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सत्ता के साथ बिहार में वजूद बचाने की कवायद

06:28 AM Feb 01, 2024 IST
सत्ता के साथ बिहार में वजूद बचाने की कवायद
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केएस तोमर

कट्टर समाजवादी नेता कहे जाने वाले नीतीश कुमार नौवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं। उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के गठबंधन को अलविदा कहकर एक बार फिर एनडीए का दामन थाम लिया है। दरअसल भाजपा को बहुत आवश्यकता थी कि नीतीश कुमार का जनता दल उसके साथ आये क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को बिहार में इसी दशा में अधिक सीटें मिल सकती थीं। विश्लेषकों का मत है कि यह जरूरी था कि भाजपा और जनता दल एक मंच पर आएं क्योंकि 2019 में इकट्ठा होकर लोकसभा चुनावों में बड़ी जीत दर्ज करने के बाद से दोनों दलों का मत प्रतिशत कम हो गया था। तब भाजपा और जनता दल ने मिलकर चुनाव लड़ा था। इन दलों को क्रमश: 23.58 और 21.81 प्रतिशत मत मिले थे जो 2020 के विधानसभा चुनावों के समय घटकर 19.46 और 15.39 प्रतिशत रह गए थे। शायद यही प्रमुख कारण था कि दोनों दलों ने प्रासंगिक रहने और सत्ता मे फिर लौटने के लिए यह समझौता किया है।
आकलन है कि नीतीश कुमार द्वारा इंडिया गठबंधन से अलग होने से बिहार की राजनीति पर गम्भीर परिणाम सामने आयेंगे। वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में भाजपा, जनता दल (यू) और एलजेपी का गठबंधन मजबूत है। जहां भाजपा और जनता दल का वोट शेयर 45.39 प्रतिशत बनता है, वहीं एलजेपी के 8 प्रतिशत मतों से यह 53.39 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच जाता है। इसके मुकाबले वाले विपक्षी गठबंधन में आरजेडी के 23.11 और कांग्रेस के 9.48 प्रतिशत मतों को मिलाएं तो वह जीत से बहुत दूर हो जाता है। इसका असर इंडिया गठबंधन पर पड़ना तय है।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने सभी 17 सीटों पर और जनता दल ने 17 में से 16 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके अलावा गठबंधन के तीसरे दल एलजेपी ने 6 सीटें जीती थीं। इस तरह गठबंधन ने बिहार की 40 में से 39 सीटों पर परचम लहराया था। इसका सीधा लाभ भाजपा को मिला था। हालांकि मौजूदा हालात में नीतीश कुमार को भी लाभ मिलना तय है। नए गठबंधन के कारण 2025 के विधानसभा चुनाव जीत का मार्ग प्रशस्त होगा।
माना जाता है कि गठबंधन में लालू परिवार के कारण नीतीश स्वयं को असहज महसूस कर रहे थे। लालू परिवार के विरुद्ध ईडी की कई मामलों में जांच चल रही है और भ्रष्टाचार के आरोपों की आंच नीतीश कुमार तक भी पहुंच सकती थी। नरेंद्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की स्थिति में ऐसी सम्भावनाएं थीं। नये समझौते के बाद नीतीश कुमार पर ईडी का खतरा टल गया माना जा रहा है।
नीतीश के पाला बदलने के साथ ख़बरें ये भी थीं कि जनता दल के 6 सांसद भाजपा के संपर्क में थे और 2024 के लोकसभा चुनावों से ऐन पहले उनका साथ छोड़ सकते हैं। कहा जा रहा था कि राम मन्दिर निर्माण के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता में हुई बढ़ोतरी के कारण इन सांसदों की जीत संशय में थी। वहीं जनता दल के सांसदों का मानना था कि विधानसभा चुनावों में मतदान के लिए मतदाताओं का नजरिया अलग होता है। वर्ष 2024 में फ़िर एनडीए मजबूत स्थिति में होगी जबकि इंडिया गठबंधन की स्थिति इतनी सुखद नहीं है क्योंकि ये दल अभी सीटों को लेकर भी तालमेल नहीं कर पाए और न ही प्रधानमंत्री के नाम पर सहमति है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इंडिया गठबंधन में कांग्रेस ही एकमात्र दल है जिसकी समूचे भारत में मौजूदगी है। ऐसे में कांग्रेस की ही जिम्मेदारी थी कि गठबंधन को मजबूती प्रदान करती और सीटों का बंटवारा समय रहते फाइनल हो जाता। कांग्रेस इस दायित्व को निभाने में असफल रही है। एक ओर जहां नीतीश कुमार गठबंधन का साथ छोड़ गए, वहीं अब तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी अपना अलग रास्ता ढूंढ़ रहे हैं। सभी जानते हैं कि इंडिया गठबंधन को मूर्तरूप देने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले एक साल के दौरान कड़ी मेहनत की और क्षेत्रीय नेताओं से बार-बार मिलकर उन्हें एक मंच पर लाये। उनके प्रयासों के कारण ही पटना मे आयोजित 23 जून, 2023 की पहली बैठक सफल रही। लेकिन सब तय होने के बाद जब संयोजक चुनने का समय आया तो ममता बनर्जी ने खड़गे का नाम पेश कर दिया और केजरीवाल ने इसका समर्थन किया। नीतीश को राेकने की उनकी रणनीति सफल भी रही बेशक यह निर्णय गठबंधन के लिए 2024 के चुनावों में घातक सिद्ध हो।
यद्यपि नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन के वर्तमान हाल के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। अंदरखाने यह चर्चा भी है कि स्थिति बिगाड़ने में आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी की भूमिका भी रही है। उनके कारण बिहार में परिस्थितियां बदलीं उसका असर इंडिया गठबंधन पर पड़ना स्वाभाविक था। पिता-पुत्र की जोड़ी जल्द से जल्द बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर राजद का वर्चस्व चाहते थे। बताते हैं कि तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए जनता दल(यू) में तोड़फोड़ की कोशिश शुरू कर दी गई थी। इससे नाराज नीतीश कुमार ने भाजपा से समझौता पक्का कर लिया।

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