मन को पहुंचे ठेस तो भी ज़रा ठहर कर दें जवाब
डॉ. मोनिका शर्मा
‘अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत '- यह कहावत जानने भर की नहीं बल्कि मानने-समझने योग्य भी है। विशेषकर ऐसी स्थिति में जब आपके मान को ठेस पहुंची हो। किसी ने दिल दुखाया हो। जानबूझकर कमतर आंकने का खेल खेला हो। दरअसल, अपमानित होने की स्थिति में इंसान कुछ भी कर गुजरता है। आपराधिक घटनाओं से लेकर अभद्र व्यवहार तक कर जाने के ऐसे मामले आए दिन सुर्खियां बनते हैं। अधिकतर घटनाओं में बात केवल शांत मन से ठहरकर सोचने भर की होती है। असल में मन को ठेस पहुंचने की स्थिति में सोचने-समझने की सुध-बुध ही खो जाती है। इसीलिए ऐसे मौके पर जरा ठहर जाएं।
अपनी मनःस्थिति को समझिए
इन परिस्थितियों में सबसे पहले तो अपनी मनःस्थिति को समझना जरूरी है। भावनात्मक रूप से उन शब्दों से मत जुड़िए जो आपका मन दुखाने के इरादे से ही कहे गए हैं। इरादतन मन को चोट पहुंचाने के लिए किये गए व्यवहार को दिल से मत लगाइए। अपने मन-मस्तिष्क को यह समझाना जरूरी है कि कोई भी दुर्भाव भरी बात आपके पूरे व्यक्तित्व पर प्रश्न खड़ा नहीं कर सकती? आपकी वैचारिक समझ को सवालों के घेरे में नहीं ला सकती। ऐसे में आपको लेकर की गई नकारात्मक टिप्पणी या असभ्य बात को एक शब्द या वाक्य भर मानें। यह स्वीकार्यता स्वयं अपनी मनःस्थिति को समझे बिना संभव नहीं। ध्यान रहे कि अपने मन को समझकर ही इस तरह की उलझन भरी स्थिति में खुद को ऐसी समझाइश दी जा सकती है।
दूसरे पक्ष की परिस्थिति को जानिये
कई बार आपको भला-बुरा कह डालने वाला इंसान खुद ही उलझाऊ मनोभावों से घिरा होता है। किसी न किसी तरह की पीड़ा या परेशानी उसे भी घेरे होती है। ऐसे लोग बाद में पछताते हैं। अपने बर्ताव के लिए साथ ही माफी भी मांगते हैं पर अपमानित किये जाने की पीड़ा व्यक्ति के मन में घर बना चुकी होती है। जिसके चलते सामने वाले इंसान को समझे बिना उसे और बड़ी चोट पहुंचाने का रास्ता चुन लिया जाता है। लाजिमी भी है क्योंकि कभी-कभी दूसरे लोगों का बर्ताव और शब्द इंसान के मन में बहुत परेशान करने वाली भावनाएं पैदा कर देते हैं। ऐसे में यह सोच पाना संभव नहीं है कि अगले इंसान का दिलो-दिमाग भी दुख-तकलीफ के हालात का शिकार हो सकता है। इतना ही नहीं, जाने-अनजाने हम भी किसी को चोट पहुंचा देते हैं। यह प्रतिक्रिया किसी के कटु व्यवहार का जवाब भी हो सकती है। इसीलिए दूसरे इंसान के पक्ष को जानना-समझना भी आवश्यक है।
संयत व्यवहार को चुनिए
यह सच है कि अपमानजनक स्थिति का सामना करते समय खुद को संयत रखना मुश्किल होता है। मन में आक्रोश उमड़ने लगता है पर थोड़ा ठहर जाना चाहिए। कभी-कभी ऐसी स्थिति में बहस या जवाब-तलब करने के बजाय चुप रह जाना
ही अच्छा होता है। संभव हो तो ऐसी अप्रिय स्थिति को जरा हंसकर टालने की राह ही चुनें। इस बर्ताव से होने वाले नुकसान को समझें। पल भर के आक्रोश के खामियाजे समझने का भाव ठहराव की ओर ले जाता है। हालांकि यह समय रहते किया जाये तो ही कोई फायदा है। इन परिस्थितियों में तर्कसंगत विचारों का साथ भी आवश्यक है। तार्किक सोच नकारात्मक भावनाओं पर विराम लगाने में बहुत अधिक मददगार बनती है। जिंदगी में शांति-सुकून को पाने के लिए दूसरों के व्यवहार से खुद के असंयत होने की स्थिति कभी न आने दें।