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छुक- छुक ट्रेन से दिलकश सफर का मज़ा

06:29 AM May 03, 2024 IST

रमेश पठानिया
गर्मियां आते ही मैदानी इलाकों से पहाड़ों की तरफ जाने का दिल करता है, दिल्ली और उत्तरी भारत से शिमला, नैनीताल, मसूरी, देहरादून, कुल्लू, मनाली ऐसे पर्वतीय पर्यटक स्थल हैं जो आसानी से छुट्टियों को मनाने के लिये उपयुक्त हैं। अगर आप कालका से शिमला छोटी गाड़ी या टॉय ट्रेन में नहीं गए हैं तो आप ने सही मायने में जीवन का एक यादगार अनुभव खोया है। कालका से शिमला तक की दूरी 96 किमी है और यहां पर हेरिटेज रेलवे है, जो 111 साल से भी ज्यादा पुराना है और इसे 10 जुलाई, 2008 को यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज घोषित किया था। दो फीट छह इंच की इस नैरो गेज लेन पर नौ नवंबर, 1903 से आज तक रेल यातायात जारी है।
कालका-शिमला रेलमार्ग में 103 सुरंगें और 869 पुल बने हुए हैं। इस मार्ग पर 919 घुमाव या मोड़ आते हैं जिनमें से सबसे तीखे मोड़ या यूं कहिये ओझल मोड़ हैं जिन पर पर ट्रेन 48 डिग्री के कोण पर घूमती है। वर्ष 1903 में अंग्रेजों शासन द्वारा देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला को बाकी देश से जोड़ने के लिए इसे बनाया था। कालका से शिमला के लिए कुर्सी यान और दूसरी गाड़ियां है। जो कालका से चलती हैं। कालका शिमला रेलवे का इतिहास 100 साल से भी पुराना है।

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रेलवे का ‘मुकुट रत्न’

कालका शिमला रेलवे का निर्माण भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान ब्रिटिश भारतीय रेल नेटवर्क की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला से जुड़ने के उद्देश्य से किया गया था। रेल नेटवर्क ने 800 पुलों और पुलों के क्रॉसओवर के साथ 96 किलोमीटर की सबसे ऊंची ऊंचाई के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया है, यह भारत के सबसे खूबसूरत पहाड़ी रेलवे में से एक है। इसे ब्रिटिश काल के दौरान भारतीय राष्ट्रीय रेलवे का ‘मुकुट रत्न’ माना जाता था।

ग्रीष्मकालीन राजधानी

कालका शिमला रेलवे (केएसआर), 96.6 किलोमीटर लंबा सिंगल ट्रैक वर्किंग रेल लिंक, 19वीं सदी के मध्य में शिमला के ऊंचे पहाड़ी शहर को सेवा प्रदान करने के लिए बनाया गया था, यह पहाड़ी आबादी को उत्साहित करने के तकनीकी और भौतिक प्रयासों का प्रतीक है। रेल कनोह में दुनिया का सबसे ऊंचा मल्टी-आर्क गैलरी पुल और केएसआर के बड़ोग (निर्माण के समय) में दुनिया की सबसे लंबी सुरंग इस सपने को वास्तविकता बनाने के लिए लागू किए गए शानदार इंजीनियरिंग कौशल का प्रमाण थी। तब शिमला क्षेत्र ने काफी राजनीतिक महत्व प्राप्त कर लिया क्योंकि ऊंचाई से जुड़ी स्वस्थ जलवायु के कारण भारतीय औपनिवेशिक सरकार ने वहां ग्रीष्मकालीन निवास करने का फैसला किया।
हिमालय की तलहटी, दिल्ली क्षेत्र और गंगा के मैदान तक परिवहन का प्रश्न तब महत्वपूर्ण हो गया। रेल लिंक की संभावना का उल्लेख 1847 में ही किया गया था।
सर्दियों और गर्मियों में ट्रेन से यात्रा करते हुए, वादी के दृश्य बिलकुल अलग लगते हैं, कई जगह इतने घुमाव हैं की ट्रेन का इंजन और अंतिम डिब्बा आगे पीछे से देखे जा सकते हैं। यह दार्जिलिंग में चलने वाली टॉय ट्रैन की तरह ही खूबसूरत है और यात्रा उतनी ही रोमांचकारी। चीड़ देवदार के पेड़ों, पहाड़ियों, सुरंगों और बुरांस के पेड़ों के बीच से गुजरती हुई रेलगाड़ी की यह यात्रा आपको भुलाये नहीं भूलेगी। अगर आप सुबह की पहली गाड़ी से शिमला की और आते हैं तो बड़ोग में आकर, आपको सूर्यदेव उदय होते दिखेंगे, वहां ट्रेन जलपान के लिये ठहरती है। शिमला का स्टेशन देखते ही बनता है। यहां से शिमला का अधिकतर हिस्सा दिखता है।
अगर आप तेज़ रफ्तार से शिमला सड़क के रास्ते नहीं जाना चाहते तो ब्रिटिश काल की 100 साल से ज्यादा पुरानी, वर्ल्ड हेरिटेज रेल में सफर करें। और प्राकृतिक सौंदर्य को अपने कैमरे में कैद करें।

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