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जीत के नुस्खों का चुनावी मनोरंजन

06:25 AM Oct 16, 2023 IST
क्षमा शर्मा

पांच विधानसभाओं यथा- राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, मिजोरम के चुनाव आ पहुंचे हैं। जल्दी ही 2024 में लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं। हमारे यहां चुनाव बहुत से पश्चिमी देशों से अलग होते हैं। स्विट‍्ज़रलैंड में तो चुनाव में वोट हाथ खड़े करके ही डाल दिए जाते हैं। वहां न मतपत्रों का लफड़ा है न ईवीएम का। इसलिए अक्सर चुनावों में हुई बेईमानी का रोना भी नहीं रोता है।
जब से टीवी की क्रांति हुई है, चैनल्स चौबीस सात के हिसाब से काम करने लगे हैं, सोशल मीडिया आ पहुंचा है, और अखबारों की उपस्थिति घरों में बहुत बढ़ी है तब से चुनाव बहुत ही रोचक मोड में आ गए हैं। यह एक ऐसी लम्बी सुपरहिट फिल्म है जो महीनों तक चलती है। हर रोज एक नया नायक और नायिकाएं जन्म लेती हैं। दिलचस्प है कि अभी मंच पर जिसे नायक बनाया गया है, मीडिया में जिसकी खूब बाइट्स चली हैं, वह अगले ही पल खलनायक में तब्दील कर दिया जाता है। हिंदी फिल्मों का बड़े से बड़ा स्कि्रप्ट राइटर वह मनोरंजन पैदा नहीं कर सकता जो चुनाव करते हैं। और इसे आप बिना कहीं आए जाए, बिना समय बर्बाद किए, बिना टिकट खरीदे, हर वक्त देख सकते हैं। इसमें बाक्स आफिस की चिंता भी नहीं करनी पड़ती। हां हार-जीत का, नफे-नुकसान का पता जरूर चलता रहता है। भांति-भांति के चरित्र दिखाई देते हैं। अभी किसी ने मंच से भाषण में अपने शब्दों से किसी को दो लप्पड़ लगाए। फिर अगली जगह कोई दूसरा बोलने आया तो उसने खींचकर पांच लात मारी। आज किसी ने की ऐसा वक्तव्य दिया कि मीडिया में हा-हाहाकार मच गया। निंदा करने वाले वीरों की फौज उमड़ आती है।
और चुनाव खत्म होने के बाद साथ-साथ खाया, पिया, मिले, बैठे। तू मेरा चांद मैं तेरी चांदनी गा-गाकर सारे गिले-शिकवे दूर किए। गरीबों की सुनो वह तुम्हारी सुनेगा वाली तर्ज पर बहुत से लोग किसी गरीब के यहां भोजन करते दिखते हैं। कोई गरीब के बच्चों को गोद में उठाता है, उनसे नाते-रिश्तेदारी जोड़ता है। महिलाओं के देखते ही चरण छूने बढ़ता है और रक्षाबंधन न होते हुए भी राखी के लिए कलाई आगे कर देता है। एक वोट का सवाल जो ठहरा बाबा। चुनाव से पहले वोट के लिए कुछ भी करवा लो। गीत-संगीत का बोलबाला होता है। किसी के रथ के आगे बैंड-बाजा चल रहा है और नेता जी बैलगाड़ी, ट्रैक्टर, टैम्पो पर सवार हैं। या अपनी खुली जीप पर बैठे हैं अथवा हेलिकाप्टर से पधारे हैं और लोग उन्हें देखने को उमड़े पड़ रहे हैं। नारों से आसमान गुंजायमान है।
किसी बड़े मेले जैसा दृश्य है। लोग बैठे हैं, खड़े हैं, तालियां बजा रहे हैं। धन्य भाग हमारे कि आपके दर्शन हुए। फिर पांच साल में अगर जीते तो कब होंगे पता नहीं। और अगर हार गए तो भी पता नहीं। लोग फूलमालाएं लेकर खड़े हैं जयकारा लगा रहे हैं-हमारा नेता कैसा हो... अमुक जैसा हो। जब तक सूरज- चांद रहेगा नेता जी तुम्हारा नाम रहेगा। सूरज-चांद तो अपनी जगह रहते हैं मगर नेताओं के नाम-काम बदलते जाते हैं। न जाने कितने भोज आयोजित किए जाते हैं कि शादी-बारात में जा रहे हों। लोगों को किसी अवसरदानी की तरह मुफ्त की चीजों के वायदे में लपेटा जाता है। मुझे जिताओ तो मैं टीवी दूंगा, फ्रिज दूंगा, शादियां करवाऊंगा, पढ़ाऊंगा, लिखाऊंगा, नौकरियों का बंदोबस्त करूंगा, मुफ्त इतने हजार रुपये दूंगा। अन्नदाताओं के पांव पड़ूंगा आदि-आदि। उनकी तरह कुछ पल के लिए निराई करूंगा, पराली का बोझ ढोऊंगा, हल और ट्रैक्टर चलाऊंगा। इन दिनों तो सब आपके हवाले, बस वोट मेरे हवाले कर देना भाइयो और बहनो। माताओं और बेटियो। शरणागत की रक्षा करना तो हमारा धर्म रहा है, अब मुझ जैसे की रक्षा करना भी आपका फर्ज है। जो कुर्सी सपने में आती है, प्लीज उस पर बिठा देना, भगवान आपका भला करेगा।
