मूल्यों का क्षरण
आज कोरोना महामारी के संकट में कुछ लोग बेईमानी, लालच और कालाबाज़ारी जैसी बुरी प्रवृत्तियों को बढ़ावा दे रहे हैं। इस आपदा के दौरान रेमडेसिविर इंजेक्शनों की कालाबाज़ारी ने यह तो साबित कर दिया है कि आपदा को लाभ के अवसर में बदलने की कोशिश में इन लोगों का कितना नैतिक पतन हो चुका है। इस आपदा के दौरान भी लाभ-हानि के गणित में मानवीय मूल्यों को कलंकित कर रहे हैं।
खुशबू वेद, आलोट, म.प्र.
राजनीतिक अपरिपक्वता
हाल ही के दिनों में देश के चुनावी अभियानों में राजनेताओं की अमर्यादित भाषा बेचैन करने वाली है। किसी भी सभ्य समाज में हर जिम्मेदार नागरिक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी वाणी और व्यवहार पर अंकुश रखेगा। नेताओं के शब्दों की अमर्यादा और अशालीनता आजादी के सात दशक बाद भी लोकतंत्र की अपरिपक्वता को ही दर्शाता है।
पूनम कश्यप, बहादुरगढ़
सहयोग जरूरी
22 अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून में सुबीर रॉय का ‘सामाजिक दृष्टि से जरूरी छोटी बचतों को संरक्षण’ लेख कोरोना कॉल में महत्वपूर्ण और सारगर्भित था। कोरोना संक्रमण की दूसरी पारी पर स्वास्थ्य विभाग के कर्मियों और अामजन के सहयोग से ही विजय पायी जा सकती है। इस महामारी को मानवीय असावधानी का परिणाम भी कहा जा सकता है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
सबका ख्याल रखें
बढ़ते कोरोना संक्रमण के मामलों को देखते हुए सभी राज्यों की सरकारों ने कोरोना प्रोटोकॉल बनाया है। लेकिन दूसरी ओर दैनिक मजदूरी, ठेला, रिक्शा, खोमचा वालों का जीवन प्रभावित होने लगा है। ऐसे में सरकार और स्थानीय संगठन संस्थाएं आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की मदद करें ताकि भूखमरी जैसी हालत उत्पन्न न हो।
नितेश कुमार सिन्हा, मोतिहारी