For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.

राष्ट्रवाद, विकास और आरक्षण का चुनावी दांव

06:52 AM Dec 09, 2023 IST
राष्ट्रवाद  विकास और आरक्षण का चुनावी दांव
Advertisement

प्रदीप मिश्र

उत्तर भारत के तीन राज्यों में चुनाव जीतने से उत्साहित भाजपा केंद्रशासित जम्मू-कश्मीर में अगले वर्ष लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई लगती है। गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन और आरक्षण से संबंधित संशोधन विधेयक पारित करवा कर पूर्ववर्ती राज्य में पांच अगस्त, 2019 के बाद हुए बदलाव और विकास को बहस का मुद्दा बना दिया है।
उन्होंने जम्मू-कश्मीर में अधिकारों से वंचित पिछड़ों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों, कश्मीरी पंडितों और पीओजेके शरणार्थियों को आरक्षण देकर उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने की प्रभावी पहल कर दी। अनुच्छेद 370 इसमें बाधा थी। इसी कारण यहां मंडल आयोग की सिफारिशों के मुताबिक ओबीसी को तीन दशक बाद भी आरक्षण नहीं दिया जा सका।
आतंकी घटनाओं में 70 फीसदी की कमी, पर्यटकों की संख्या दो करोड़ से ज्यादा होने और प्राकृतिक संसाधनों के समुचित इस्तेमाल के लिए निवेश बढ़ने के आंकड़ों के बहाने उन्होंने 2024 पर निगाह का स्पष्ट संकेत दे दिया। यही वजह है कि उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से लेकर केंद्र सरकार के नुमाइंदे दावा करने लगे हैं कि 2026 तक आतंकवाद का खात्मा जड़ से कर दिया जाएगा। नि:संदेह, जम्मू-कश्मीर में काफी कुछ बदला है। उद्योगों के लिए 56 हजार करोड़ रुपये के प्रस्ताव हैं। कुल 26 हजार करोड़ के काम शुरू हो चुके हैं। दो साल में 350 से ज्यादा फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। श्रीनगर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद एक मल्टीप्लेक्स और चार सिनेमाहॉल खुल चुके हैं। दुबई का इमर समूह श्रीनगर में 500 करोड़ रुपये से मॉल बना रहा है। जी-20 के आयोजन से जम्मू-कश्मीर को नई अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली है। श्रीनगर में 35 साल बाद पहली बार दशहरे पर शोभायात्रा निकाली गई तो शिया समुदाय 33 साल बाद मोहर्रम पर जुलूस निकाल सका। सीमावर्ती इलाकों में दिवाली मनाई गई।
यही कारण है कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद सेना पर ज्यादतियों का आरोप लगाने के बाद चर्चा में आई जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ की पूर्व उपाध्यक्ष शेहला राशिद को अब यहां अमन-चैन लगने लगा है। एक तरह से वह सियासी फायदा उठाने के लिए जम्मू-कश्मीर के लिए भाजपा की अघोषित ब्रांड एंबेसडर बन रही हैं। दूसरी ओर भाजपा के लिए राम मंदिर, समान नागरिक संहिता और अनुच्छेद 370 की ही तरह पाकिस्तान के कब्जे से पीओजेके वापस लेना राष्ट्रवाद का अहम मुद्दा है। संसद के दोनों सदनों में 22 फरवरी, 1994 को पीओके वापसी का सर्वसम्मत संकल्प लिया गया था। उस समय कांग्रेस के पीवी नरसिंहराव प्रधानमंत्री थे।
केंद्र ने अनुसूचित जातियों को नौ और अनुसूचित जनजातियों को सात सीटों के लिए राजनीतिक आरक्षण देकर सामाजिक न्याय देने की अवधारणा की ओर एक कदम बढ़ाया है। अनुसूचित जातियों को तो पहली बार आरक्षण दिया गया है। पहाड़ी समुदाय की कई जातियों को अनुसूचित जनजाति का हिस्सा बनाया गया है। इन समूहों को नौकरियों में तो आरक्षण मिलता था लेकिन राजनीतिक आरक्षण से वंचित रखा गया था। इसके लिए जुलाई में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सूची का विस्तार किया गया था। इसी तरह ओबीसी आरक्षण की बाधाओं को दूर करने के लिए अनुच्छेद 370 हटने के बाद 2004 के राज्य सरकार के आरक्षण अधिनियम में बदलाव किया गया था। आयोग बनाकर इसका आकलन किया गया। माना जा रहा है कि यहां की 40 फीसदी आबादी पिछड़ा वर्ग के दायरे में है। कश्मीरी पंडितों के लिए दो और पीओजेके के प्रतिनिधित्व के लिए एक सीट मनोनयन कोटे में आरक्षित की गई है।
कश्मीरी पंडितों में एक महिला की नियुक्ति अनिवार्य होगी। कश्मीरी पंडितों के रूप में जम्मू-कश्मीर में 46,631 परिवार हैं। इनसे जुड़े 1,58,976 लोग बतौर परिजन पंजीकृत हैं। इसी तरह कश्मीरी विस्थापितों की संख्या 41,884 है। गौरतलब है कि 2018 के पंचायत चुनाव में भाजपा ने प्रत्याशियों के तौर पर महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिया था।
भाजपा जानती है कि 370 हटाए जाने के बाद राजकाज, कारोबार, नौकरियों और जमीन-जायदाद की खरीद में देश के अन्य राज्य के लोगों का दखल बढ़ने से जम्मू की जनता में ही जद्दोजहद नहीं है, कश्मीरी अवाम भी कशमकश में है। राष्ट्रीय मुद्दों आतंकवाद-अलगाववाद से सुरक्षा, स्थिर सरकार, सुशासन के प्रभाव में स्थानीय मुद्दे गौण हो जाएंगे। ऐसे में पार्टी राष्ट्रवाद, विकास कार्य, निवेश और आरक्षण को मुद्दा बनाकर पहली बार अपने बल पर सरकार बनाने का इनाम चाहती है। विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक आजाद पीपुल्स पार्टी, अपनी पार्टी, पीपुल्स कान्फ्रेंस आदि परोक्ष रूप से उसके मददगार होंगे। नेशनल कान्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और कांग्रेस ‘इंडिया’ के बैनर तले एक साथ लड़ने का दमखम ठोकेंगे। वैसे यह जानना जरूरी है कि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के जुलाई-सितंबर, 2023 के आंकड़े बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर के शहरी इलाकों में 15 से 29 वर्ष के आयु वर्ग में बेरोजगारी की दर 29.8 प्रतिशत रही है, जो देश में तीसरे स्थान पर है।
माना जा रहा है कि अनुच्छेद 370 और 35ए खत्म करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 11 दिसंबर को सुप्रीमकोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ फैसला सुना देगी। पीठ ने पांच सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। फैसले के बाद भाजपा की चुनावी तैयारी जहां तेज हो जाएगी, वहीं चुनाव आयोग भी प्रक्रिया शुरू कर सकता है। चुनाव आयोग के लिए लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव कराना सुविधाजनक होगा, वहीं प्रशासन के लिए भी यह सुरक्षा और खर्च के हिसाब से किफायती होगा। चुनाव आयोग इस चुनाव के बाद एक देश एक चुनाव की पहल को भी आगे बढ़ा सकता है।

Advertisement

Advertisement
Advertisement
Advertisement
×