मन के भाव, अभाव और प्रभाव
प्रदीप मिश्र
सदा सर्वदा संतोषी बाबू अचानक बदल गए हैं। अकिंचन संतोषी बाबू शुरू से ऐसे नहीं थे। बीसवीं सदी में वह अभाव में पल कर बड़े हुए थे। धीरे-धीरे वह सांसारिक मोह-माया से दूर विरक्त हो गए। उनकी आसक्ति इतनी ही रह गई कि वह प्रतिदिन मन, कर्म, विचार से समाज में अज्ञानता के नाश की कामना करते। अभाव नष्ट होने की इच्छा रखते। अयोग्यता के कष्ट से मुक्ति की मंशा जताते। अशुद्धि दूर करने की प्रार्थना करते। आशक्ति खत्म करने का निवेदन करते। इस कारण वह ख्यात हो गए थे।
बताते हैं कि उनमें परिवर्तन के संकेत बीते दिनों एक उम्मीदवार से मुलाकात के बाद दृष्टिगोचर होने लगे थे। संतोषी बाबू ने नेता से हुई मुलाकात-बात के बारे में पूछने पर भी प्रतिक्रिया नहीं दी। हां, उनकी क्रिया पहले जैसी नहीं रह गई थी। संदेह निवारण के लिए प्रयास करने पर ज्ञात हुआ कि उम्मीदवार ने उन्हें उनके अभावों का स्मरण कराया। संतोषी बाबू को भाव देकर तिरस्कार के दायरे से निकाला। वोट बैंक के लिए नमस्कार करते हुए पुरस्कार के लिए उनका नाम उछाला।
इसी में तय हुआ कि जो भी संभव हो, आत्मसात करो। विषमताओं-अभाव पर बात करो। खुद की कथनी-करनी पर चर्चा करो। मिलने की आस-विश्वास के लिए खर्चा करो। पृथक पहचान के लिए कोई भी काम करो। कम हो या ज्यादा, साम दाम दंड भेद से अपना नाम करो। आकांक्षाएं फलीभूत करने के लिए पुख्ता इंतजाम करो। दोनों में तय हुआ कि संवाद करो। विवाद करो- परिवाद करो। कारण यह कि वोट बैंक चुनाव में कुछ न कुछ कर देता है। जातीय स्वाभिमान से भर देता है। बिसात पर वादों की बरसात है। दिमाग से दिल तक गारंटियों की घंटियां बज रही हैं। वोट बैंक की बातें सुनने के बाद आश्वस्ति नहीं होती कि इनकी, उनकी, सबकी समस्याओं का हल होगा। फिर भी अच्छे दिनों की आस में हजारों उम्मीदें सज रही हैं। बस, सब के इरादे एक जैसे नहीं हैं। इसीलिए लगता है कि सब ईमानदार और नेक जैसे नहीं हैं। संतोषी बाबू सोचते हैं कि वोट बैंक है तो वोटरों को अपने इस धन पर ब्याज मिलना चाहिए। गारंटी के पीछे तो वोट लेने की मंशा है।
संतोषी बाबू ने देशहित में अपील की है। कहा है, नोट खर्च हो रहे हैं। वोट खर्च हो रहे हैं। बैंक खाली होते ही जिक्र करने वाले गायब हो जाएंगे। फिक्रमंद सावधान हो जाएंगे। आगे जो होगा, देखा जाएगा। जैसा बीज बोएगा, वैसी ही फसल पाएगा। अब आ गई अपनी बारी। बखूबी निभाएं जिम्मेदारी। वोट जरूरी है। चोट जरूरी है। बहानों की ओट मत लीजिए। आत्मा बेचने के लिए नोट मत लीजिए। सबकी सुनना है। एक ही चुनना है। खोटा देखिए, खरा देखिए। अवसर है तो इसका प्रयोग करिए।