बिजली पैदा करने वाली बिल्ली मछली
के.पी. सिंह
प्रत्येक जीवित प्राणी में विद्युत उत्पन्न करने वाली मांसपेशियां होती हैं। विश्व की विद्युत उत्पन्न करने वाली सभी मछलियों में तीन प्रमुख हैं— बिल्ली मछली, विद्युत ईल और विद्युत रे। विद्युत उत्पन्न करने वाली बिल्ली मछली को अंग्रेजी में इलेक्ट्रिक कैट फिश कहते हैं।
आस्ट्रेकोडमर्स को जीव वैज्ञानिकों ने विद्युत उत्पन्न करने वाली मछलियों का पूर्वज माना है। यह मछली लगभग 30 करोड़ साल पहले ही धरती से विलुप्त हो गई थी। बिल्ली मछली उष्णकटिबंधीय अफ्रीका की नदियों और झीलों में पायी जाती है। यह नील नदी की घाटी में बहुतायत से मिलती है। यह एक मध्यम आकार की मछली है, जिसकी लंबाई 90 सेंटीमीटर से लेकर 1.5 मीटर तक होती है। कभी-कभी इससे ज्यादा लंबी विद्युत बिल्ली मछली भी देखने को मिलती है। इसका वजन 20 से 25 किलोग्राम तक होता है। इसके पीठ और शरीर के ऊपर का भाग कत्थई रंग का होता है, नीचे के भाग का रंग मांस के रंग का होता है। आंखें छोटी तथा मुंह के चारों ओर तीन जोड़ी मूछें होती हैं। इन मूछों के कारण इसे बिल्ली मछली कहा जाता है।
इसके शरीर पर पीठ के मीन पंख नहीं होते। विद्युत उत्पन्न करने वाली बिल्ली मछली के विद्युत उत्पादक अंग अनेक भागों में बंटे होते हैं। शरीर पर बहुत-सी प्लेटें होती हैं और हर प्लेट उसकी रीढ़ की हड्डी से जुड़ी होती है। इसका घनात्मक सिरा शरीर के आगे की और ऋणात्मक सिरा शरीर के पीछे वाले भाग पर होता है। इसके अंगों की संरचना जनरेटरों की तरह होती है और ये उसी की तरह काम करते हैं। यह बहुत शक्तिशाली बिजली उत्पन्न करती है। एक बड़े आकार की विद्युत उत्पन्न करने वाली बिल्ली मछली 350 वोल्ट तक की विद्युत उत्पन्न कर सकती है। इसका स्पर्श हो जाने से तेज झटका लगता है। इसे यदि एक्वेरियम में रख लिया जाए तो इसके शरीर की विद्युत से दूसरी मछलियां बेहोश हो जाती हैं और कभी-कभी उनकी मौत हो जाती है।
यह एक तेज और चालाक शिकारी मछली है। दिन के समय पौधों के बीच या चट्टानों की दरारों में छिपी रहती है और रात के समय शिकार पर निकल पड़ती है। पूरी तरह मांसाहारी यह मछली छोटे-छोटे कृमि, ताजे पानी के झींगा-झींगी तथा छोटी मछलियों को अपना आहार बनाती है। शिकार की टोह में निकलने के बाद शिकार दिखाई देने पर ये धीरे-धीरे तैरकर उसके करीब पहुंच जाती है और बिजली की तेजी से उस पर झपट पड़ती है और अपने मजबूत जबड़ों में दबोच लेती है। कोई भी शिकार इसकी पकड़ में आने के बाद बच नहीं पाता, अगर बच भी जाए तो तेज करंट के कारण अचेत हो जाता है और फिर यह उसे आराम से खा लेती है। एक्वेरियम में रखने पर यह दूसरी मछलियों को बहुत परेशान करती है। यही कारण है बड़ी मछली के साथ इसके छोटे बच्चे ही एक्वेरियम में रखे जाते हैं। बड़े होने पर उन्हें नदियों में छोड़ दिया जाता है। इसकी लड़ाकू प्रवृत्ति के कारण इसे पालतू नहीं बनाया जा सकता।
इस मछली में नर और मादा की शारीरिक संरचना एक जैसी होती है और ये दिखने में भी एक जैसे लगते हैं। प्रजनन काल में उत्पादक अंगों की सहायता से नर मादा की खोज करता है और इसके बाद ये प्रजनन करते हैं। कहा जाता है कि इस मछली के विषय में मिस्र के लोगों को प्राचीनकाल से ही इसकी जानकारी थी। वे इसके प्रति श्रद्धा रखते थे। अफ्रीका में अनेक स्थानों पर इस मछली को रोगों की चिकित्सा में इस्तेमाल में लाया जाता है और इससे दवाइयां तैयार की जाती है।
इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर