आज भी जन मन में विराजे सुभाष
राजकिशन नैन
वरिष्ठ कथाकार डॉ. राजेंद्र मोहन भटनागर का नया उपन्यास ‘अज्ञातवास के हमसफर’ नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के जीवन और मृत्यु संबंधी कई छुपे रहस्यों को यकीनी ढंग से उजागर करता है। सुभाषचन्द्र बोस हमारी आजादी के उन महान चरित्रों में से हैं जिनकी स्मृति हमें विकल करती है। सुभाष ने खुद सैन्य वर्दी पहनकर पराई धरती पर सेना गठित की और अंग्रेजों को भगाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया।
सुभाष की फौज के 26 हजार जवानों ने आजादी की खातिर अपने प्राणों की आहुति दी थी। सुभाष जीती हुई आजादी चाहते थे। सुभाष बाबू ने आजाद हिन्द फौज में कुलीन घरानों की लड़कियों को सैन्य शिक्षा देकर दुनिया के सामने जबरदस्त उदाहरण पेश किया था। रंगून में आजाद हिन्द फौज की भर्ती करते समय सुभाष बाबू ने कहा थाmdash;’आजादी बलिदान चाहती है। हमें ऐसे नवयुवकों व नवयुवतियों की जरूरत है, जो अपने हाथों से अपना सिर काटकर स्वाधीनता की देवी की भेंट चढ़ा सकें।’ उनके आह्वान पर भर्ती होने के लिए जो भीड़ आगे बढ़ी उसमें सबसे आगे सत्रह लड़zwnj;कियां थीं। जिन्होंने अपनी कमर से छुरियां निकालकर अपनी अंगुलियों पर घाव किया और बहते खून से भर्ती प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर किये।
कर्नल लक्ष्मीबाई की कमांड में ‘रानी झांसी रेजीमेंट’ की हजारों महिलाओं ने तीन मोर्चों पर विकट युद्ध लड़े। सुभाष और उनकी फौज ने स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़कर 15 हजार वर्गमील क्षेत्र को अंग्रेजों से छुड़ाकर अंडमान निकोबार समेत पूर्वी भारत में आजाद हिन्द सरकार की सत्ता स्थापित की, जिसे नौ देशों ने मान्यता दी। द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की जीत के बाद आजाद हिन्द सरकार दुनिया की अकेली ऐसी सरकार थी जिसने आत्मसमर्पण नहीं किया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन ने जिन चार नेताओं को युद्ध अपराधी घोषित किया उनमें सुभाषचन्द्र बोस शामिल थे। भारत में रहते हुए सुभाष बाबू 11 दफा कैद में रहे और 18 अगस्त, 1945 के बाद वे अदृश्य हो गए। उनकी मृत्यु के बारे में ठोस साक्ष्य आज तक नहीं मिल सके हैं। उनकी मौत आज भी एक रहस्य है, जिससे पर्दा उठाने का सार्थक प्रयास अब तक भारत की किसी सरकार ने नहीं किया।
इस सन्दर्भ में ‘महानायक’ के लेखक विश्वास पाटिल और ‘गुमनामी बाबा’ के रचयिता अनिल धर ने अपनी कृतियों में इस गुप्त भेद के बारे में सिलसिलेवार तरीके से खुलासा किया है। कांग्रेस के तमाम तत्कालीन नेताओं और वामपंथियों का बर्ताव सुभाष बाबू के प्रति सदैव दुर्भावनापूर्ण रहा। भारत की 80 फीसदी जनता के मन में सुभाष आज भी जीवित हैं।
पुस्तक : अज्ञातवास के हमसफर लेखक : डॉ. राजेन्द्र मोहन भटनागर प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स, नयी दिल्ली पृष्ठ : 312 मूल्य : रु. 400.