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कैदियों में टकराव रोकने को बने प्रभावी तंत्र

06:29 AM Apr 26, 2024 IST
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डॉ. केपी सिंह

उन्नीस अप्रैल को संगरूर जेल में बंदियों के दो समूहों के बीच झड़प में दो कैदियों की मौत हो गई और दो अन्य गम्भीर रूप से घायल हो गए। इससे लगभग एक सप्ताह पहले भी गुरदासपुर की केंद्रीय जेल में एक झड़प को रोकने की कोशिश करते हुए थाना प्रबंधक सहित कम से कम चार पुलिसकर्मी घायल हो गए थे। पंजाब की जेलों में पिछले एक दशक में हिंसा और दंगों की कई घटनाएं हुईं। फरवरी, 2023 में तरनतारन जिले की गोइंदवाल साहिब केन्द्रीय जेल के अन्दर लड़ाई में दो गैंगस्टर मारे गए थे। जून, 2019 में लुधियाना जेल में दंगाई कैदियों ने पुलिस से झड़प की थी। जिसमें एक कैदी की मौत हो गई थी और पांच अन्य घायल हो गए थे। मार्च, 2017 में भी गुरदासपुर जेल में कैदियों के दंगे में तीन जेल कर्मचारी घायल हो गए थे।
जेलों में हिंसा के अपराधशास्त्र को जेल की सामाजिक संरचना और शासन व्यवस्था को सामने रखकर समझा जा सकता है, जो अक्सर संसाधनों के अभाव में आपसी खींचतान के कारण उत्पन्न होता है। यही नहीं, जेलों का माहौल ही शोषणकारी है और अन्याय होने पर कैदियों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया हिंसा ही होती है। मानसिक बीमारी, जातीय और धार्मिक समीकरण, बन्दियों और जेल कर्मचारियों के बीच की सांठ-गांठ, सांस्कृतिक मतभेद और जेल में बंदी गैंगस्टरों से सांठ-गांठ अन्य महत्वपूर्ण कारक हैं जो जेलों में दंगों के मूल कारण बन जाया करते हैं।
पंजाब की जेलों में अधिकांश झगड़े भौतिक वस्तुओं को लेकर नहीं बल्कि प्रभुत्व, सम्मान, निष्पक्षता, वफादारी, गिरोहों की दुश्मनी व वर्चस्व जैसे गैर-भौतिक हितों को लेकर होते हैं। यही कारण है कि वे पूर्व-नियोजित होते हैं और पुलिस हस्तक्षेप के बिना उन्हें सुलझाना कठिन होता है।
कुछ साल पहले ‘कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव’ और पंजाब राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा किए गए एक संयुक्त अध्ययन से पता चला कि पंजाब की 24 में से 18 जेलें क्षमता से अधिक भरी हुई थीं, 25 प्रतिशत पद खाली थे, 17 जेलें कल्याण अधिकारियों के बिना काम कर रही थी, बाहरी निरीक्षण तंत्र आमतौर पर नदारद था क्योंकि केवल एक जेल में ही ‘बोर्ड आफ विजिटर’ था जो जेलों पर स्वतंत्र निगरानी के लिए एक वैधानिक निकाय है। 660 कैदियों में से 12 प्रतिशत ने जेल-हिरासत में हिंसा का आरोप लगाया था। 15 कारागारों में कैदियों ने जेलों के अंदर नशे की तस्करी और प्रतिबन्धित सामग्री की आपूर्ति की भी बात का जिक्र किया था।
ये सभी तथ्य मिलकर पंजाब की जेलों में संसाधनों, पारदर्शिता और निष्पक्षता की कमी की गवाही देते हैंं, जिसका जेलों के अन्दर के जीवन और सुरक्षा पर निश्चित प्रभाव पड़ता है। ऐसी जमीनी हकीकतों के प्रकाश में जेलें ख़तरनाक, अमानवीय और दर्दनाक जगह बन जाती हैं, जहां हिंसा अपरिहार्य है। जुलाई, 2022 में राज्य सरकार ने जेलों में ‘ड्रग स्क्रीनिंग’ सर्वेक्षण शुरू किया जिसमें 30,000 बन्दियों को शामिल किया गया था। यह बात सामने आई कि सर्वेक्षण में शामिल 47 प्रतिशत से अधिक कैदी नशे के आदी हैं। एक छोटी-सी जगह में इतनी बड़ी संख्या में मादक द्रव्यों का सेवन करने वालों की मौजूदगी स्वयं में एक विस्फोटक है जो फूटने का इंतजार कर रहा है।
नशे का आदी व्यक्ति नशीली दवाओं के बिना जीवित नहीं रह सकता है और कैदी इसकी व्यवस्था जेलों के अन्दर गिरोहों के माध्यम से करते हैं। नशे की आपूर्ति जेल अधिकारियों की मिलीभगत के बिना सम्भव नहीं है। जेल के अन्दर जब ऐसे गिरोह हों तो हिंसा स्वाभाविक है। मादक द्रव्यों का सेवन करने वालों के इलाज के लिए जेलों में बहुआयामी नशा मुक्ति कार्यक्रमों की आवश्यकता है, वर्तमान में किए जा रहे उपाय अपर्याप्त और अप्रभावी साबित हो रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में पंजाब की जेलें उत्तर भारत में गैंगस्टरों के लिए पसंदीदा जगहों के रूप में भी उभरी हैं। उत्तर प्रदेश के गैंगस्टर-राजनेता मुख्तार अंसारी ने रूपनगर जेल में सुरक्षित और आरामदायक पनाह पाई थी। पिछले साल गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई ने पंजाब की एक जेल से एक न्यूज चैनल को साक्षात्कार दिया था और अभिनेता सलमान खान को जान से मारने की धमकी दी थी। सलाखों के पीछे से बदमाशों द्वारा धमकी भरे संदेश और फिरौती के लिए टेलीफोन पर्याप्त संकेत हैं कि जेल प्रशासनिक मशीनरी में सब कुछ ठीक नहीं है।
कारागार अत्यधिक अस्थिर और चंचल प्रवृत्ति के लोगों की बस्तियां हैं, जो निठल्ले रहते हैं। कठोर कारावास की सज़ा पाने वाले केवल 20 प्रतिशत दोषियों को ही जेल कारखानों में काम दिया जा सकता है। 75 प्रतिशत से अधिक बन्दी विचाराधीन कैदी हैं जिन्हें कानूनन काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। जेल के छोटे से क्षेत्र में इस तरह का निठल्ला कार्यबल श्ाांति के लिए ख़तरा है। इसके लिए कानूनों में बदलाव करने और कैदियों के लिए पर्याप्त काम के अवसर पैदा करने की जरूरत है।
तर्कसंगत स्थानांतरण नीति के अभाव में दागी जेल अधिकारी अपने पसंदीदा स्थानों पर अपनी नियुक्ति का प्रबन्ध करते रहते हैं। इसके कारण बंदी बदमाशों के गिरोहों के साथ सांठ-गांठ विकसित करना आसान हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप जेलों में भेदभावपूर्ण, अवैध और भ्रष्ट आचरण पनपता है जो कैदियों के बीच टकराव बढ़ाता है।
अपेक्षाकृत छोटा राज्य होने के कारण पंजाब की जेलों में किसी भी जेल अधिकारी को एक स्थान पर दो साल से अधिक काम करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसी प्रकार समय-समय पर समीक्षा करके अवांछित तत्वों को सेवा से बाहर किया जाना चाहिए। जेल में अन्दर की ड्यूटियों को भी एक उचित अवधि के बाद बदलते रहना चाहिए।
जेल प्रणालियों में गोपनीयता अंतर्निहित है। जेल प्रशासन बन्दियों की सुरक्षा का ढिंढोरा पीटकर बन्द माहौल में काम करने का अभयस्त हो चुका है। वे अपने कामकाज की निगरानी के लिए किसी बाहरी निरीक्षण तंत्र को पसंद नहीं करते, जबकि इसके लिए वैधानिक प्रावधान है। आदर्श स्थिति में कारागार स्वतंत्र संस्थाओं के निरीक्षण के लिए खोले जाने चाहिए। कैदियों के बीच के तनाव और टकराव के समाधान के लिए भी एक प्रभावी तंत्र का होना बहुत आवश्यक है।
कारागारों में हिंसा रोकने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार ने वर्ष 1998, 2006 और 2015 में निर्देश जारी किए थे, परंतु इन निर्देशों में केवल जेलों की सुरक्षा को अचूक बनाने को आधार बनाया गया है और यह मान लिया गया कि जेलों में हिंसा केवल सुरक्षा में कमी के कारण ही होती है। जबकि वस्तुस्थिति यह है कि हिंसा के पीछे अनेक कारण होते हैं जिनका निवारण आवश्यक है। सरकारों और प्रशासनिक अमले की इस सोच में आमूल-चूल परिवर्तन अत्यन्त आवश्यक है ताकि समय रहते उन समस्याओं का समाधान किया जा सके जिसके कारण हिंसा होती है।
जेलों से सम्बन्धित वर्तमान कानून पर्याप्त कठोर हैं और अनुशासन और सुरक्षा बनाए रखने में सक्षम हैं। जरूरत इस बात की है कि जेल प्रशासन अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरी जिम्मेदारी और ईमानदारी के साथ करे। हिंसा की प्रत्येक घटना की पूरी जांच करके लापरवाही करने वाले अधिकारियों की जवाबदेही निश्चित करके समुचित दण्ड दिया जाना चाहिए। पंजाब एक सीमान्त प्रान्त है। यहां की जेलों में हिंसा देश की सुरक्षा के लिये ख़तरनाक साबित हो सकती है।

लेखक हरियाणा पुलिस में महानिदेशक रहे हैं।

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