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चुनाव व आईपीएल, कारोबार हर हाल में

08:09 AM Mar 27, 2024 IST
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आलोक पुराणिक

स्मार्ट यूनिवर्सिटी ने कारोबार विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया, इसमें प्रथम पुरस्कार विजेता का विवरण इस प्रकार है- गर्मी, आईपीएल और चुनाव–सबकी शुरुआत हो चुकी है।
गर्मी का कारोबार शुरू हो चुका है; पंखे, एयरकंडीशनर वगैरह की बिक्री के इश्तिहार आना शुरू हो गये हैं। आईपीएल तो विशुद्ध कारोबार हैै। और चुनाव तो इस देश में परमानेंट कारोबार हैं। कुल मिलाकर दुनिया कारोबार है, कारोबार की ही दुनिया है।
चुनाव से पहले ही ओपिनियन पोल का धंधा शुरू हो गया था। ऐसे-ऐसे एक्सपर्ट सरकार बनने बनाने पर राय दे रहे हैं, जिनकी कभी भी कोई भी राय सही साबित ना हुई। एक्सपर्ट लोग बार-बार गलत बोलते जाते हैं क्योंकि उन्हें पब्लिक की कमजोर याददाश्त पर पक्का भरोसा होता है। याददाश्त अगर मजबूत हो तो ना नेता और ना ओपिनियन पोल एक्सपर्ट अपना काम चला सकते। याददाश्त अगर नेता की मजबूत हो, तो याद रहेगा कि जिस पार्टी के साथ इस चुनाव में गठबंधन हो रहा है, उस पार्टी के नेता तो हमें जाने कितनी गाली दे चुके हैं। नेता गाली याद ना रखता, सिर्फ कुरसी मिलने की संभावना देखता है। पुरानी गालियों को याद रखे नेता तो पालिटिक्स नहीं हो सकती।
पब्लिक की याददाश्त तेज हो जाये, तो कईयों के धंधे चौपट हो जायें। पब्लिक को याद क्यों ना रहता। जी पब्लिक क्या-क्या याद रखे। रोज बीस सीरियल देखती है पब्लिक। यह सब याद रखना ही बहुत मुश्किल है। सीरियल के कैरेक्टर याद रखो, नेताओं के बयान याद रखो, किस पोल एक्सपर्ट ने किसकी सरकार बनायी- इसे याद रखो। कितना याद रखें जी। यह सब भूलना उसके हित में है।
आईपीएल के रिकार्ड याद रखने का तो कोई मतलब ही नहीं है। आईपीएल का कोई आफिशियल रिकार्ड रखा ही नहीं जाता। आईपीएल कुल मिलाकर गली मुहल्ले क्रिकेट का बड़ा संस्करण है, जिसमें कोई आफिशियल क्रिकेट नहीं है। लोकल पार्क में गुप्ताजी और शर्माजी संडे की संडे क्रिकेट खेलते हैं, उन्हें एकाध दिन बाद खुद ही याद ना रहता कि संडे के मैच में कितने रन बनाये थे। संडे क्रिकेट मस्ती की पाठशाला होता है। आईपीएल भी बस मस्ती की पाठशाला है, नाच गाना देखो, चीयर लीडर डांस देखो। रन बने या नहीं बने, कैच पकड़े गये या नहीं, ये रिकार्ड रखने की जरूरत ही नहीं है। आईपीएल के साथ चुनाव हो रहे हैं। आईपीएल और चुनावों के बीच जाइंट वेंचर होना चाहिए।
आईपीएल के मैचों में ही चुनावी रैलियां आयोजित की जा सकती हैं। कई नेताओं को सुनना पसंद नहीं करती पब्लिक। आईपीएल के मैचों में चीयर लीडर डांस देखने बहुत लोग जाते हैं, वहीं कमजोर नेताओं की रैलियां कर दी जायें। सबका भला हो।

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