हर चिकित्सा पद्धति में हीलिंग का अपना तरीका
दरअसल, ऐसे दावों को लेकर कोई क्लीयर स्टडी किसी के पास नहीं है। कैंसर को लेकर अलग-अलग पैथी में अलग प्रतिक्रिया होती है। कुछ फिक्स नहीं कर सकते। इस बात की कैंसर इंस्टीट्यूट भी गारंटी नहीं दे सकते कि इस इलाज से कैंसर पूरी तरह ठीक हो जाएगा। यह संसार वायरस,बैक्टीरिया व कैमिकल्स का है। हर शरीर पर हर पैथी का अलग-अलग प्रभाव होता है। कोई पद्धति इलाज का कारगर दावा नहीं कर सकती। जैसे हर कोई डाक्टर, इंजीनियर व आईएएस नहीं बन सकता। ये कोई रोबोटिक काम नहीं। ये दवा से होगा। ऐसा भी नहीं कि हल्दी खाएगा तो ही ठीक होगा। कई फैक्टर हैं। यदि हम स्प्रिचुअल साइंस से समझने की कोशिश करें तो पाएंगे कि हमारा जो सोचना का तरीका, हमारा व्यवहार है, इस रसायन पर गहरा प्रभाव डालता है। जैसे किसी को अंधेरे से एंग्जाइटी है। इसका कोई उपचार नहीं है। यदि बच्चा पिता की उंगली पकड़कर चलता है तो पिता कहते हैं, अंधेरा कुछ नहीं है मुझ पर भरोसा करो। इस मूवमेंट को किस थैरेपी में रखें? बच्चा कुछ समय बाद एंग्जाइटी से बाहर आ जाता है, कुछ लोग जीवन भर नहीं निकल पाते। कुछ लोग पानी, कुछ आग से व कुछ अकेले चलने से डरते है। सबका अपना तरीका है ट्रीट करने का। कोई यह कहता है कि वह नेचुरोपैथी, योग व आयुर्वेद से ठीक हुआ है तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। विज्ञान स्वीकार करने का विषय है। जब किसी का अनुभव है तो स्वीकार करना चाहिए।
कैंसर से बचाव में सहायक प्राचीन ज्ञान
हर चीज रसायन है। आप हल्दी को मजाक में नहीं ले सकते। हल्दी हो, नीम के पत्ते हों, पुदीना, पानी अपने आप में एक रसायन हैं। शरीर को भोजन कब दें, ये बहुत बड़ा विज्ञान है। इसके हमारी साइंस के पास स्टैंडर्ड नहीं हैं। कब नाश्ता, कब लंच व डिनर करें, यह आधुनिक विज्ञान नहीं बताता। आयुर्वेद बताता है कि जब भूख लगे तब खाना। दस बार लगे तो दस बार खाएं बशर्ते आपका चय-अपचय यानी मेटॉबलिज्म अच्छा है। अगर आप नीम की स्टडी करें तो पाएंगे कि यह एक बड़ा रसायन है, बहुत विशेष रसायन। कोशिश हो पता लगाने की कि उसका उपयोग कैसे करना है जीवन संवर्धन के लिये। वैज्ञानिकों को बताना चाहिए कि इसका मनुष्य के लिये क्या उपयोग होगा।
हितधारकों के हितों में टकराव
निस्संदेह, चिकित्सा बाजार की बड़ी भूमिका होती है। जब आदमी फ्री ट्रीटमेंट कराता है तो जिनका इस क्षेत्र में कारोबार है, स्वाभाविक रूप से उनको टेंशन हो जाएगी। लेकिन हम अभी भी मेडिकल साइंस को खारिज नहीं कर सकते। उसके खिलाफ नहीं बोल सकते। हम रोक नहीं सकते। वो ही ट्रीट करेंगे। हर उपचार पर शरीर अपने हिसाब से प्रतिक्रिया देता है। वो भी ट्रीटमेंट का पार्ट है। दुनिया में कई रोगी बिना मेडिसन के ट्रीट करते हैं।
योग की भूमिका
एक सीमा तक मानते हैं हम कि ट्रीट कर सकते हैं। लेकिन अगर शरीर के अंदर बहुत ज्यादा डेमेज न हुओ हो, वो भी सेलुलर लेवल व टिश्यू लेवल पर। स्थिति विकट है तो रिवर्स करना है। हालांकि, शुरुआती स्तर पर टफ हो जाता है।
दिनचर्या और प्राकृतिक उपचार
हमें अपनी दिनचर्या को बेहतर ढंग से तैयार करना व जीवन में बदलाव लाने होते हैं। ठंडे पानी का स्नान कारगर है। अच्छे पानी का उपयोग हो। तैलीय, तली भुनी चीजें, तीखी चीजें, मसलन मांस आदि से बचा जाए । मेनुपलेटेड भोजन से बचाव हो यानी बर्गर, सैंडविच, चिप्स आदि से परहेज करें। पैकेज्ड फूड से बचें। प्रकृति आपकी मदद करती है। योग में आसन-प्रणायाम के अभ्यास से रक्त प्रवाह को लाभ पहुंचता है।
कौन से आसन करें
बीमार होने पर ज्यादा अभ्यास नहीं हो सकता। सरल आसन कर सकते हैं। वज्र आसन लाभकारी है। फिर अधोमुख श्वानासन करें। धीरे-धीरे पश्चिमोतान आसन, सर्वांगासन आदि बहुत लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। दरअसल, ये हमारी इम्युनिटी को बिल्ड करने वाले हैं। धीरे-धीरे धनुरासन का अभ्यास करना शुरू करें तो राहतकारी है। साथ ही हीलिंग वॉक व सिद्धा वॉक से रिकवरी में मदद करते हैं।