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लोकतंत्र में चुनाव दर चुनाव और लोक दरबदर

09:09 AM Apr 03, 2024 IST
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केदार शर्मा ‘निरीह’
चार-पांच माह पहले नत्थू इसी उम्मीद में दफ्तर गया था कि उसका काम जाते ही हो जाएगा। पर सिर मुंडाते ही ओले पड़े। बड़े बाबू ने कहा- नत्थू अब तो विधानसभा चुनाव की आचार-संहिता लग गई है, चुनाव परिणाम के बाद आना। सब चुनाव में लगे हुए हैं। इन फाइलों के पहाड़ में तुम्हारी यह अर्जी कहीं दब जाएगी। नत्थू को बात माननी पड़ी।
खैर, चुनावों की पूरी तरह से विदाई के बाद शगुन मनाता हुआ नत्थू एक बार फिर दफ्तर गया। अर्जी लग गई। फाइल पर नोटशीट चलने लगी। अभी फाइल रानी ने आहिस्ता-आहिस्ता कदम उठाए ही थे कि एक दिन नत्थू जानकारी लेने फिर ऑफिस गया तो ज्ञात हुआ कि इस बार लोकसभा चुनाव की आचार-संहिता लगी हुई है। चुनाव कुछ अधिक लंबा चलेगा। फाइल रानी की किस्मत में अभी आराम करना ही लिखा है।
नत्थू गिड़गिड़ाया, हुकुम पहले ही बहुत देर हो गई है सर, मेरे गांव की सड़क पर से गिट्टी उखड़ गई है। बारीक कंकरों रूपी छर्रे बॉल बेअरिंग का रोल करने लगे हैं, लोग फिसल कर घायल हो रहे हैं। इस बाबत नेताजी के पास गया तो उन्हाेंने भी यही कहा–‘आचार-संहिता लगी हुई है।’
लोगों ने कहा-‘कोई चोटिल भी हुआ तो, जगह-जगह अस्पताल हैं। फिर महज तीन महीनों में कितने चोटिल होंगे?’
तो क्या मेरा यह छोटा-सा काम भी नहीं होगा? जब नत्थू ने आखिरी बार निवेदन करने की कोशिश की तो बड़े बाबूजी की भौंहें तन गईं। दूसरी बार पूछने पर किन्हीं सरकारी सेवकों की भौंहें अक्सर तन ही जाया करती हैं। तीसरी बार पूछ लिया तो वे यह तक भूल जाते हैं कि उनकी नौकरी के साथ ‘सेवक’ शब्द जुड़ा है। जुड़ा होगा ‘सेवक’ शब्द उनकी बला से, पर आगे विशेषण तो ‘सरकारी’ लगा है बस इसी कारण ‘सेवक’ की महत्ता बढ़ जाती है। सो बड़े बाबूजी ने आखिरी फरमान सुना दिया-‘आपको दिख नहीं रहा नत्थूजी? सारा ऑफिस खाली पड़ा है। अकाउंटेंट साहब चुनावी डेपुटेशन पर हैं। सारे छोटे बाबू चुनावी ट्रेनिंग कर रहे हैं। किसी की पहली ट्रेनिंग है तो किसी की दूसरी। कोई ईवीएम में लगा है। सारे इंजीनियर चाहे जूनियर हों या सीनियर- सब इलेक्शन में लगे हैं।’
बड़े बाबू ने नत्थू को कहना जारी रखा-‘आपको तो वोट देने में महज दो मिनट लगेंगे पर आपके उन दो मिनटों की तैयारी के लिए पूरी की पूरी सरकारी मशीनरी चक्करघिन्नी हो रही है। इलेक्शन अर्जेंट है। तुम्हारा काम होगा, पर तब जब इलेक्शन नहीं हो।
नत्थू अब ज्यादा रिस्क नहीं लेना चाहता था, जाते-जाते अर्दली की आवाज सुनाई दी-‘तीन महीने बाद फिर स्थानीय निकायों के चुनाव आ रहे हैं, फिर से आचार-संहिता लगने वाली है।’ नत्थू के मुंह से अनायास निकला- ‘धन्य है लोकतंत्र संग यह चुनावी तंत्र।’ मालगाड़ी के डिब्बों की तरह आते ये चुनाव दर चुनाव। हे ईश्वर! कोई ऐसा सिस्टम बना कि ये सारे चुनाव एक साथ मोबाइल पर ही निपट जाएं।

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