रोजमर्रा के जीवन चित्र
केवल तिवारी
दविंदर पटियालवी की लघु कहानियों के संग्रह ‘उड़ान’ के विषय बेहद जमीनी हैं। रोजमर्रा के जीवन में हम-आप जिन-जिन चीजों से रू-ब-रू होते हैं, वे सब इनकी कहानियों के विषय वस्तु हैं। इसीलिए पाठकों को अपने ही इर्द-गिर्द इनका कथानक घूमता सा महसूस होता है।
दविंदर मूलत: पंजाबी भाषा के लेखक हैं और लघु कथा से संबंधित संस्थान में भी लंबे समय से सक्रिय हैं। आलोच्य पुस्तक ‘उड़ान’ लघु कथाओं का संग्रह है। इसके विषय आमजन के जीवन से जुड़े हैं, इसीलिए पढ़ते वक्त कल्पनाओं का चित्रण अपना सा लगता है। लेकिन कथानक और विषय-वस्तु की साहित्यिक खूबसूरती कई बार लंबे वाक्यों में छिपती-सी लगने लगती है। ये लंबे वाक्य अनुवाद के कारण हैं या किसी अन्य वजह से, परंतु कहीं-कहीं बोझिलता ला देते हैं। पढ़ने का ‘फ्लो’ थोड़ा रुक-सा जाता है।
वैसे यह भी माना जाता है कि लघु कहानी का अंत कभी-कभी पाठक के विवेक पर भी छोड़ देना चाहिए यानी कहानी के अर्थ समझते हुए उसे पूर्णता के ‘द एंड’ पर पढ़ने वाला ले जाये तो बेहतर। उदाहरण के लिए ‘स्वार्थ सिद्धि’ कहानी का अंत अगर इस तरह होता तो बेहतर होता, ‘…अमन चैन कमेटी वाले सपरिवार कहीं दूसरे शहर चले गये थे ताकि जहां अमन-चैन हो वहां बैठक कर सकें।’ वैसे लेखक की अपनी शैली होती है।
पुस्तक : उड़ान (लघु कथाएं) लेखक : दविंदर पटियालवी प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर पृष्ठ : 80 मूल्य : रु. 120.