स्ट्रेचिंग से छूमंतर करें जोड़ों का दर्द
आजकल जीवन सुविधाजनक हो गया है व सक्रियता में कमी आयी है। लगातार एक पोश्चर में बैठे या खड़े रहने के चलते हड्डियों के जोड़ों में दिक्कतें आ रही हैं। निष्क्रियता का असर नसों पर भी पड़ता है। ऐसे में कुछ मिनट की स्ट्रेचिंग काफी मददगार हो सकती है यदि इसे दिनचर्या में शामिल कर लिया जाये।
संदीप पांडे
स्ट्रेचिंग से जुड़े व्यायाम चाहे वे योगासन हों या अन्य अभ्यास, शरीर को ज्यादा लचकदार बनाते हैं वहीं इनसे मसल्स में खून का प्रवाह तेज गति से होता है। दरअसल, शारीरिक और मानसिक सेहत की बेहतरी के लिए स्ट्रेचिंग एक आसान सा उपाय है हालांकि इसके फायदे जबरदस्त हैं। भवि के पैरों में अचानक दर्द बढ़ने लगा था। उसने फिजियोथैरेपी कराने का फैसला किया। फिजियोथैरेपिस्ट ने झट से अंदाजा लगा लिया कि यह कोई कठिन व बड़ी समस्या नहीं है। फिजियोथैरेपी के तौर पर उसे केवल आलती-पालथी मार कर बैठने की कुछ एक्सरसाइज कराई गयी। उसे इस प्रक्रिया से पहली ही बार में आराम आ गया। दरअसल भवि को एक पखवाड़े तक लंबी यात्रा के दौरान बैठे रहना पड़ा। खानपान भी गरिष्ठ था। मीठा भी अधिक हो गया। यात्रा से लौटकर भी आराम ही किया। इस कारण पैर की मांसपेशियां एकदम सख्त हो गईं और चलना भी भारी महसूस होने लगा। अब भवि ने संकल्प लिया कि प्रतिदिन कुछ मिनट की स्ट्रेचिंग जरूर किया करेगी चाहे कितनी भी व्यस्तता हो। घर-बाहर कहीं भी हो, हर जगह वह स्ट्रेचिंग करने की स्वास्थ्यवर्द्धक हैबिट को दिनचर्या में शामिल करेगी।
हर चौथे इंसान को शरीर में जकड़न की दिक्कत
इन दिनों हर चौथे इंसान को शरीर में जकड़न तथा हाथ-पैरों के सुन्न होने की समस्या महसूस होने लगी है। इसका कारण है बैठे हुए किये जाने वाले कामों की व्यस्तता और आलस के कारण बिखरी हुई सुस्त जीवन शैली। हर काम सुविधाजनक तरीके से हो रहा है। पैदल चलने-फिरने की आदत छूट सी गयी है। शारीरिक श्रम बिल्कुल है ही नहीं। इस तरह की जीवनचर्या में शरीर गतिमान नहीं रहता। लंबे समय तक ऐसी ही जीवनशैली रहे तो जोड़ों का लचीलापन कम होने लगता है। साथ ही इन सब कारणों से शरीर की मांसपेशियों में कठोरता भी पैदा होने लगती है।
इस मामले में स्ट्रेचिंग सबसे अधिक लाभदायक साबित होती है। यह शरीर को फिट बनाती है। सबसे अच्छी बात यह है कि स्ट्रेचिंग कभी भी की जा सकती है। चाहे घर हों या ऑफिस में, दिन हो या रात। यहां तक कि सफर के दौरान भी स्ट्रेचिंग करने का वक्त आप निकाल सकते हैं। बशर्ते स्ट्रेचिंग की जरूरत आप मन से महसूस करते हों। हालांकि जब आप सुबह सोकर जागते हैं तब स्ट्रेचिंग के लिए सबसे अनुकूल समय होता है। इसके अलावा भोजन से दो घंटे पहले और भोजन के तीन घंटे बाद कभी भी स्ट्रेचिंग की जा सकती है। वजह है पेट का खाली होना ताकि पाचन की प्रक्रिया से शारीरिक प्रणाली फ्री हो। यहां तक कि सोने से पहले भी अगर दो मिनट की स्ट्रेचिंग की जाती है तो यह आरामदायक नींद के लिए मददगार साबित होती है। शरीर बेहद महत्वपूर्ण है। इसका लचीलापन गति के लिए अनिवार्य है। इसके प्रति समर्पित होना ही चाहिए। शरीर में किसी तरह की कठोरता न हो। हाथ-पैर दर्द से मुक्त हों तो इससे अच्छा भला और क्या हो सकता है।
सूर्य नमस्कार तथा योगासन
स्ट्रेचिंग के लिए कोई विशेष नियम आदि नहीं हैं। साथ ही इसे सीखना इतना भी मुश्किल नहीं है। सूर्य नमस्कार तथा योगासन भी बेहतरीन स्ट्रेचिंग अभ्यास माने गये हैं। इसको आरंभ करने से पहले हल्का सा कदमताल या टहलना उत्तम रहता है। दीवार के सहारे हाथ पैर को खींचना एक सरल और उपयोगी स्ट्रेचिंग है। इससे टाइट हो रही मांसपेशियों में खुलापन आता है। गर्दन आराम से दायें-बायें भी घूमती है। इस तरह की स्ट्रेचिंग से अच्छे हार्मोन का स्राव होने लगता है। मन प्रसन्न होता है। साथ ही तनाव कम होने लगता है। एक हाथ का सहारा लेकर दूसरा हाथ खींचना और इस प्रक्रिया को दो-तीन बार दोहराने से तुरंत असर भी होता है। दरअसल स्ट्रेचिंग का यही आनंद है और लाभ भी कि यह बहुत अधिक मेहनत के बिना भी शरीर के अंगों की गति को बनाकर रखती है। विशेष रूप से जो लोग हर रोज आठ से दस घंटे स्क्रीन के आगे बिताते हैं। उनके लिए कुछ मिनट की स्ट्रेचिंग वरदान से कम नही है।