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हमदर्दी भी है दवा

06:35 AM Aug 12, 2024 IST

गाहे-बगाहे सख्त फैसलों से नीति-नियंताओं को आईना दिखाने वाले देश के मुख्य न्यायाधीश आम आदमी के प्रति कितने गंभीर और संवेदनशील हैं, बीते शनिवार उनकी टिप्पणी से यह उजागर हुआ। चंडीगढ़ के प्रतिष्ठित चिकित्सा व शोध संस्थान पीजीआई के 37वें दीक्षांत समारोह में उन्होंने जो कहा वह पूरी चिकित्सा बिरादरी के लिये आत्ममंथन को बाध्य करता है। उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में प्रवेश करने वाले युवा डॉक्टरों से कहा कि उनके लिये मरीज सिर्फ एक केस नहीं हो सकता। मरीजों को आपके स्नेह व दयालुता की उतनी ही आवश्यकता है, जितनी कि चिकित्सा पेश की आपकी विशेषज्ञता की। उन्होंने चिकित्सा के पेशे में आने वाले युवा डॉक्टरों से कहा कि वे मरीजों के साथ स्नेह का रिश्ता बनाएं ताकि वे अपना दर्द-रोग खुलकर बता सकें। उन्होंने बॉलीवुड की चर्चित फिल्म ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ का उल्लेख इस संदर्भ में किया कि फिल्म का नायक संवेदना, सहजता व प्रेरक शब्दों के जरिये मरीजों का उपचार करता था। इस तरह जस्टिस चंद्रचूड़ ने युवा डॉक्टरों को चिकित्सा पेशे में निहित सहानुभूति सेे उपचार के महत्व का अहसास कराया। उन्होंने उदाहरण स्वरूप बताया कि कैसे मुन्ना भाई बच्चों के वार्ड में बीमारी से जूझ रहे बच्चों को ‘जादू की झप्पी’ से भला-चंगा करने का अभिनव प्रयास करते थे। उन्होंने युवा डॉक्टरों से मरीजों के साथ संवेदनशील व अपनेपन का रिश्ता बनाने की बात कही। जिसका मनोवैज्ञानिक रूप से मरीजों के उपचार में सकारात्मक प्रभाव नजर आता है। इन तथ्यों को आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में भी स्वीकार किया जाता है।
निश्चित रूप से मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने चिकित्सा बिरादरी को इस पवित्र पेशे के सनातन मूल्यों से रूबरू कराया। उन्होंने इस बात का अहसास कराया कि एक मरीज के लिये मीठे व हमदर्दी के बोल उपचार का भी काम करते हैं। इतना ही नहीं उन्होंने न्यायिक व्यवस्था के वास्तविक लक्ष्यों का भी जिक्र किया। जस्टिस चंद्रचूड़ ने युवा डॉक्टरों से कहा कि कानून व चिकित्सकों का पेशा एक जैसा ही है। जैसे किसी वादी को न्याय देने के लिये हमें जांच रिपोर्ट और साक्ष्यों की जरूरत होती है, उसी तरह चिकित्सा के पेशे में मरीज की जांच रिपोर्ट सही उपचार में निर्णायक होती है। लेकिन इन दोनों पेशों का अंतिम मकसद जनता की सेवा ही है। दोनों व्यवसायों में आम आदमी के साथ न्याय व कल्याणकारी उपचार हेतु ही कार्य किया जाना चाहिए। यह सुखद ही है कि देश की शीर्ष अदालत के मुखिया ने बेहद सहजता व साफगोई से चिकित्सा पेशे के मर्म व पेशागत मूल्यों से नवोदित चिकित्सकों का साक्षात्कार कराया। निस्संदेह, मरीजों के प्रति संवेदनशीलता व हमदर्दी की इसी सोच के चलते डॉक्टरों को दूसरा भगवान भी कहा जाता है। इस विश्वास का घोर व्यावसायिक कारणों से क्षरण महसूस किया जाता रहा है। यह भी हकीकत है कि पीजीआई जैसे चिकित्सा संस्थानों में कई राज्यों के मरीजों के भारी दबाव का चिकित्सकों की कार्यशैली पर प्रभाव पड़ता है, लेकिन पेशागत अहसासों के चलते मरीज उनसे मधुर व हमदर्दी के व्यवहार की उम्मीद हरदम करते हैं। जिसका जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने संबोधन के जरिये बखूबी अहसास कराया है।

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