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कांवड़ यात्रा मार्ग पर नाम प्रदर्शित करने के आदेश से छोटे कामगारों का रोजगार प्रभावित

11:34 AM Jul 21, 2024 IST
मुजफ्फरनगर में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी एक आदेश के बाद कांवड़ मार्ग पर उन दुकानों के पास से गुजरते हुए कांवड़िये जिन पर दुकानदारों के नाम के बैनर लगाए गए हैं। पीटीआई फोटो
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मुजफ्फरनगर (उप्र), 21 जुलाई (भाषा)

Kanwar Yatra route: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिला पुलिस द्वारा हाल ही में कांवड़ यात्रा मार्ग पर खाने-पीने की सभी दुकानों पर मालिकों का नाम प्रदर्शित करने का आदेश जारी किये जाने के बाद इन स्थानों पर नौकरी करने वाले छोटे कामगारों का रोजगार प्रभावित हो गया है और उन्हें अस्थायी रूप से निकाल दिया गया है।

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मुस्लिम समुदाय के लोगों के स्वामित्व वाले कई भोजनालयों में, अतिरिक्त कर्मचारियों को अस्थायी रूप से निकाल दिया गया है, जबकि हिंदू भोजनालय के मालिकों ने भी कम से कम कांवड़ यात्रा की अवधि तक के लिए मुस्लिम कर्मचारियों को अस्थायी रूप से हटा दिया है।

दिहाड़ी मजदूरी करने वाले बृजेश पाल पिछले सात वर्षों से सावन माह से कुछ हफ्ते पहले मुजफ्फरनगर जिले के खतौली क्षेत्र में सड़क किनारे भोजनालय (ढाबा) में हेल्पर के रूप में काम करता था। उसके ढाबे का मुस्लिम मालिक कांवड़ियों की बढ़ती संख्या को संभालने के लिए पाल को करीब दो माह की अवधि के लिए अपने यहां नौकरी पर रखता था।

पाल रेस्तरां में अतिरिक्त ग्राहकों का प्रबंधन करने में मदद करता और बदले में उसे प्रतिदिन 400-600 रुपये और कम से कम दो वक्त का भोजन मिलता था।

पाल ने अपनी परेशानियों के बारे में ‘पीटीआई-भाषा' को बताया, "यह आय का एक अच्छा स्रोत था क्योंकि इस मौसम में अन्य काम मिलना बहुत मुश्किल है। चूंकि मानसून के समय में निर्माण और कृषि कार्य ज्यादा नहीं होते, इसलिए ढाबे के अलावा अन्य काम मिलना मुश्किल है।”

बृजेश पाल ने बताया, "मैंने एक सप्ताह पहले ढाबे पर नौकरी के लिये गया था, लेकिन अब मालिक ने मुझे किसी अन्य स्थान पर काम की तलाश करने के लिए कहा है।"

दूसरी ओर, पाल के नियोक्ता मोहम्मद अर्सलान ने हाल ही में पुलिस के उस आदेश के बारे में शिकायत की, जिसमें कांवड़ मार्ग पर भोजनालयों और ठेलों के मालिकों से अपने आउटलेट के बाहर नाम लिखने के लिए कहा गया है।

अर्सलान ने बताया, "मेरे ढाबे का नाम इस मार्ग पर हर तीसरे ढाबे की तरह ‘बाबा का ढाबा' है, मेरे आधे से ज्यादा कर्मचारी हिंदू हैं। हम यहां सिर्फ़ शाकाहारी खाना परोसते हैं और श्रावण में लहसुन और प्याज तक का इस्तेमाल नहीं करते।”

उन्होंने कहा, “फिर भी, मुझे मालिक के तौर पर अपना नाम बताना पड़ा और ढाबे का नाम भी बदलने का फ़ैसला किया। मुझे डर है कि मुस्लिम नाम देखकर कांवड़िए मेरे यहां आकर खाना नहीं खायेंगे। इतने सीमित कारोबार में मैं इस साल अतिरिक्त कर्मचारी नहीं रख सकता।”

इस आदेश से न सिर्फ़ मुस्लिम ढाबे के मालिकों और उनके कर्मचारियों की आय में बाधा आई है, बल्कि हिंदू मालिकों के स्वामित्व वाले ढाबों में काम करने वाले मुस्लिम कर्मचारियों पर भी बुरा असर पड़ा है।

खतौली के मुख्य बाजार के बाहर सड़क किनारे ढाबे के मालिक अनिमेष त्यागी ने कहा, "मेरे रेस्त्रां में एक मुस्लिम व्यक्ति तंदूर पर काम करता था, लेकिन नाम के इस मुद्दे के कारण मैंने उसे जाने के लिए कहा। क्योंकि लोग इस पर विवाद कर सकते हैं। हम यहां ऐसी परेशानी नहीं चाहते।"

त्यागी ने बताया कि उन्होंने अपने समुदाय के एक अन्य व्यक्ति को तंदूर पर काम करने के लिए बुलाया है। कुछ अन्य ढाबा मालिकों ने भी हाल के आदेश के बारे में विस्तृत जानकारी न होने की शिकायत की।

जिले में कांवड़ मार्ग पर चाय की दुकान चलाने वाले दीपक पंडित ने कहा, "प्रशासन ने आदेश तो जारी कर दिया है, लेकिन कुछ भी स्पष्ट नहीं किया है। मालिक का नाम किस आकार और फ़ॉन्ट में लिखा जाना है, इस बारे में कोई दिशा-निर्देश नहीं हैं।"

स्थानीय लोगों ने प्रशासन और अपने क्षेत्र के निर्वाचित प्रतिनिधियों से भी संपर्क किया है। खतौली विधानसभा क्षेत्र के विधायक मदन भैया ने कहा कि उन्हें स्थानीय ढाबा मालिकों से भी शिकायतें मिली हैं, जो हाल के आदेश से प्रभावित हुए हैं।

मदन भैया राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के विधायक हैं और रालोद वर्तमान में भाजपा की गठबंधन सहयोगी है। विधायक ने कहा, "ऐसा लगता है कि नाम बताने का हालिया आदेश जल्दबाजी में जारी किया गया। इससे सबसे अधिक नुकसान गरीब दिहाड़ी मजदूरों और छोटे दुकानदारों को हो रहा है।"

उन्होंने कहा कि वे प्रभावित लोगों की मदद के लिए जमीनी स्तर पर अपने कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय कर रहे हैं। मदन ने कहा, "हमारी विचारधारा धर्म और जाति के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव के खिलाफ है।"

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