फ्री बस सेवा और रेल सेवा कर दूंगा। फ्री-फ्री का बोलबाला है। इस फ्री के लिए पैसे कहां से आएंगे, सरकारी खजाने में बाकी योजनाओं के लिए कुछ बचेगा या नहीं राम जाने। हमें तो लोगों का लालच जगाकर वोट लेने हैं, बाकी जय सियाराम।
भाषणों में ऐसे कुलाबे भिड़ाए जाते हैं कि जो लोग भाषण लिखते होंगे उनके पास भी शब्द कम पड़ जाते होंगे। ऐसे-ऐसे उपक्रम होते हैं कि सेलिब्रिटीज भी शरमा जाएं। बैंड-बाजे, ढोल-तांसे, नाच गाने वाले, लोक कलाकार, लाउडस्पीकरों, पार्क, खुली जगहों की शादी के सीजन की तरह भारी बुकिंग देखी जाती है। हर तरफ मुस्कुराहट और विनीत नेताओं की धीरोदात्त नायकों की तरह भीड़ लग जाती है। सत्य हरिश्चंद्र के सारे अवतार जैसे धरती पर उतर आते हैं।
ऐसे दृश्य फिर कहां। पांच साल बाद ही तो देखने को मिलते हैं। तो कोई क्यों न देखे। ड्रामा, एडवेंचर, वीरता, अतिशयोक्ति हर तरह का मिर्च-मसाला यहां मिलता है। इसमें कोई मिलावट नहीं पाई जाती।
जितने दल उतनी ही तरह की बयानबाजी, एक-दूसरे को नीचा दिखाने के हथकंडे, बात ही बात में पलट जाने, झूठ का सच बनाने और सच को झूठ बनाने की कलाकारी। कौन कवि है जो इसकी बराबरी कर सकता है। फिर नाटकीयता की भरमार कि बड़े से बडे सुपरस्टार भी पानी मांगें।
रोज की यह फिल्म चलती ही जाती है। गली-नुक्कडों, सभा-सोसायटी में बहस का विषय बनती है। समर्थक, विरोधी भिड़ जाते हैं। नेता जी के पास खबर पहुंचती है तो वे फूले नहीं समाते। ईश्वर ने उन्हें अच्छा बोलने की जो क्षमता सौंपी है, उसी से तो लोग प्रभावित होते हैं और उनकी बातें बहस का विषय बनती हैं। नेता न हों, और रूठ मटक्का न हो तो कैसा लोकतंत्र। जिसे टिकट मिल गई वह जीत के सपने देख रहा है। जिसे नहीं मिली वह पार्टी छोड़ने को तत्पर है। और जिस पार्टी को कल तक पानी पी-पीकर कोस रहा था, वहां जाने की राह तलाश रहा है। क्या पता वहां किस्मत खुल जाए और टिकट मिल जाए। पैसों की बरसात भी होने लगे। जय हिंद, जय हिंद के नेता। बाकी के देश और नेता हमें भला चकित भाव से क्यों न देखें। इसीलिए तो इंग्लैंड और अमेरिका में भी बहुत- से नेता भारत के नेताओं की नकल करने लगे हैं। पर नकल में वह अकल कहां। इतना मनोरंजन और इलेक्शन खिड़की पर सफलता कहां। धन्य हैं हम।
तो देखते रहिए इस सुपर-डुपर हिट फिल्म को। हंसिए अपने कमरे में, गाली दीजिए, प्रशंसा करिए, आलोचना करिए सब इसी इलेक्शन रूपी फिल्म का बेजोड़ हिस्सा है। यह फिल्म दर्शक यानी वोटरों को ही ध्यान में रखकर बनाई गई है। फ्री के इस जमाने में ऐसा फ्री का मनोरंजन घर बैठे और कहां मिलता है। बड़ी से बड़ी फिल्म, नेटफ्लिक्स पर आने वाले कार्यक्रम या टीवी पर चलने वाले धारावाहिक इसका मुकाबला नहीं कर सकते।

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लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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