पर्यावरण और किसान
हरियाणा की पानीपत रिफाइनरी में टू-जी एथनॉल प्लांट का शुरू होना निश्चित रूप से बहुआयामी लाभों को हकीकत में बदलना ही है। एक ओर जहां किसानों को पराली जलाने की तोहमत से बचाना है, वहीं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण पर अंकुश लगाने की सार्थक पहल है। इससे जहां किसानों की आय बढ़ेगी, वहीं स्थानीय लोगों के लिये रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। सबसे महत्वपूर्ण यह कि इस बॉयो फ्यूल प्लांट से एक लाख लीटर एथनॉल तैयार किया जा सकेगा। जिसके लिये प्रतिदिन सात सौ टन फसलों के अवशेष का दोहन किया जा सकेगा। बताया जा रहा है कि पेट्रोल के साथ एथनॉल मिलाये जाने से देश को प्रतिवर्ष चार अरब डॉलर की दुर्लभ विदेशी मुद्रा की बचत हो सकेगी। इसके चलते अभी पेट्रोल में जो दस फीसदी एथनॉल मिलाया जाता है, उसकी जगह बीस फीसदी एथनॉल अप्रैल 2023 से मिलाया जा सकेगा। वर्ष 2025 तक देश के सभी पेट्रोल पंपों पर एथनॉल मिश्रित पेट्रोल मिलने लगेगा। निश्चित रूप से जैव ईंधन प्रकृति की रक्षा करता है। पराली जलाने से धरती की पीड़ा को कुछ हद तक कम किया जा सकेगा। वहीं दूसरी ओर पराली काटने व उसके निस्तारण को लेकर गांव-देहात में जो परेशानी होती थी, उसका समाधान संभव है। साथ ही किसानों व आपूर्तिकर्ताओं को आर्थिक लाभ भी होगा। इसमें न केवल पराली बल्कि गेहूं का भूसा, मक्का के अवशेष, गन्ने की खोई व सड़े-गले अनाज का भी उपयोग हो सकेगा। निश्चित रूप से जहां अनुपयोगी वस्तुओं का उपयोग हो सकेगा, वहीं कृषकों को अतिरिक्त आय का बोनस भी मिलेगा। वहीं इस पहल का विस्तार पंजाब, उत्तर प्रदेश व राजस्थान आदि राज्यों में भी किया जाना चाहिए, जिन पर आरोप लगते रहे हैं कि उनके किसानों द्वारा पराली जलाने से दिल्ली में प्रदूषण की समस्या पैदा होती है। हर साल के अंत में दिल्ली जिस धुंध की चपेट में आ जाती थी, उम्मीद है अब उसमें निश्चित रूप से कुछ कमी आ सकेगी।
निस्संदेह, जैव ईंधन उत्पादन के ऐसे प्रयास सारे देश में किये जाने चाहिए क्योंकि भारत के तमाम शहर प्रदूषण की दृष्टि से संकटपूर्ण स्थिति से गुजर रहे हैं। लेकिन सरकार के ये प्रयास तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक किसानों की सक्रिय भागीदारी इस मुहिम में नहीं होती। किसानों को समझाया जाना चाहिए कि फसलों के अवशेष जलाने से जो प्रदूषण पैदा होता है उससे उनकी धरती, परिवार व समाज का अहित होता है। किसानों की सेहत पर भी इसका प्रतिकूल असर होता है। इस मुहिम में किसान की भागीदारी अनिवार्य शर्त है। जहां वे इससे अपनी अतिरिक्त आय जुटा सकते हैं, वहीं अन्य लोगों को भी रोजगार के अवसर दे सकते हैं। सरकार को भी किसानों को बढ़ती महंगाई में राहत देने के लिये खाद, उपकरणों तथा बीजों की कीमत में कुछ छूट देने का प्रयास करना चाहिए। इसका अभिप्राय यह बिल्कुल नहीं है कि इस अभियान को मुफ्त की राजनीति का हिस्सा बनाया जाये। लेकिन जब कर्मचारियों को महंगाई बढ़ने पर भत्ता दिया जा सकता है तो अपरोक्ष रूप से किसान को भी राहत देने की ईमानदार कोशिश होनी चाहिए। वहीं दूसरी ओर खेतों से एथनॉल प्लांट तक फसलों के अवशेष ले जाने वाले श्रमिकों, वाहन चालकों तथा प्लांट में काम करने वाले श्रमिकों को भी इससे रोजगार मिलता है। रोजगार की एक नई शृंखला पैदा होती है। देश के अन्य राज्यों को भी इस पहल का स्वागत करते हुए अपने यहां ऐसे ही एथनॉल प्लांट लगाने चाहिए। ये वक्त की मांग है क्योंकि हर वर्ष लाखों लोग वायु प्रदूषण के कारण मौत के मुंह में चले जाते हैं। जो बच जाते हैं उनका जीवन यापन कठिन हो जाता है। पर्यावरण संरक्षण की पहल को राष्ट्रीय आंदोलन का रूप देने की जरूरत महसूस की जा रही है। पर्यावरण के स्वास्थ्य पर ही हमारा स्वास्थ्य निर्भर करता है। खासकर ग्लोबल वार्मिंग के संकट के प्रभाव जब दस्तक देने लगे हैं तो हमारी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।