वित्त मंत्री के ‘टैग’ के बाद हारने की प्रथा जयप्रकाश दलाल भी नहीं तोड़ सके
दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 8 अक्तूबर
हरियाणा की नायब सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे जयप्रकाश दलाल भी यह मिथक नहीं तोड़ पाए कि वित्त मंत्री लगातार दूसरी बार विधानसभा नहीं पहुंच पाते। जेपी दलाल लोहारू हलके से कांग्रेस उम्मीदवार राजबीर सिंह फरटिया के सामने चुनाव हार गए। जयप्रकाश दलाल 2019 में पहली बार लोहारू से विधायक बने थे। उन्हें मनोहर सरकार में कृषि मंत्री बनाया गया। बाद में जब मनोहर लाल की जगह नायब सिंह सैनी मुख्यमंत्री बने तो दलाल को वित्त मंत्री बना दिया गया।
दलाल ने पूरी मजबूती के साथ यह चुनाव लड़ा। उनकी हार का अंतर भी महज 792 मतों का रहा। इस मिथक के बारे में जेपी दलाल भी जानते थे। इसलिए चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने मीडिया से बातचीत के दौरान यह कहा था कि वे अब वित्त मंत्री नहीं है और इसलिए चुनाव भी जीतेंगे। दरअसल, नायब सरकार ने 11 सितंबर को कैबिनेट की बैठक बुलाकर मौजूदा और 14वीं विधानसभा को भंग करने की सिफारिश कर दी थी। 12 सितंबर को राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने सरकार के फैसले को मंजूरी देते हुए विधानसभा भंग करने के आदेश जारी किए थे। ऐसे में कैबिनेट भी भंग हो गई थी। हालांकि नई सरकार के गठन तक सीएम और कैबिनेट कार्यवाहक के तौर पर काम करते रहने के नियम हैं। भाजपा के दूसरे कार्यकाल में वित्त विभाग मनोहर लाल ने अपने पास ही रखा हुआ था। प्रदेश में ऐसे राजनीतिक हालात बने कि मनोहर लाल को समय से पहले मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। यानी वित्त मंत्री से जुड़ा मिथक उनके साथ भी लगा रहा। बेशक, वे करनाल लोकसभा सीट से सांसद बन गए लेकिन वित्त मंत्री होने के बाद विधानसभा नहीं पहुंच सके।
मनोहर लाल के पहले कार्यकाल में 2014 से 2019 तक कैप्टन अभिमन्यु वित्त मंत्री थे। वित्त मंत्री रहते हुए ही उन्होंने 2019 का चुनाव भाजपा टिकट नारनौंद से लड़ा। जननायक जनता पार्टी (जजपा) के रामकुमार गौतम के हाथों वे चुनाव हार गए। इससे पहले 2009 से 2014 तक भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में कैप्टन अजय सिंह यादव वित्त मंत्री थे। लेकिन 2014 को चुनाव वे रेवाड़ी से भाजपा के रणधीर सिंह कापड़ीवास के सामने हार गए।
वहीं हुड्डा सरकार के पहले कार्यकाल यानी 2005 से 2009 तक चौ़ बीरेंद्र सिंह हरियाणा सरकार में वित्त मंत्री रहे। 2009 के चुनावों में उचाना कलां हलके से इनेलो सुप्रीमो व पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने बीरेंद्र सिंह को चुनाव हरा दिया। ऐसे में वे भी वित्त मंत्री बनने के बाद लगातार दूसरी बार विधानसभा नहीं पहुंचे सके।
