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प्रतिभा निखार युवाओं को सशक्त बनाएं

06:29 AM Oct 02, 2023 IST
गुरबचन जगत

आप एक नागरिक को कैसे सशक्त बनाएं? उसे अपने सपने पूरे करने के काबिल कैसे बनाएं? इसमें राष्ट्र की भूमिका क्या है? हमारे संविधान की मूल प्रस्तावना में यह आदर्श लिखे हैं : सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक न्याय, मुक्त विचार-अभिव्यक्ति-विश्वास-आस्था-पूजा की स्वतंत्रता, समानता और एक समान अवसर, भाईचारा, आत्मसम्मान.....’ इन आदर्शों की पूर्ति में हमारा कार्य अभी भी जारी है। लेकिन यहां गायब क्या है? ऐसा कौन सा आवश्यक पुर्जा नदारद है जो हमारे सपने पूरा करने में मददगार हो, वह जिसे ‘भारतीय स्वप्न’ कहा जा सके?
सार रूप में, उत्तर सरल है...हमें समान अवसर, योग्यता आधारित चयन, कानून चालित नियम-सम्मत समाज वाला राष्ट्र बनना होगा। सरकार की भूमिका कभी-कभार रेवड़ियां बांटने वाले की न होकर एक मददगार की हो। यह वह जड़ है जिससे नव-उद्यम अंकुरित होगा, इसी से हमारे युवा सशक्त और काबिल बनेंगे, क्योंकि हमने देखा है कि जब भी, जहां भी मौका दिया गया, उन्होंने तरक्की कर दिखाई है।
उदाहरणार्थ खेल क्षेत्र, छोटे शहरों और ग्रामीण अंचल के युवाओं ने खेलों में बहुत बढ़िया प्रदर्शन किया है। अधिकांशतः वे कम आय वर्ग या फिर गरीब घरों से आते हैं, केवल अपने दृढ़ संकल्प और सततता से अपने क्षेत्र में चमके हैं। एक वक्त था, जब चोटी के खिलाड़ी शहरी और अमीरों के चुनींदा शिक्षा संस्थानों से हुआ करते थे। क्रिकेट में, आज हमारे यहां धोनी, हार्दिक पांड्या और सिराज जैसे नाम छाए हुए हैं। हरियाणा के मुक्केबाज़ विश्व विजेता हैं, उत्तर-पूर्वी प्रांतों के मुक्केबाज़, भारोत्तोलक और फुटबॉल खिलाड़ी चोटी पर हैं। झारखंड के धनुर्धर, पंजाब के हॉकी खिलाड़ी, केरल से तेज धावक और ऊंची कूद के और तमिलनाडु से शतरंज खिलाड़ी हैं – इनमें ज्यादातर साधारण परिवारों से हैं।
सेना और सिविल सेवाओं में अधिकारी स्तर की भर्ती में छोटे शहरों या ग्रामीण अंचलों और कम आय वाले परिवारों के बच्चों की आमद लगातार बढ़ रही है। वह दिन गए जब सेना अधिकारी और नौकरशाह समाज के अति संभ्रांत वर्ग के हुआ करते थे। अभी पिछले दिनों, कश्मीर में शहीद हुए 19वीं राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल मनप्रीत सिंह के पिता भी सेना में नायक थे, वे उसी बटालियन से सेवानिवृत्त हुए थे जिसका नेतृत्व बाद में उनके बेटे ने किया (12 सिख लाइट इन्फैंट्री)। यह कोई अकेला उदाहरण न होकर समग्र सामाजिक-पीढ़ीगत बदलावों का चेहरा है। यह योग्यता आधारित चयन प्रक्रिया व व्यवस्था द्वारा अवसर देने से संभव हुआ।
हालांकि, यह प्रक्रिया लाखों की संख्या में नौकरियां पैदा करने में विफल रही है, जिसकी जरूरत ग्रामीण और छोटे शहरों के युवाओं को है। आज हमारा 140 करोड़ लोगों का देश हैं और सरकार अकेली बेरोजगारी का पाट नहीं भर सकती। करोड़ों युवा आज खेती और गांवों से संबंधित छोटे-मोटे काम करके किसी तरह जीवनयापन कर रहे हैं। अपने विशाल ग्रामीण अंचल के लिए हम भविष्य की अर्थव्यवस्था पैदा करने में विफल रहे हैं। उद्योग और व्यापार खुद को शहरी इलाकों तक सीमित किए हुए हैं। वर्तमान में, हिस्से आते छोटे खेत कृषि में बड़ी क्रांति करने लायक नहीं रहे। नए बीज, नई खाद, नए खेती-उपकरण अपना काम दिखा चुके हैं। कृषि आधारित उद्योगों को सीमित सफलता मिल पाई है। फलत: देशभर में करोड़ों युवा बेरोजगार हैं, जो या तो शहरों की ओर पलायन करके मलिन बस्तियों में रहने को मजबूर होते हैं या फिर भविष्य की