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युवाओं के लिए रोजगार सृजन बने प्राथमिकता

07:09 AM Nov 02, 2023 IST

भूपेन्द्र सिंह हुड्डा
रेत के टिब्बों, सीमित संसाधनों के बीच एक नवम्बर, 1966 को महापंजाब से जन्मे हरियाणा ने कई चुनौतियों के बावजूद खुद को खड़ा किया। मेहनतकश धरतीपुत्र किसानों की बदौलत जहां रेतीले टिब्बे हरे-भरे लहलहाते खेतों में तब्दील हुए वहीं देश की राजधानी से निकटता और उद्यमियों की कड़ी मेहनत की बदौलत इन 57 साल के सफर में हरियाणा प्रगति के पायदान चढ़ा। आज देश के 50 फीसदी यात्री वाहन और 500 से अधिक फोर्च्युन कंपनियों के मुख्यालय हरियाणा में हैं। पिछले कुछ बरस से विकास की रफ्तार के साथ सरकार रोजगार का तालमेल बैठाने में विफल रही। प्रदेश में रोजगार सृजन सरकार की प्राथमिकता में नहीं इसलिए बेराेजगारी के मामले में देश में अव्वल है। इससे हरियाणा के युवाओं की उम्मीदें धूमिल हुई हैं। दरअसल बेरोजगारी से लड़ने का हथियार केवल और केवल रोजगार पैदा करना है।
बेरोजगारी से निपटने के गंभीर प्रयास करने की बजाय ‘इवेंट मैनेजमेंट’ में उलझी भाजपा-जजपा सरकार ने 15 जनवरी, 2022 को हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोजगार अधिनियम, 2022 पेश किया था जिसके तहत निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय निवासियों के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया। लेकिन इस कानून के तहत आज तक एक भी नौकरी नहीं मिली। इस अधिनियम की वैधता और संवैधानिकता को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती मिली इसलिए सरकार का यह प्रयास भी कारगर साबित नहीं हो पाया।
बेरोजगारी का संकट कितना व्यापक है और हरियाणा के अनगिनत युवाओं को किस हद तक प्रभावित कर रहा है, इसका अंदाजा एनएसएसओ के आंकड़ों से लगाया जा सकता है कि हरियाणा देश के सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर वाले राज्यों में केरल के बाद दूसरे स्थान पर है। जुलाई, 2022 से जून, 2023 तक 15 से 29 साल आयु वर्ग में बेरोजगारी दर 17.5 फीसदी रही। जबकि, 2013-14 में कांग्रेस शासनकाल में हरियाणा में बेरोजगारी दर महज 2.5 फीसदी थी।
मानव संसाधन प्रबंधन प्रणाली (एचआरएमएस) के मुताबिक हरियाणा के विभिन्न सरकारी विभागों में 2,02,576 स्थायी सरकारी पद खाली पड़े हैं। ये हालात बड़ी चिंता का कारण हैं क्योंकि इनके नकारात्मक नतीजे हो सकते हैं। लंबे समय तक बेरोजगारी का युवाओं के भविष्य पर निगेटिव असर पड़ता है। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी बिगड़ जाता है। यह राज्य के सामाजिक ताने-बाने के लिए ठीक नहीं है। युवाओं में बढ़ता नशा और अपराध इसका जीता-जागता उदाहरण है। रोजगार की तलाश में हरियाणा के युवाओं का विदेशों में पलायन और भी चिंता का विषय है जब अवैध तरीके से माइग्रेशन करने वाले युवा अपनी जान जोखिम में डालते हैं।
