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मुहब्बत की दुकान को आंखें दिखाता हर बाज़ार

06:58 AM Feb 06, 2024 IST

 

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आलोक पुराणिक

बाजार सब जगह है, वहां भी, जहां यह दिखाई नहीं देता। भिखारी, गैंगस्टर और बड़े कारोबारी इलाके बांट लेते हैं।
पॉलिटिक्स के बाजार में इलाके बंटे हुए हैं, वहां के इलाके के बॉस वह, यहां के इलाके के बॉस वह। अपने इलाके में दूसरे को कोई पसंद नहीं करता। राहुल गांधी ममता बनर्जी के इलाके में घुसे, बंगाल में, यह ममता बनर्जी को मंजूर नहीं है। सबकी आफत यही है कि दूसरे के बाजार में एंट्री चाहिए और अपने बाजार में किसी को न घुसने देना है। कस्टमर गिने-चुने हैं, कस्टमर अगर दूसरे दुकानदार के पास चले जायेंगे, तो हम क्या करेंगे, यह खतरा ही सबको खाये जाता है। इसके लिए पुरानी दोस्ती भी भुला दी जाती है। कुछ समय पहले ममता बनर्जी और राहुल गांधी एक फोटो में दिखते थे, अब ममता बनर्जी कह रही है कि हम आपके हैं कौन।
कांग्रेस की हालत इस वक्त मुहब्बत के उस कमजोर दुकानदार जैसी है, दूसरे सारे दुकानदार उसे आंखें दिखा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं हैं। कांग्रेस की हालत उस पुराने जमींदार जैसी दिखाई पड़ रही है, जिसके पुराने कारिंदे भी अब उन्हें आंखें दिखा रहे हैं। वक्त से बड़ा सिकंदर कोई नहीं होता।
सबको अपनी दुकान बचानी है। उद्धव ठाकरे की शिवसेना कह रही है कि हमें 23 सीटें चाहिए महाराष्ट्र में, कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी को भी अपनी दुकान बचानी है। कम पर कोई राजी नहीं हो रहा है। दुकान का सवाल जब आ जाता है, तो फिर विचारधारा वगैरह की बात भुला दी जाती है। बाजार, दुकान ये सब असली आइटम हैं, विचारधारा तो हवाई बात है जी। नीतीश कुमार जिनसे लड़ने की बात कर रहे थे, उन्हीं के साथ आकर मिल गये, जब उन्हें पता चला कि उनकी अपनी दुकान खतरे में है। दुकान बच जायेगी, तो बाकी बाद में सब बचा लेंगे। कौन कहां जा रहा है, यह बात इलेक्शन के बाद तक पता नहीं लगने वाली। कोई किसी का दोस्त नहीं, दुकान ही अपनी सबसे बड़ी दोस्त है।
पाकिस्तान में भी यही हो रहा है कुछ दिनों पहले तक बिलावल भुट्टो की पार्टी और नवाज शरीफ की पार्टी एक ही सरकार में शामिल थे, अब एक-दूसरे के खिलाफ प्रचार कर रही हैं दोनों की पार्टियां। 2024 चुनाव का साल है। हिंदुस्तान, पाकिस्तान, अमेरिका सब जगह चुनाव होने हैं। पाकिस्तान में तो खैर चुनाव फर्जी ही हैं।
खैर जी, सबको दुकान चलानी है। सबकी दुकान एक साथ एक जैसी नहीं चल सकती, किसी की ज्यादा चलेगी, किसी की कम चलेगी, यह उसे मंजूर नहीं है, जिसकी कम चलती है।

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