तलाश में विदेशों का रुख करते हैं। लिहाजा चोटी के 1 फीसदी अमीरों और समाज के सबसे निचले तबके के बीच आर्थिक असमानता का पाट बहुत चौड़ा हो गया है। इस शून्यता भरे खेल से निकलने की राह चुनिंदा औद्योगिक घरानों को संरक्षण देकर मिलने वाली नहीं है। वे बेरोजगारी की लहर को नहीं थाम सकते। सूक्ष्म, लघु, मध्यम और विशाल स्तर के उद्योगों को उत्साह और प्रोत्साहन देना होगा। हमें युवाओं को सशक्त बनाकर, उनकी काबिलियत और संभावना को बाहर लाना होगा। इसके लिए, समाज के सबसे निचले स्तर पर ‘काम-धंधा करने की सुविधा हो।
इस विशाल देश में अनंत प्रतिभा और ज्ञान छिपा पड़ा है। विश्व में जिस किसी देश या इलाके ने बाहरी कच्चे माल में औद्योगिक प्रक्रिया से मूल्य-संवर्धन किया है, वहां आमदनी में बहुत बढ़ोतरी हुई है। यह कृषि और इससे जुड़े क्षेत्र में देखा जा सकता है – इटली का चीज़ उद्योग हो या फ्रांस का वाईन व्यापार या फिर ऑस्ट्रेलिया-न्यूज़ीलैंड का डेयरी उद्योग। यह बात भारी उद्योग पर भी लागू है। जापान इसका अच्छा उदाहरण है, जो कच्चा माल आयात करके, औद्योगिक और तकनीकी योग्यता की बदौलत इसे महंगे दाम पर बिकने वाली वस्तुओं में तब्दील कर डालता है। होंडा, टोयाेटा, सोनी ब्रांड स्थापना के वक्त मल्टीनेशनल नहीं थे और शुरुआत बहुत साधारण स्तर से की थी। आईटी और ब्रॉडबैंड अब दूरदराज इलाके में उपलब्ध होने से, ऑनलाइन शिक्षा अकादमियां आधुनिक पढ़ाई करवा रही हैं, इस सूचना और ज्ञान तक पहुंच बनने से काम-धंधे और व्यवसायों की संभावनाएं अनन्त हो जाती हैं। इस औद्योगिक क्रांति को सिरे चढ़ाने के लिए - सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य – जो कि सरकार का प्राथमिक कर्तव्य है, युद्धस्तर पर सुनिश्चित किया जाए। यहां पुरानी कहावत एकदम सटीक है ः ‘किसी को मछली देकर एक दिन की भूख मिटाई जा सकती है, लेकिन उसे मछली पकड़ना सिखाने से जिंदगी भर के लिए भूख मिटाना संभव है’।
सवाल यह है कि खोल में फंसी नवउद्यम संभावना को कैसे मुक्त किया जाए? इसका निदान लालफीताशाही को खत्म करने में है। डॉ़ मनमोहन सिंह द्वारा 1990 के दशक में मुक्त अर्थव्यवस्था की रूपरेखा बनाने के बाद से, काफी सफलता मिली है। तीन दशकों में एक दिवालिया राष्ट्र से विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की उपलब्धि कोई साधारण नहीं है, लेकिन अभी भी डगर बहुत लंबी है। अधिकांश कराधान सुधार जैसे कि जीएसटी, कंपनियों की आयकर स्लैब नीचे करना और नोटबंदी जैसे उपायों ने भारत के कॉर्पोरेट जगत का ही हित किया। क्या यह शहरों के छोटे व्यापारी और महिलाओं के अलावा दूरदराज के गांवों की एवज पर नहीं हुआ? भारत को किसी एक या दूजे की नहीं....दोनों की जरूरत है। बल्कि, हमें सूक्ष्म, लघु, मध्य, बड़ा या जो भी श्रेणी हो, सबकी जरूरत है। लालफीताशाही की जकड़ से सबको एक समान निजात मिले, सुधार और प्रोत्साहन सबके लिए हों। इस तरीके से, हम करोड़ों छोटे नवउद्यमियों को रोजगार देने लायक बना सकते हैं।
देश के समक्ष मौजूदा चुनौतियों में पर्यावरण में बदलाव, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, संयुक्त अर्थव्यवस्था और नाजुक होती भू-राजनीतिक शांति शामिल है। जिससे एक मजबूत और सक्रिय राष्ट्र ही निबट पाएगा। सरकार इन बड़ी चुनौतियों का सामना करे। हमारे पास युवा-बल और नव-उद्यम सक्षमता की शक्ति है, यह सरकार पर निर्भर है कि बतौर मददगार, लालफीताशाही की जंजीरों से मुक्ति देकर उन्हें सशक्त बनाए। उनकी काबिलियत को समझें।
लेखक मणिपुर के पूर्व राज्यपाल हैं।

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