कांग्रेस की सरकार आने से पहले 1999 से 2005 तक राज्य में ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व में इनेलो की सरकार रही। इनेलो सरकार में प्रो. संपत सिंह वित्त मंत्री थे। लेकिन 2005 का चुनाव वे भी हार गए। इससे पहले 1996 से 1999 तक चौ़ बंसीलाल के नेतृत्व में हरियाणा विकास पार्टी (हविपा) और भाजपा गठबंधन की सरकार रही। 1996 में कैथल से समता (अब इनेलो) टिकट पर चरण दास शोरेवाला ने चुनाव जीता था। चुनाव जीतने के बाद वे बंसीलाल के नेतृत्व वाली हविपा में शामिल हो गए। बंसीलाल सरकार ने उन्हें प्रदेश का वित्त मंत्री बनाया लेकिन अगला चुनाव वे भी नहीं जीत पाए। वहीं 1991 से 1996 तक चौ. भजनलाल के नेतृत्व में राज्य में कांग्रेस की सरकार थी।
भजनलाल सरकार में जींद से विधायक रहे मांगेराम गुप्ता प्रदेश के वित्त मंत्री थे। 1996 में जब विधानसभा के आमचुनाव हुए तो मांगेराम गुप्ता जींद सीट पर हरियाणा विकास पार्टी के बृजमोहन सिंगला ने सामने चुनाव हार गए। बहरहाल, एक बार फिर वित्त मंत्री रहते हुए जयप्रकाश दलाल की हार ने इस मिथक को बनाए रखा है। हालांकि जेपी दलाल ने पूरी मजबूती के साथ चुनाव लड़ा। लेकिन भाजपा के प्रति एंटी-इन्कमबेंसी और किसान आंदोलन के असर की वजह से राजबीर सिंह फरटिया उन्हें पटकनी देने में कामयाब रहे।
गीता भुक्कल ने तोड़ी थी परंपरा
वित्त मंत्री की तरह ही शिक्षा मंत्री को लेकर भी ऐसा ही मिथक है। चौटाला सरकार में शिक्षा मंत्री रहे बहादुर सिंह भी अगला चुनाव नहीं जीत सके थे। हुड्डा के पहले कार्यकाल में मांगेराम गुप्ता शिक्षा मंत्री थे। अगला चुनाव वे भी हार गए। इसके बाद 2009 में गीता भुक्कल शिक्षा मंत्री बनीं लेकिन उन्होंने इस मिथ्ाक को तोड़ते हुए 2014 में ही भी जीत हासिल की। 2014 में प्रो़ रामबिलास शर्मा भाजपा सरकार में शिक्षा मंत्री बने। 2019 में कांग्रेस के राव दान सिंह के सामने वे महेंद्रगढ़ से चुनाव हार गए। 2019 में भाजपा की जब दूसरी बार सरकार बनी तो कंवर पाल गुर्जर शिक्षा मंत्री बने। हालांकि 12 मार्च को कंवर पाल गुर्जर की जगह सीमा त्रिखा को शिक्षा मंत्री बना दिया गया। इस बार सीमा त्रिखा को टिकट ही नहीं मिली। वहीं कंवर पाल गुर्जर जगाधरी से चुनाव हार गए।
रणबीर गंगवा ने बदल दी रवायत
डिप्टी स्पीकर को लेकर भी ऐसा कहा जाता है कि डिप्टी स्पीकर बनने वाला विधायक लगातार दूसरी बार विधानसभा नहीं पहुंच पाता। 2005 में जब कांग्रेस 67 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई तो आजाद मोहम्मद को डिप्टी स्पीकर बनाया। वे 2009 का चुनाव हार गए। 2009 में जगाधरी से बसपा विधायक अकरम खान ने हुड्डा सरकार को समर्थन दिया और वे डिप्टी स्पीकर बन गए। लेकिन 2014 का चुनाव अकरम खान हार गए। वहीं 2014 में अटेली से भाजपा विधायक संतोष यादव को डिप्टी स्पीकर बनाया गया लेकिन उन्हें अगली बार टिकट ही नहीं मिला। यानी वे भी लगातार दूसरी बार विधायक नहीं बन पाईं। 2019 में नलवा से विधायक बने रणबीर सिंह गंगवा डिप्टी स्पीकर बने। इस बार भाजपा ने उन्हें नलवा की जगह बरवाला से टिकट दिया। गंगवा कांग्रेस के रामनिवास घोड़ेला को 30 हजार मतों के अंतर से चुनाव में पटकनी देकर दूसरी बार विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे।