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रोजमर्रा का खाना ही बनेगा खजाना पोषण का

07:13 AM Sep 01, 2024 IST

नरेंद्र शर्मा
खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की साल 2022-23 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 19.44 करोड़ लोग यानी जनसंख्या का करीब 14.5 फीसदी कुपोषित थे। भारत में कुपोषण की पुष्टि वैश्विक भुखमरी सूचकांक भी करता है जिसकी साल 2022 की रिपोर्ट में भारत 121 देशों में से 107वें स्थान पर था। वहीं भारत में बच्चों में कुपोषण की दर दुनिया में सबसे ज्यादा है। कम वज़न वाले बच्चों के मामले में भारत दुनिया में पहले स्थान पर है।
गौरतलब है कि भारत में लगभग 74 फीसदी आबादी स्वस्थ आहार ग्रहण करने में असमर्थ है, जबकि 39 फीसदी तो पर्याप्त पोषक तत्व प्राप्त करने में भी असमर्थ हैं। बहुत से लोगों की बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं जैसे टीकाकरण, प्रसवपूर्व देखभाल या संक्रमण के उपचार तक पहुंच नहीं है। इससे बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, जो कुपोषण को बद से बदतर बना सकता है। दरअसल हमें यहीं पर बायोफ़ोर्टिफ़ाइड फ़सलों का महत्व पता चलता है।

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पैदावार और पोषक तत्वों में वृद्धि

वास्तव में बायोफ़ोर्टिफ़ाइड वे फ़सलें होती हैं,जिन्हें उन्नत जैव तकनीक द्वारा पोषक तत्वों से समृद्ध किया जाता है। इन पारंपरिक फ़सलों में विटामिन, मिनरल्स, प्रोटीन और स्वास्थ्यकारी वसा की मात्रा जैव तकनीक के जरिये बढ़ाई जाती है। क्योंकि जहां इन बायोफ़ोर्टिफ़ाइड फ़सलों से कुपोषण की समस्या दूर करने में मदद मिलती है,वहीं ऐसी किस्मों से अनाज की पैदावार भी बढ़ती है। आज भारत में कई बायोफ़ोर्टिफ़ाइड फ़सलें हैं जैसे- आयरन और ज़िंक से भरपूर गेहूं के दाने, प्रोटीन और ज़िंक से लबालब चावल, विटामिन-ए से भरपूर मक्का, विटामिन ए, फ़ोलिक एसिड और ज्यादा आयरन वाला गोल्डन राइस भी बायोफ़ोर्टिफ़ाइड फसल उत्पाद के रूप में उपलब्ध है।

भारत में बायोफ़ोर्टिफ़ाइड अनाजों का विकास

इन फसलों से जहां लोगों का कुपोषण दूर होता है वहीं किसानों को भी इनसे फ़ायदा होता है,क्योंकि ये फ़सलें उच्च उत्पादक गुण वाली होती हैं, इसलिए बाजार में सामान्य फसलों से महंगी बिकती हैं। जहां तक दुनिया की पहली बायोफोर्टिफाइड फसल की बात है, तो यह साल 2007 में युगांडा में उगाई गयी विटामिन ए से भरपूर नारंगी शकरकंद थी। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि भारत में साल 1999 में ही गोल्डन राइस को बायोफोर्टिफाइड फसल के रूप में विकसित कर लिया था,मगर इसे दुनिया के सामने पेश नहीं किया गया था। लेकिन 16 अक्तूबर 2020 को यानी विश्व खाद्य दिवस के मौके पर दुनिया के समक्ष भारत द्वारा विकसित आठ फसलों की 17 बायो-फोर्टिफाइड (जैव-सुदृढ़) किस्में जारी की गयी थीं। इस उपलब्धि को खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ कुपोषण को जड़ से समाप्त करने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता बताया गया था।

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भूख, कुपोषण से जंग में मददगार

भारत की यह बड़ी सफलता इसलिए है; क्योंकि एक तरफ जहां हम दुनिया की सर्वाधिक उपजाऊ भूमि के स्वामी होने के कारण खाद्यान्न उत्पादन के मामले में दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल हैं,वहीं हम दुनिया में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश होने कारण ग्लोबल हंगर इंडेक्स में साल 2022 में 107वें स्थान पर थे यानी पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश से भी नीचे। जाहिर है हमारी भूख और इस कुपोषण से बायोफोर्टिफाइड फसलें ही जंग लड़ सकती हैं। क्योंकि ये बायोफोर्टिफाइड फसलें ही हैं, जो हमारी आबादी की भूख मिटायेंगी। साथ ही विटामिन बी-1, विटामिन बी-6, विटामिन ई, नियासिन, आयरन, जिंक, फोलिक एसिड, विटामिन बी-12 आदि से भरपूर होने के कारण हमें स्वस्थ भी बनायेंगी। क्योंकि स्वस्थ जीवन जीने के लिए पेट में सिर्फ अनाज का पहुंचना ही जरूरी नहीं है, इस अनाज का विभिन्न विटामिनों और मिनरल्स से भी भरपूर होना जरूरी है। इसीलिए देश के कृषि वैज्ञानिकों ने कुपोषण के खिलाफ इस लड़ाई में अहम जिम्मेदारियां संभाल रखी हैं।

मोटे अनाजों की भी बढ़ी ताकत

साल 2023 में इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स मनाया गया। यह इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि मोटे अनाज पोषण की खान होते हैं। इसलिए कुपोषण के खिलाफ जंग में मोटे बायोफोर्टिफिइड मोटे अनाज बहुत महत्वपूर्ण हैं। गौरतलब है कि बाजार में ज्वार और रागी की भी बायोफोर्टिफाइड किस्में मौजूद हैं। इनमें आयरन और जिंक की मात्रा कुदरती मात्रा से बढ़ाई गई है। सामान्य बाजरे में 50 से 60 पीपीएम तक ही आयरन की मात्रा होती है, जबकि बाजरे की बायोफोर्टिफाइड किस्म में 80 पीपीएम तक आयरन होता है। अगर लोग बायोफोर्टिफाइड अनाज का सेवन करते हैं तो उन्हें शरीर में आयरन और कैल्शियम की मात्रा बढ़ाने के लिए अलग से दवाओं की आवश्यकता नहीं पड़ती। हालांकि कुछ लोग संदेह जताते हैं जो गलत है। ये फसलें पूरी तरह से कुदरती होती हैं। दरअसल, इन फसलों के बीज मिट्टी से लक्षित पोषक तत्व ज्यादा ग्रहण कर लेते हैं। इस तरह देखें तो बायोफोर्टिफाइड फसलें पूरी तरह से प्राकृतिक हैं। वहीं इनका सेवन भी सुरक्षित है।

- इ.रि.सें.

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