काटने की संस्कृति से जोड़ने की कवायद
यशवन्त कोठारी
मैं अपनी सायंकालीन आवारागर्दी पर निकला। कुछ दूर गया। आगे एक सज्जन अपने ‘डॉग’ को लेकर जा रहे थे। उसके पीछे गली के कुछ आवारा कुत्ते पड़ गये। डॉग तो मुंह में आया नहीं लेकिन गली के कुत्तों ने मेरी पैंट फाड़ दी। वही हालात कि आलोचक स्थापित लेखक का तो कुछ बिगाड़ नहीं सकता, नए लेखक की पैंट फाड़ देता है। कुत्ता काटने के बाद से ही मैं उदास, परेशान और दुखी हूं। हमारे देश में काटने की संस्कृति बड़ी विकसित है। बिजली वाला बिजली काटता है। नल वाला नल काटता है। बिल वाला बिल काटता है। सरकार टैक्स काटती है। चूहा गेहूं और अनाज काटता है।
हर बड़ी मछली छोटी मछली को काटती है। व्यापारी जेब काटता है। अफसर फाइलों के फीते काटता है और नेता या मंत्री उद्घाटन के फीते काटता है। मगर इस बार कुत्ते ने जो मेरी टांग काटी तो मुझे इस काटने की संस्कृति का असली रहस्य समझ में आया। कुत्ते के काटने पर तो इंजेक्शन लग सकते हैं। मगर नेता, अफसर और व्यापारी के काटने के इंजेक्शन की वैक्सीन कहां मिलती है? मित्रो मैं तो तबसे इंजेक्शन लगवा रहा हूं। एक इंजेक्शन की कीमत बहुत ज्यादा है। आपसे विनम्र अनुरोध है कि कुत्तों से दूर रहें। गली के कुत्ते के काटे का तो इलाज है, मगर ये जो चारों तरफ अलसेशियन, पामेरियन, बुलडॉग और अन्य ऊंची नस्लों के कुत्ते हैं, उनके काटे का कोई इलाज नहीं है। वास्तव में इनका काटा पानी नहीं मांगता।
कुत्तों के काटने की संस्कृति का अध्ययन करने के खातिर मैं पुस्तकों की शरण में गया। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि कुत्तों के ऊपर बाजार में जितनी पुस्तकें उपलब्ध हैं, उतनी शायद आदमियों के ऊपर नहीं। डॉग केयर-बाई ए डॉग लवर, डाग्स आफ अमेरिका, हाऊ टू पेट डॉग, यू एंड योर डॉग और इसी प्रकार की सैकड़ों अन्य पुस्तकें। शानदार कवर, खूबसूरत ट्रांसपेरेंसी और चिकनापेपर। मुझे लगा, शायद ये पुस्तकें लोगों के जीवन का अहम हिस्सा हैं। पुस्तकों के अलावा कुत्तों के भोजन, कुत्तों की आदतों आदि से संबंधित कई पत्रिकाएं भी दृष्टि-पथ से गुजरीं। विश्वास मानिए, श्वान-संसार देखकर मैं अपने काटे का दर्द भूल गया। मगर मन पर घाव और ज्यादा गहरे नासूर बन गए।
आजकल लोग-बाग साहब के कुत्ते के सहारे अपने करिअर की सीढ़ियां चढ़ जाते हैं। यह जानकारी मुझे तब मिली, जब एक सज्जन ने अपने अफसर को पामेरियन कुत्ता भेंट किया और तुरन्त प्रगति की सीढ़ियां चढ़ गए। एक इंजीनियर साहब के पास ऐसा कुत्ता देखा जो दूर से ही ठेकेदार को पहचान लेता था और उसका स्वागत करता था। पिछले दिनों एक अफसर के पास ऐसा कुत्ता देखा जो मातहत को बाहर से ही भगा देता था।
इसी प्रकार पिछले दिनों एक कुत्ते की प्रदर्शनी के बारे में भी फीचर देखा, जिसे देख-पढ़ कर मुझे लगा कि मानव का जीवन बिलकुल बेकार है। मगर, मैं जानता हूं कि काटने की इस संस्कृति से काटने वाले को कितना कष्ट, कितना तकलीफ, कितना कुछ झेलना पड़ता है।