शिमला संसदीय क्षेत्र में चुनावी आंधियां भी रहती हैं बेअसर
ज्ञान ठाकुर/हप्र
शिमला, 14 अप्रैल
हिमाचल प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस का परम्परागत गढ़ रही शिमला संसदीय पर चुनावी आंधियां भी बेअसर रहती हैं। यही कारण है कि चुनावी समर में अभी तक बैकफुट पर चल रही कांग्रेस ने इस संसदीय सीट पर अपनी मौजूदा विधायक विनोद सुल्तानपुरी को चुनाव मैदान में उतार कर ये जता दिया है कि कांग्रेस इस सीट को आसानी से भाजपा को फिर से नहीं कब्जाने देगी। शिमला संसदीय क्षेत्र से छह बार के सांसद रहे स्व. केडी सुल्तानपुरी के विधायक पुत्र विनोद सुल्तानपुरी को उम्मीदवार बना कर कांग्रेस ने बड़ा दांव खेला है। उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद अब सुल्तानपुरी के समक्ष अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने की चुनौती होगी। शिमला संसदीय क्षेत्र कांग्रेस का परंपरागत गढ़ रहा है। 1962 से 2019 तक हुए 16 लोकसभा चुनावों में इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवार 11 प्रत्याशी जीते। शिमला संसदीय क्षेत्र से सबसे अधिक छह बार चुनाव जीतने का रिकार्ड विनोद सुल्तानपुरी के पिता स्व. केडी सुल्तानपुरी के नाम है। केडी सुल्तानपुरी 1980, 1984, 1989, 1991, 1996 तथा 1998 में यहां से सांसद रहे। इससे पहले 1962 व 1967 में महासू के नाम से जानी जाने वाली शिमला सीट से दो बार स्व. वीरभद्र सिंह, 1967 तथा 1971 में प्रताप सिंह तथा 2004 में हिमाचल विकास कांग्रेस उम्मीदवार डॉ. धनी राम शांडिल यहां से सांसद निर्वाचित हुए। गैर कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर जनता पार्टी के बालक राम कश्यप शिमला लोकसभा सीट से पहली बार सांसद चुने गए थे। इसके बाद 1999 में हिविकां उम्मीदवार के तौर पर डॉ धनी राम शांडिल जीते। 2009 तथा 2014 में भाजपा के वीरेंद्र कश्यप तथा 2019 में भाजपा के सुरेश कश्यप शिमला लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुए। बहरहाल संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के विनोद सुलतानपुरी का मुकाबला भाजपा के सुरेश कश्यप से होना है। कश्यप 2019 में सांसद चुने जाने से पहले पच्छाद से विधायक रह चुके हैं। विनोद सुल्तानपुरी दो विधानसभा चुनाव में पराजित होकर 2022 में पहली बार विधायक चुने गए। अब पार्टी ने उन्हें चुनाव मैदान में उतारकर एक और बड़ी जिम्मेवारी सौंप दी है। कांग्रेस ने शिमला संसदीय क्षेत्र के लिए शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर को प्रभारी नियुक्त किया है। उनके साथ नेताओं की पूरी टीम है। साथ ही भाजपा को जीत का चौका लगाने से रोकने के लिए संसदीय क्षेत्र के कांग्रेस विधायकों, मंत्रियों व संसदीय सचिवों को भी विनोद सुल्तानपुरी को अपने अपने क्षेत्रों में बढ़त दिलाने का जिम्मा सौंपा है।
कांग्रेस की जड़ें मजबूत, भाजपा भी कम नहीं
शिमला सीट के मतदान के आंकड़ों के अनुसार 2004 में यहां भाजपा को 38.40 तथा कांग्रेस को 39.94 फीसदी वोट मिले। मगर 2009 में भाजपा को 50 तथा कांग्रेस को 45 प्रतिशत वोट मिले। 2014 में भाजपा के मतदान प्रतिशत में फिर बढ़ोतरी हुई। भाजपा को 52 तथा कांग्रेस को 40 प्रतिशत वोट मिले। 2019 में भाजपा को 66 तथा कांग्रेस को 30.50 प्रतिशत ही वोट मिल सके। आंकड़े इस बात का प्रमाण है कि शिमला सीट में कांग्रेस की जड़े अभी भी मौजूद हैं हालांकि भाजपा को मिलने वाले मतों का ग्राफ भी लगातार बढ़ा है।