साहित्य का मर्म
एक बार जापान की शीर्ष बौद्ध संस्था ने विचार किया कि देश में उपलब्ध सभी धर्मग्रंथों को लोककल्याण के लिये एक साथ प्रकाशित किया जाए। इस उद्देश्य के लिये पर्याप्त धन जुटाया गया। संयोगवश तभी बाढ़ आ गई और इस राशि को बाढ़ पीड़ितों के लिये खर्च कर दिया गया। फिर दूसरी बार धर्मग्रंथों के प्रकाशन के लिये धन एकत्र किया। प्रकाशन की सभी तैयारी पूरी कर ली गई थी कि देश में अकाल पड़ गया। फिर संस्था ने अकाल पीड़ितों की मदद का फैसला लिया। सारा एकत्र धन पीड़ितों की मदद में खर्च हो गया। संस्था ने तीसरी बार धर्मग्रंथों के प्रकाशन के लिये धन एकत्र किया और इस बार ग्रंथों का विधिवत प्रकाशन कर दिया गया। विशेष बात यह है कि प्रकाशित पुस्तकों पर–तीसरा संस्करण लिखा था। पुस्तक की भूमिका में लिखा गया कि दो बार इस उद्देश्य के लिये धन एकत्र किया गया और उस धन को तात्कालिक आवश्यकता के लिये खर्च कर दिया गया। जो इन धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन जितना ही महत्वपूर्ण कार्य था। साहित्य का असली उद्देश्य यही है कि वह सेवा करने व करुणा के कर्म में रत रहे। इस तरह इन ग्रंथों के पहले दो संस्करण साहित्य की इसी धारणा के निमित्त रहे।
प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा