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प्रोत्साहित करती यादें

07:46 AM Feb 05, 2024 IST

कुमारेंद्र सिंह सेंगर

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अभय अंकल की स्मृति में संगीत निशा का आयोजन वातायन, उरई द्वारा किया गया था। अभय अंकल उरई के दयानंद वैदिक महाविद्यालय में रक्षा अध्ययन विभाग में अध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहे। इस सांस्कृतिक संस्था द्वारा अनेकानेक नाट्य-प्रस्तुतियां जनपद में और जनपद के बाहर भी दी गईं। अभय अंकल नैसर्गिक रूप से बहुत बेहतरीन संयोजक थे। इस संयोजन क्षमता के पीछे उनका बुद्धि कौशल तो था ही, उससे बड़ी थी टीम भावना। वर्ष 2004 की बात है।
एक दोपहर अभय अंकल का फोन आया कि तुरंत विभाग में आओ। एक पत्र उन्होंने हमारे सामने रखते हुए कहा कि एक नेशनल सेमिनार करवाना है। तुम बताओ क्या काम करोगे इसमें? हमने कहा कि जो भी काम हमारे लायक समझें। इस पर अंकल ने कहा कि हमें पता है कि तुम सभी काम बेहतर ढंग से कर सकते हो पर जिसमें तुम्हारी रुचि हो वो बताओ। कुछ देर इधर-उधर की बातों के बाद अंकल ने कहा कि तुम स्मारिका का काम देख लो। इनकार का कोई मतलब ही नहीं था। अंकल द्वारा बस इतना बताया गया कि इस पर इतना बजट खर्च करना है और इतने पेज की बनना है। हम प्रतिदिन अपने काम के बारे में अंकल को बताते तो वे कहते कि जब फाइनल हो जाये तभी बताना। फाइनल होते-होते एक समस्या एकदम अंत में आ गई। अभय अंकल द्वारा बताये गए पेज से एक पेज अधिक हो रहा था। इसका कारण भी अभय अंकल द्वारा दिया गया सन्देश था। एक दिन बड़े झिझकते हुए उनको बताया तो बोले कि जब पूरा सम्पादकीय अधिकार तुम्हारे पास है तो झिझको नहीं, अपना काम करो।
बस फिर क्या था, अभय अंकल के सन्देश पर भी सम्पादकीय कैंची चला दी गई। उन्होंने और राजेन्द्र निगम अंकल ने स्मारिका प्रकाशित होने के ठीक एक दिन पहले उसका फाइनल रूप देखा और बहुत आशीर्वाद दिया। इस पूरे काम को करके इतनी ख़ुशी मिली जो व्यक्त नहीं की जा सकती। कारण, काम करने की पूरी स्वतंत्रता मिलना था। इस घटना ने एक सीख दी कि यदि काम सहज रूप में सफलता के साथ पूर्ण करवाना है तो अपनी टीम पर विश्वास करते हुए उसे पूरी तरह से स्वतंत्र कर देना चाहिए। आज उनकी स्मृति में आयोजित संगीत निशा के दौरान अभय अंकल बार-बार स्मृति-पटल पर उभरते रहे, आंखों को नम करते रहे, होंठों पर मुस्कान लाते रहे। सादर नमन।
साभार : कुमारेंद्र डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम

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