। बेशक मुकेश के गीतों की चर्चा आरके बैनर के साथ जुड़े गीत-संगीत से ज्यादा होती है। लेकिन मुकेश ने सबसे ज्यादा गीत कल्याणजी आनंदजी के संगीत में गाए हैं- चंदन सा बदन, आवाज न दो, चांद आहें भरेगा, कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे जैसे कई सुंदर गीत मुकेश ने गाए हैं जो दशकों बाद भी लोगों के मन में बसे हैं।

गाए जा गीत मिलन के...

मुकेश की गायकी को सहगल के प्रभाव से नौशाद ने ही निकाला था। नौशाद के साजों बांसुरी, वायलेन और सितार में मुकेश ने ‘गाए जा गीत मिलन के’ गाया तो उन्हें गायकी के अंदाज की थाह मिल गई। उसी संगीत में मुकेश ने तू कहे अगर, ये मेरा दिवानापन है जैसे यादगार गीत गाए। रोशन का संगीत और मुकेश की आवाज में जमाने ने खूबसूरत तराने सुने। ब़डे अरमान से रखा है बलम, गुजरा जमाना बचपन का जैसे गीत फिल्म संगीत के सुनहरे दौर की यादों के साथ हैं। खैयाम के संगीत के लिए भी मुकेश की आवाज बेशकीमती थी। ‘वह सुबह कभी तो आएगी’ से लेकर ‘कभी कभी मेरे दिल में आता है’ का यह सफर सारंगी और सितार के साथ जुड़ती मधुर आवाज का एक मिलन है। ऐसे ही लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने मुकेश के गीतों के लिए बहुत तल्लीनता से धुनें तैयार की। ‘इक प्यार का नगमा है’ व ‘सावन का महीना’ गीत मुकेश-लता की आवाज में सजे हैं।
एसडी का संगीत जब भी मुकेश के गीतों के साथ आया तो सुरीली बरसात कर गया। ‘चल री सजनी’ हो या फिर वंदनी का गीत ‘ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना’, ऐसे गीत मुकेश की याद दिलाते हैं। वहीं आरडी की धुनों में भी नैनीताल में राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर पर फिल्माया ‘जिस गली में तेरा घर न हो बालमा’ की गूंज अलग प्रभाव लिए रही।

पापा सबकी यादों में

विख्यात गायक मुकेश के बेटे नितिन मुकेश ने भी पिता की सुरों की राह पर चलकर भारतीय फिल्म संगीत में कई अच्छे गीत गाए हैं। मुकेश ने कभी उनसे कहा था गीत अगर पेशेवर तौर पर अपनाना है तो यह बहुत कठिन साधना है। नितिन ने फिल्म संगीत में गायकी की राह चुनी। आज जब मुकेश जी को याद किया जा रहा है तब नितिन मुकेश से उस दौर को याद करना एक अच्छे अनुभव से गुजरना है।
नितिन जी , मुकेश जैसे कलाकार को उनके फिल्म संगीत को योगदान के लिए पूरा देश याद कर रहा है। आपके पास तो यादों का अंबार होगा?
मुकेश जी गायन के लिए समर्पित थे। बहुत आध्यात्मिक भी थे। बहुत सुबह उठ कर हारमोनियम में रियाज करते थे। नए गीत की रिकार्डिंग से पहले बहुत रियाज करते थे। मेरा सौभाग्य था कि मैं उनका बेटा हूं। इतने समय के बाद भी लोग उनके गीतों को सुन रहे हैं। गीतों के जरिये पापा सबकी यादों में हैं।
हर गायक की अपनी एक शैली होती है। मुकेश की गायकी का सबसे बड़ा असर क्या था?
उनकी आवाज में जो दर्द था उसे लेकर लोग बात करते हैं। लेकिन मैं कहूं तो मुकेशजी की गायकी में एक सच्चाई थी। वो जिस भी गीत को गाते थे वो मन में उतरता था। हर संगीतकार के लिए उन्होंने गाया। जो भी गीत गाया बहुत डूबकर गाया।
आप मुकेशजी के साथ अक्सर कार्यक्रमों में देश-विदेश जाया करते थे। उनके निधन के बाद आपने उनके गीतों को लेकर कई कार्यक्रम किए। उस दौर में और आज के समय में एक लंबा वक्त बीता है। क्या कुछ महसूस करते हैं?
जब मुकेश जी अपने कार्य़क्रम के लिए देश-विदेश में जाते थे तो उस समय की फिल्मों के हिट गीतों को तो सुनाते ही थे, पुराने गीतों की फरमाइश भी होती थी। कार्यक्रम में बहुत लोग उमड़ते थे। मुकेशजी दूसरे गायक-गायिकाओं के साथ भी अपने गीतों को गाते थे।
मुकेशजी फिल्म संगीत में आने से पहले कुंदन लाल सहगल के बहुत बड़े प्रशंसक थे। वे जब फिल्म संगीत में स्थापित हुए तो उस दौर में कई विलक्षण गायक-गायिका आए। वे किस गायक के सबसे ज्यादा प्रशंसक थे?
उस समय सब लोग एक-दूसरे के हुनर की प्रशंसा करते थे। मैंने हमेशा पापा से अपने समकालीन गायकों की प्रशंसा करते हुए सुना। वहीं रफी जी हों या किशोर कुमार, कोई गीत सुनते फिर उन्हें फोन करते थे कि कितना अच्छा गाया। काश मैं इस गीत को गाता। हां, पापा जब भी लताजी का कोई गीत सुनते थे तो अपनी आंख बंद कर लेते।
कहा जाता है कि मुकेशजी आत्मकथा लिखना चाहते थे। लेकिन उनके मन की यह बात अधूरी रही?
बेशक वो अपनी आत्मकथा तो नहीं लिख पाए लेकिन वो अमेरिका जाने से पहले रामचरित मानस के सातों खंड का गायन पूरा कर चुके थे। और सत्यम शिवम सुंदरम के आखरी गीत की रिकार्डिंग भी कर चुके थे। आज रोज सुबह घर में मुकेशजी के गाए रामचरित मानस का स्वर गूंजता है। मुकेशजी ने कला के जिस स्तर को छुआ है, वह हमारे लिए प्रेरणा है।

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