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रोजगारोन्मुखी बजट

09:00 AM Jul 24, 2024 IST

मोदी सरकार की तीसरी पारी के पहले आम बजट में रोजगार के लक्ष्यों को प्राथमिकता दी गई है। दरअसल, हाल ही के लोकसभा चुनावों में भाजपा के निराशाजनक प्रदर्शन के मूल में रोजगार संकट बड़ी वजह बताया गया। तभी तीसरी पारी के बजट का मूलमंत्र रोजगार सृजन रहा। कहीं न कहीं युवा मतदाताओं को संतुष्ट करने हेतु बजट में नौकरियों व कौशल विकास को प्राथमिकता दी गई है। इसी क्रम में विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार सृजन हेतु योजना लाई गई। महत्वपूर्ण बात यह कि अगले पांच सालों में करीब एक करोड़ युवाओं के कौशल विकास हेतु शीर्ष पांच सौ कंपनियों में इंटर्नशिप के मौके मुहैया कराने की घोषणा की गई। वहीं दूसरी ओर औपचारिक क्षेत्र के कार्यबल का हिस्सा बनने पर युवाओं को एकमुश्त राशि का योगदान भविष्य निधि में किया जाएगा। मोदी सरकार की तीसरी पारी में रोजगार को प्राथमिकता का पता इस बात से चलता है कि पांच योजनाओं के जरिये रोजगार व कौशल विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के लिये दो लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। निस्संदेह, कौशल विकास को प्राथमिकता की योजना एक सार्थक कदम है, लेकिन यह सरकार की प्रतिबद्धता व उद्योगों के सहयोग पर निर्भर करेगा। नई नौकरियों की सृजन क्षमता रखने वाले सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्यमों पर बजट में विशेष ध्यान दिया गया। यह प्रयास आत्मनिर्भर भारत की सोच के साथ ही वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ाने और नई नौकरियां पैदा करने में सक्षम होगा। कहीं न कहीं अपने मूल मध्यमवर्गीय वोट बैंक के दृष्टिगत वेतनभोगी कर्मियों को कर में राहत व सेवानिवृत्त कर्मियों की पेंशन में मानक आयकर कटौती की सीमा घटाकर संबल दिया गया। इस कदम से चार करोड़ कर्मियों व पेंशनभोगियों का फायदा होने की बात कही जा रही है। वहीं गठबंधन धर्म का पालन करते हुए बिहार व आंध्रप्रदेश के सत्तारूढ़ दलों की आकांक्षा के अनुरूप विशेष वित्तीय पैकेजों की घोषणा अपरिहार्य थी।
बहरहाल, राजग सरकार ने कृषि क्षेत्र के विकास लिये नया रोडमैप इस बजट के माध्यम से देश के सामने रखा है। सरकार की दूसरी पारी में लंबे चले किसान आंदोलन के सबक और नये आंदोलन की सुगबुगाहट के बीच में केंद्र ने किसान व कृषि को अपनी प्राथमिकताओं में रखा है। बजट के जरिये किसानों की आय में स्थिरता, उत्पादकता व आर्थिक विकास के लक्ष्य को हासिल करने पर बल दिया है। खासकर जलवायु परिर्वतन के संकट से जूझती खेती को कवच प्रदान करने की कोशिश है। दो साल के भीतर एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के लिये तैयार करने की योजना है। करीब दस हजार जैव निवेश संसाधन केंद्रों के जरिये प्राकृतिक खेती के लक्ष्यों को पाया जाएगा। हाल के दिनों में प्रतिकूल मौसम व भंडारण केंद्रों के अभाव में उपभोक्ताओं को महंगाई व किसान को नुकसान का सामना करना पड़ा है। इस मकसद से सब्जी उत्पादन बढ़ाने और आपूर्ति शृंखला को सुव्यवस्थित करने हेतु बजट में किसान उत्पादक संगठनों,सहकारी समितियों और स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है। ये संस्थाएं सब्जियों के संग्रहण, भंडारण और विपणन में सार्थक भूमिका निभाते हुए किसानों को बेहतर दाम दिलाने का प्रयास करेंगी। साथ ही फसलों को होने वाला नुकसान कम किया जाएगा। इसके अलावा उन फसलों व बागवानी की किस्मों को बढ़ावा देने का संकल्प है जो जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव को निष्प्रभावी बनाकर स्थिर कृषि उत्पादन सुनिश्चित कर सकें। साथ ही तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के मकसद से सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन व सूरजमुखी की खेती को बढ़ावा देने के उपाय बजट में प्रस्तुत किए गए हैं। जिससे तिलहन उत्पादक किसानों की आय बढ़े तथा आयातित खाद्य तेलों पर देश की निर्भरता को कम किया जा सके। ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के जरिये किसानों की भूमि, ऋण व वित्तीय सेवाओं को चुस्त-दुरुस्त बनाने का प्रयास होगा। इसके बावजूद सरकार को इन योजनाओं के क्रियान्वयन की बाधाओं को प्राथमिकताओं के आधार पर दूर करना होगा। बहरहाल, इस बजट से एक बात तो तय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकताओं में बदलाव आया है। वहीं पूंजीगत व्यय में वृद्धि और राजकोषीय घाटा कम करने का प्रयास सराहनीय है।

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