हर साल औसतन 1.70 लाख युवा राज्य के विभिन्न रोजगार कार्यालयों में अपना पंजीकरण कराते हैं और 2015 से 2022 तक 14 लाख से अधिक बेरोजगार युवाओं ने रोजगार कार्यालयों में अपना पंजीकरण कराया है। हरियाणा में रोजगार के हालात बदतर हैं, पिछले 9 वर्षों में यहां बेरोजगारी दर में 7 गुना की वृद्धि ने बिहार और झारखंड जैसे राज्यों को भी पीछे छोड़ दिया है।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के मुताबिक, हरियाणा में बेरोजगारी दर 37.4 फीसदी है। हालांकि, राज्य सरकार इसके आंकड़ों को स्वीकार नहीं करती और इसे निजी एजेंसी के आंकड़े कहकर खारिज कर देती है। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के आंकड़े भी सीएमआईई के आंकड़ों का समर्थन करते हैं।
विडंबना यह है कि अपनी राजनीतिक सुविधा के मुताबिक सरकार आंकड़ों में हेराफेरी करती है। ऐसा करके वह शायद अपनी नाकामी और निष्क्रियता के अपराध बोध से बचने की आसान कोशिश कर रही है। यही कारण है कि सरकार द्वारा नीतियां बनाने के समय बेरोजगारी दर को महत्वपूर्ण इनपुट के रूप में शामिल नहीं किया जाता। यह जानकर निराशा और बढ़ जाती है कि जैसे एक मजबूर किसान को अपनी फसल औने-पौने भाव में बेचनी पड़ती है वैसे ही उच्च शिक्षित युवा चपरासी और सेवादारों जैसे ग्रुप-डी के पदों पर नौकरी के लिए मजबूर हैं। युवाओं के साथ यह एक भद्दा मजाक है। इस पर सरकार दावा करती है कि वह योग्यता के आधार पर भर्ती करती है, जो युवाओं का खुला अपमान है।
राज्य की 50 फीसदी से अधिक आबादी की आजीविका का मुख्य आधार कृषि है। हालांकि, यह क्षेत्र भी तेजी से घटती आमदन के कारण बेरोजगारी से ग्रस्त है।
दो लाख से ज्यादा खाली सरकारी पदों में, 60,000 से अधिक ग्रुप सी और डी के पद हैं। सरकार को नीति निर्माण में बेरोजगारी का प्राथमिकता के आधार पर हल करना चाहिए। स्कूलों, अस्पतालों में कर्मचारियों की कमी से जनता को आवश्यक सेवाएं नहीं मिल पा रहीं। सरकार की भर्ती एजेंसियां जैसे एचएसएससी और एचपीएससी भर्ती घोटालों में उलझी हुई हैं। इन एजेंसियों की नाक के नीचे दर्जनों पेपर लीक घोटाले हुए और कई गिरोह भर्ती परीक्षाओं को पास कराने के संगठित तंत्र के तौर पर काम कर रहे हैं।
विभिन्न स्तरों पर हजारों पदों की चयन प्रक्रिया रद्द की गई है। सत्ताईस लाख से अधिक आवेदकों को बरसों से अपनी नियुक्ति का इंतजार करना पड़ रहा है। भर्तियां या तो रोक दी गईं या फिर कोर्ट द्वारा रद्द हो गईं। हर साल नौकरी चाहने वालों की संख्या में औसतन 2.5 लाख की वृद्धि हो रही है और कछुए की चाल से होने वाली भर्तियों के चलते लगभग एक लाख युवा ‘ओवर एज’ जैसे कारणों से अयोग्य हो जाते हैं। हरियाणा कौशल रोजगार निगम के जरिये अनुबंध, तदर्थ, आउटसोर्सिंग आदि पर काम करने वाले हजारों युवाओं के भविष्य पर अनिश्चितता की तलवार हर समय लटकी रहती है।
सरकार बड़ी संख्या में खाली पड़े पदों को भरना ही नहीं चाहती जिसके कारण ही बेरोजगारी का ये कुचक्र चलता जा रहा है। इस दुश्चक्र को तोड़ने के लिए सरकार को ईमानदार, संवेदनशील और गंभीर नीतिगत प्रयास करने होंगे। कोरे लोकलुभावन जुमलों से युवाओं को रोजगार के अवसर नहीं दिए जा सकते।
ऐसे लाखों बेरोजगार युवा हैं जिन्हें रोजगार और सम्मानजनक जिंदगी की जरूरत है। लेकिन दुर्भाग्य से, मौजूदा सरकार की प्राथमिकता में ये युवा हैं ही नहीं। सरकार के इस नकारात्मक रवैये से शिक्षित युवाओं में हताशा, निराशा और गुस्सा सामाजिक सौहार्द के लिए सही नहीं है।
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लेखक हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हैं।

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