For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

आज भी पूरा न हुआ आदर्श ग्राम का सपना

07:12 AM Jan 30, 2024 IST
आज भी पूरा न हुआ आदर्श ग्राम का सपना
Advertisement

वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली

Advertisement

शुक्रवार, 24 सितंबर, 2021 वाशिंगटन, अमेरिका स्थित व्हाइट हाउस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वागत करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन का कहना कि एक सप्ताह बाद विश्व महात्मा गांधी का जन्मदिन मनायेगा। उनका अहिंसा व सहिष्णुता के संदेश आज पहले से ज्यादा महत्व के हैं। शांति के प्रसार स्थापना के संदर्भ में गांधी राह की अंतर्राष्ट्रीय आवश्यकता तो है ही, यह तो इस कथन से सिद्ध हो गया है। किन्तु जहां तक भारत का संदर्भ है 2 अक्तूबर, 2019 से 2 अक्तूबर, 2020 के बीच बापू के 150वीं वर्षगांठ के सरकारी आयोजन खुद सरकारों के लिए भी औपचारिकता मात्र थी। आमजन तो उससे अछूता ही रहा। अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रत्युत्तर में प्रधानमंत्री मोदी ने पृथ्वी को ट्रस्ट मानते हुए बापू के ट्रस्टीशिप सिद्धांत का उल्लेख किया कि जंगलों, नदियों, पहाड़ों व खनिज दोहन में सरकारें व माफिया कितनी चोट पहुंचाते हैं। आमजन को न्यायालयों का रुख करना पड़ता है। जीवन को दांव पर लगाना पड़ता है। दरअसल, गांधी का अनुपालन होने लगे तो राजनेताओं को वोट बैंक क्षरित होने के भी जोखिम हैं। राजनेता व सरकारें अपना हित प्रासंगिक गांधी को अप्रासंगिक ही रहने देने में या बनाने में देख रही हैं।
महात्मा गांधी आज भी प्रासंगिक हैं और गांधी को अपनाना आज भी प्रासंगिक है- दोनों कथन एक नहीं हैं। उदाहरण लें, 150वीं वर्षगांठ राष्ट्रीय आयोजनों के दौरान अक्तूबर, 2019 से ही उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान व उ.प्र. में पंचायती राज प्रणाली में त्रिस्तरीय चुनाव होते ही रहे। कुछ अन्य राज्यों में भी पंचायती उपचुनाव हुए थे। उ.प्र. में तो 2021 में भी ये जारी रहे। इन राज्यों में बापू की ग्राम सुराज, ग्राम स्वराज व गांव गणतंत्र की परिकल्पना को साकार करने के लिए ईमानदारी से संभावनाएं तलाशी जा सकती थीं।
गांधी पंचायतों को आदर्श आधारित गणतंत्र स्थापना के लिए माध्यम व पद्धति दोनों मानते थे। पंचायतों में सत्य, अहिंसा, समरसता व व्यक्ति की आजादी, छुआछूत विहीन समाज के सिद्धांतों का भी अनुपालन चाहते थे। ऐसे वातावरण निर्माण के लिए गांधी के आदर्शों के अनुसार बिना राजनीतिक दल के उम्मीदवार बने चुनाव लड़ने की नैतिकता उम्मीदवारों में होनी थी। राजनीतिक दलों में भी दलीय आधार पर पंचायतों में हस्तक्षेप न करने की जो नैतिकता होनी चाहिए थी, वही सबसे पहले तिरोहित हुई।
बापू गांवों के पास राजनीतिक सत्ता चाहते थे। वे आत्मनिर्भर-आत्मनिर्णय कर सकने वाले गांव में आर्थिक प्रजातंत्र व आत्मनिर्भरता की इच्छा रखते थे। किन्तु आज ग्राम पंचायत स्तर के नियोजन में स्वतंत्रता की बात तो छोड़ दें, जिला पंचायत स्तर पर भी जिला प्रभारी मंत्री, जिला पंचायत योजना प्रस्तावों में कांटछांट करवा देते हैं। कारण यह भी है कि गांवों और ग्राम पंचायतों की आर्थिक संभावनाओं व आय को दयनीय बना दिया गया है। गांधी ग्राम स्वराज में व्यक्ति और ग्रामसभा दोनों को महत्वपूर्ण मानते थे। उनकी अपेक्षा थी कि गांव सभाओं में गांव का आमजन सक्रियता से भाग लेगा तथा वहीं गांव की प्राथमिकतायें व जरूरतें पहचानी जायेंगी। इसके विपरीत ग्रामीण जनसहभागिता का स्तर यह है कि गांव सभाओं व पंचायत समितियों में वैधानिक संख्या कम से कम रखने पर भी कोरम पूरा नहीं होता है। फलत: अपर्याप्त कोरम में ही प्रस्तावों पर कार्यवाहियों का अधिकार मिलता है। राज्य सरकारें पंचों व पंचायतों को उन सभी अधिकारों, विभाग, वित्तीय कार्य व कर्मचारी देने से भी कतराती हैं जिनकी वे संवैधानिक हकदार हैं। जबकि गांधी ग्राम पंचायतों में विधायिका, न्यायपालिका व प्रशासकीय इकाई का समवेत रूप देखना चाहते थे।
गांवों की स्वायत्तता की बात तो यह है कि गांव सभाओं, ग्राम पंचायतों के न चाहने पर भी खानापूर्ति कर उन्हें पूरे देश में ही नगरों व महानगरों में मिलाया जा रहा है। गांवों की स्वायत्ता के लिए यह आवश्यक है कि गांव पंचायतों के पास अपने संसाधनों के साथ विकास का खाका व अधिकार हो। निस्संदेह, बापू अपने समय में भी किसी गलतफहमी में नहीं थे। वे भी मानते थे कि आदर्श ग्राम पंचायतें बनाना या उनके लिए अभियान चलाना आसान नहीं होगा। एक गांव को ही आदर्श ग्राम पंचायत बनाने में पूरा जीवन भी खप सकता है। गांधी इस कार्य को दुष्कर इसलिए भी मान रहे होंगे कि उस समय आज से ज्यादा समाज में निर्बलों को डर सताता था। व्यक्ति के लिए गांवों के दबंगों के बीच या अपने साहूकारों के बीच अपना विचार रखना आसान न था। खुली ग्राम सभाओं में तो ऐसा करना और ही मुश्किल होता। चुने गये दलित व महिला पंचों, सरपंचों को उनके पूरे हक से काम करने का वातावरण बनाना ग्राम सुराज के लिए आवश्यक है।
जैसे बापू कहते भी थे कि जब तुम्हारा मन इस दुविधा में हो कि कोई कार्य किया जाना चाहिए या नहीं तो ध्यान करो कि तुम्हारे उस काम से समाज के आखिरी आदमी पर क्या असर पड़ेगा। महान स्वतंत्रता सेनानी बापू के प्रति सम्मान दर्शाने को सरकारें राजनेता खुद को परखें, जानें कि उनके निर्णयों से गांवों पर क्या असर पड़ रहा है। हो सके तो उन्हें गांधी के ग्राम सुराज और ग्राम स्वराज की कसौटी पर भी परखें। वर्तमान और भविष्य में राजनीतिक दल व जनता पंचायती चुनावों व ग्राम गणतंत्र को जमीन पर उतारने में जिस तरह का प्रयास करेगी वह भी तय करेगा कि हम गांधी जी को मानते हैं या भुनाते हैं। गांधी गांवों के भारत में प्रासंगिक हैं कि नहीं।

Advertisement
Advertisement
Advertisement