For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

जन सहयोग से हो कारगर नीतियों का क्रियान्वयन

07:00 AM Nov 06, 2024 IST
जन सहयोग से हो कारगर नीतियों का क्रियान्वयन
Advertisement

अखिलेश आर्येंदु

Advertisement

राजधानी दिल्ली में प्रदूषण की समस्या गंभीर हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर केंद्र और राज्य सरकारों की कार्रवाई को नकारते हुए कहा कि मौजूदा कानून प्रभावी नहीं हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि स्वच्छ वातावरण में रहना हर नागरिक का मौलिक अधिकार है, जिसे सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए। नि:संदेह, प्रदूषण बढ़ने के प्रमुख कारणों में आतिशबाज़ी, किसानों द्वारा पराली जलाना, हवा की रुकावट, बढ़ती धूल और वाहनों का धुआं शामिल हैं।
विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में पीएम 2.5 की सघनता विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से कहीं अधिक है, जिससे यह दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हो गया है। यहां की हवा में ज़हरीले तत्वों की अधिकता की वजह से ही स्थानीय लोग सालभर वायु और ध्वनि प्रदूषण के गंभीर प्रभावों का सामना करते हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए दिल्ली सरकार ने कई प्रयास किए हैं, जैसे कि बाहरी वाहनों के प्रवेश पर रोक, पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध, किसानों को आर्थिक सहायता देने, एनसीआर में उद्योगों को पाइप्ड नेचुरल गैस (पीएनजी) मुहैया कराना और कई अन्य कदम जैसे बदरपुर बिजली संयंत्र बंद करना और निर्माण अपशिष्ट प्रबंधन नियम लागू करना शामिल है।
इसके बावजूद, प्रदूषण की समस्या जस की तस बनी हुई है, जिसके कारण लोगों की जीवन प्रत्याशा घट रही है। इसके अतिरिक्त, प्रदूषण के कारण प्राकृतिक संसाधन और पर्यटन स्थल भी प्रभावित हो रहे हैं। ध्वनि प्रदूषण भी न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।
दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति और भी विकट हो गई है, खासकर त्योहारों के दौरान। कुल 3.3 करोड़ की जनसंख्या में से बड़ी संख्या में अधिकांश लोग किसी न किसी रूप में प्रदूषण फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन न कोई ठोस जागरूकता अभियान चलाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कानून के तहत त्योहार मनाने की दिशा में आदेश दिए, लेकिन इनका पालन नहीं होता। पुलिस महज औपचारिकता निभाती है और आम जनता प्रदूषण के प्रति जागरूक नहीं है। समस्या का समाधान तभी संभव है जब सरकार और नागरिक दोनों पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हों।
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का सबसे गंभीर प्रभाव लोगों की सेहत पर पड़ रहा है, खासकर नई-नई बीमारियों के रूप में। ठंड के मौसम में प्रदूषण के कारण सांस संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं और बड़ी संख्या में मौतें हो रही हैं। दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 500 तक पहुंच जाता है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की सीमा से 100 गुना अधिक है।
इस प्रदूषण का असर जीवन प्रत्याशा पर भी पड़ रहा है; शिकागो विश्वविद्यालय के अनुसार, दिल्ली में रहने वालों के जीवनकाल में औसतन 11.9 साल की कमी आई है। प्रदूषण के कारण दिल, फेफड़े, आंत, आंख, हड्डी और यकृत से जुड़ी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका गहरा असर हो रहा है, विशेष रूप से बच्चों में याददाश्त और गणितीय क्षमताओं में गिरावट देखी जा रही है।
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण केवल वायु तक सीमित नहीं है, जल, ध्वनि, मिट्टी और प्रकाश प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है। यमुना जैसे प्रमुख जलस्रोतों का पानी प्रदूषित हो चुका है, जिससे न केवल जल का उपयोग मुश्किल हो गया है, बल्कि आवारा जानवरों और पक्षियों में बीमारियों का संक्रमण बढ़ा है, और मवेशियों व पक्षियों की मौतें हो रही हैं। एक अमेरिकी शोध के अनुसार, भारत के बड़े शहरों में बढ़ता मिट्टी, जल और ध्वनि प्रदूषण पर्यावरण और जैव विविधता के लिए गंभीर खतरे का संकेत है।
राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के अनुसार, पिछले तीस वर्षों में दिल्ली में कैंसर के मरीजों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है, विशेष रूप से 0 से 14 साल के बच्चों में। दिल्ली की हवा में मौजूद खतरनाक गैसें जैसे कार्बन मोनोआक्साइड, नाइट्रिक आक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और ओजोन स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरे पैदा करती हैं। इसके अलावा, पीएम 2.5 (अल्ट्रा फाइन पार्टिकुलेट मैटर) प्रदूषण का एक और प्रमुख कारण है, जो मोटर वाहनों, बिजली संयंत्रों, फैक्टरियों और पटाखों से निकलता है। पीएम 2.5 के संपर्क में आने से दिल और फेफड़ों की बीमारियों का खतरा बढ़ता है, जो कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है।
डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट और साल 2018 से 2023 के अक्तूबर महीने के बीच 25 शोधों के अनुसार, भारत के बच्चों पर वायु प्रदूषण का असर केवल उत्तर भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि देश के तमाम बड़े शहरों में यह समस्या बढ़ रही है। इसके कारण नवजात बच्चों का जन्म के वक्त वजन में कमी, समय से पहले प्रसव और मृत जन्म दर वृद्धि हो रही है। यूनाइटेड नेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करोड़ों बच्चे एनीमिया से ग्रस्त हैं और प्रदूषण के कारण एंटीबायोटिक दवाओं का प्रभाव भी कम हो रहा है।
एनसीआर में वाहनों की संख्या और धूल की समस्या बढ़ने के कारण भविष्य में स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ने की आशंका है। प्रदूषण से निपटने के लिए सरकार के उपायों और कोर्ट के आदेशों के साथ-साथ आम आदमी की सक्रिय भागीदारी भी जरूरी है। इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग बढ़ाना, धूल नियंत्रण में जनसहयोग और पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए एनसीआर के सटे राज्यों के किसानों को भी जागरूक करना आवश्यक है। केंद्र सरकार को पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहतर जन जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement