आर्थिक मुद्दे ज्यादा अहम रहे अमेरिका यात्रा में
जी. पार्थसारथी
प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा का आगाज़ भव्य समारोह से किया गया। शुरुआत न्यूयॉर्क से हुई, जहां उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से मनाए गए योग-दिवस आयोजन में भाग लिया और खुद भी योगासन किए। बता दें कि अमेरिका में योग करने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। वहीं साफ है कि मोदी इस पुरातन भारतीय विद्या की ओर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान खींचने के लिए दृढ़-संकल्प दिखे। योग इन दिनों भारत की सीमाओं से भी परे लोकप्रिय होता जा रहा है। इसके बाद वाशिंगटन पहुंचने पर प्रधानमंत्री का गर्मजोशी से स्वागत स्वयं राष्ट्रपति बाइडेन और उनकी पत्नी ने किया। इस दौरान अच्छी-खासी संख्या में भारतीय मूल के लोग भी दिखे। वाशिंगटन में रस्मी समारोहों के बाद वैश्विक एवं द्विपक्षीय मुद्दों सहित विस्तारित वार्ता चली। दोनों पक्षों ने अहम विषयों को तरजीह देने को सहमति जताई, जिससे भारत में आर्थिक विकास को नई गतिशीलता मिलेगी। अमेरिका के कई शीर्ष व्यवसायी भी प्रधानमंत्री से मिले, जिनमें स्पेस-एक्स और ट्विटर के मालिक इलॉन मस्क, गूगल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुंदर पिचाई भी थे।
भारत के ध्यान का मुख्य केंद्र अनेकानेक औद्योगिक और वित्तीय परियोजनाओं में अमेरिकी निवेश पाने पर टिका रहा। मस्क और पिचाई से मुलाकातें इसी सिलसिले में थीं। मस्क 237 बिलियन डॉलर संपत्ति के मालिक हैं। इस यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि भारत में सेमीकंडक्टर उत्पादन इकाई बनाने की राह प्रशस्त होना है, जो कि आज की तारीख में लगभग हर मशीन और उत्पादन प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा है। अमेरिकन कंपनी माइक्रोन टेक्नोलॉजी इन्कॉर्पोरेशन अगले पांच सालों में 825 मिलियन डॉलर निवेश करेगी। इससे 20,000 लोगों को नौकरी मिल पाएगी और यह भारत के औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम होगा। वहीं 60,000 भारतीय इंजीनियरों को सेमीकंडक्टर बनाने के काम की सिखलाई देने पर पर भी सहमति बनी। अमेरिका के साथ विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ रहे सहयोग में, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्लीन एनर्जी से लेकर संचार माध्यम तक शामिल हैं।
लगता है अमेरिका भारत के साथ रक्षा सहयोग में विस्तार करने को तत्पर है। तय किया गया कि अमेरिका भारत के हल्के लड़ाकू विमान के लिए जीई-414 इंजन देगा, जिसका निर्माण धीरे-धीरे भारत में किया जाएगा। इसके अलावा, एक बड़े सौदे में भारत को 31 एमक्यू 9 बी एडवांस हाई-आल्टीट्यूड ड्रोन बेचना मंजूर हुआ है, यह भारत की लंबी दूरी की टोही सक्षमता बढ़ाने के प्रयासों का हिस्सा है, इन्हें भारत में पुर्जे जोड़कर बनाया जाएगा। प्रधानमंत्री के अमेरिका दौरे से भारत को चीन से दरपेश राजनयिक एवं रक्षा चुनौतियों का सामना मिलकर करने का माहौल अब बन चुका है। भारत लद्दाख के त्वांग सेक्टर में चीनी घुसपैठ और भारतीय प्रतिरोध के बाद चीनियों की वापसी वाले प्रसंग से उपजे तनावों को आसानी से नहीं भूल सकता। लंबी दूरी तक उड़ान भरने में सक्षम ड्रोनों से अब नज़र बनाने में सुविधा होगी और देश की थलीय और जलीय सीमाओं की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए ऐसे ड्रोन होना जरूरी है।
यूक्रेन पर रूस की चढ़ाई और इसके लिए उसे एकतरफा दोषी न मानने वाले रुख पर भारत का कायम रहना अब अमेरिका को भी स्पष्टतः समझ आ चुका है। इसके अलावा, भारत और अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा यकीनी बनाने के लिए निर्मित क्वाड नामक गुट में निकट सहयोग करने पर गंभीरता से प्रतिबद्ध हैं। चीन सहित किसी को शक नहीं कि यह संगठन भारत के पूरबी पड़ोस में सुरक्षा और रक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। चीन द्वारा थलीय और जलीय सीमा संबंधी दावों को आधार बनाकर वियतनाम और फिलीपींस की थलीय एवं जलीय सीमाओं के अतिक्रमण का सामना करने को भारत ने उन्हें मारक ब्रह्मोस मिसाइलें प्रदान की हैं। इसके अलावा अमेरिका और भारत उस गुट के भी सदस्य बन गए हैं जिसके निर्माण का उद्देश्य तेल संपन्न फारस की खाड़ी क्षेत्र में सुरक्षा बनाने में सहयोग को बढ़ावा देना है। हिंद महासागर के जलीय मार्गों में चीन की बढ़ती नौसैन्य उपस्थिति को लेकर बनी भारत और अमेरिका की चिंता एक-समान है। श्रीलंका के हम्बनतोता और पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में चीन की बढ़ती मौजूदगी के अलावा अफ्रीका प्रायद्वीप के मुहाने पर स्थित दिजबाउती बंदरगाह के विकास कार्य में 590 मिलियन डॉलर के निवेश वाले चीनी सहयोग पर भारत-अमेरिका की खास नज़र है। खाड़ी क्षेत्र में शांति और स्थायित्व स्थापना के लिए भारत और अमेरिका ने इस्राइल एवं संयुक्त अरब अमीरात को साथ लेकर एक नया संघ बनाया है।
प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा ऐसा पहला मौका है जब दोनों देशों ने दो टूक घोषणा करते हुए कहा कि वे वैश्विक आतंकवाद को रोकने और इसके सभी प्रकार के स्वरूपों और तौर-तरीकों की भर्त्सना करने में स्पष्ट रूप से ‘एक साथ’ खड़े हैं। संयुक्त घोषणापत्र में यह भी जिक्र है कि दोनों मुल्कों के नेता पाकिस्तान चालित सीमा-पारीय आतंकवाद की निंदा करते हैं। भारत और अमेरिका ने संयुक्त मांग में पाकिस्तान से कहा कि वह संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची में शामिल लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज़ब-उल-मुजाहिद्दीन जैसे संगठनों पर कार्रवाई करे। पाकिस्तान से यह अपेक्षा भी की गई है कि वह अपनी भूमि का इस्तेमाल आतंकी हमलों के लिए न होने देना सुनिश्चित करे। अलबत्ता पाकिस्तान ने भारत-अमेरिका घोषणापत्र की आलोचना की है। उसके विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस बयान को ‘अवांछनीय, एकतरफा और भ्रामक’ ठहराया है और ऐतराज जताया है कि घोषणापत्र में पाकिस्तान का जिक्र ‘राजनयिक उसूलों’ के खिलाफ है।
भारत-अमेरिका संयुक्त घोषणापत्र में यह उल्लेख भी है कि भारत और अमेरिकी नेतृत्व सीमापारीय आतंकवाद चलाने और छद्मयुद्ध में आतंकियों के इस्तेमाल की कड़ी निंदा करता है। पाकिस्तान से कहा गया है कि वह त्वरित कार्रवाई करते हुए, अपनी भूमि का उपयोग आतंकी हमले की कोख बनने के लिए न होने दे। इससे पहले सऊदी अरब में एक अभूतपूर्व बैठक हुई है, जिसमें भारत और अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों और सऊदी अरब के राजनेता ने भाग लिया था। इस वार्ता को लेकर भारत ने चुप्पी साधे रखी है लेकिन संकेत दिया कि इसमें ‘बुनियादी ढांचा बनाने के लिए क्षेत्रीय पहल’ पर चर्चा हुई है। अलबत्ता व्हाइट हाउस ने दावा किया है कि यह बैठक भारत एवं बाकी दुनिया से जुड़े मध्य-पूरब क्षेत्र को सुरक्षित एवं समृद्ध बनाने की संयुक्त दूरदृष्टि में आगे विस्तार हेतु थी।
प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा ने दोनों मुल्कों के आपसी संबंधों में नई तरजीहों और नए आयामों का आगाज किया है। भारत की नीतियों में आर्थिक आयाम अब बहुत अहम है, जिन क्षेत्रों में हम भविष्य में आर्थिक सहयोग चाहते हैं, उससे अमेरिका को अवगत करवा दिया गया है। इस बात के मद्देनजर कि भारत के प्रति चीन की आक्रामकता बढ़ती जा रही है और उसने लद्दाख एवं अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ की है, भारत का सैन्य उत्पादन बढ़ाने के नए यत्न करना अपरिहार्य हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे से हमारी पूरबी दिशा में मलक्का की खाड़ी से लेकर पश्चिमी दिशा में होरमुज़ की खाड़ी तक के इलाके में भारत-अमेरिका सहयोग को आगे प्रगाढ़ करने की राह प्रशस्त हुई है।
लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।