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समाज सुधार के बिना आर्थिक विकास अधूरा

08:06 AM Aug 07, 2024 IST
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भारत डोगरा

प्रायः आर्थिक विकास को अधिक महत्व दिया जाता है पर अनुभव से पता चलता है कि समाज-सुधार के समुचित प्रयासों के बिना आर्थिक विकास अधूरा ही रह जाता है। इसमें अनेक विसंगतियां भी आ सकती हैं। अतः समाज-सुधार के समग्र कार्यक्रम पर व्यापक सहमति बनाकर इसे निरंतरता से आगे ले जाना चाहिए।
इसमें एक बड़ी प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि सभी तरह के नशे को न्यूनतम करने के लिए निरंतरता से जन-अभियान चलने चाहिए। सभी तरह के नशे न्यूनतम कैसे हो सकते हैं, इसकी एक सुलझी हुई समझ बना लेनी चाहिए। फिर इस आधार पर सभी गांवों व शहरी बस्तियों में नशा-विरोधी समितियों का गठन कर निष्ठापूर्वक कार्य होना चाहिए। इस प्रयास में अग्रणी भूमिका महिलाओं की होनी चाहिए।
महिलाओं के विरुद्ध जो विभिन्न तरह की हिंसा होती है, उसे न्यूनतम करने के प्रयास निरंतरता से होने चाहिए, पर केवल यही पर्याप्त नहीं है। महिलाओं को समाज में अधिक सम्मान मिले इसके लिए प्रयास होंगे तो महिला-विरोधी हिंसा अपने आप कम होगी। महिलाओं की गरिमामय स्थिति बनी रहे पर साथ में उन्हें समाज के सभी क्षेत्रों से अधिक खुलकर जिम्मेदारियां निभाने और कार्य करने के अवसर मिलने चाहिए। बेटियों की शिक्षा बढ़नी चाहिए व साथ में खेलों में, सांस्कृतिक गतिविधियों में भी बेहतर अवसर मिलने चाहिए।
जुआ या गैंबलिंग कई रूप में आ गया है। सभी तरह के जुए से दूर रहना चाहिए। साथ में यह विचार विकसित होना चाहिए कि जो अपनी मेहनत की कमाई है, वही सबसे उचित कमाई है। सभी तरह के अपराधों से दूर रहने का विचार सभी लोगों में विशेषकर युवाओं में प्रतिष्ठित करना चाहिए।
समाज में किसी के प्रति भी भेदभाव नहीं होना चाहिए। धर्म, जाति, रंग, नस्ल, लिंग, क्षेत्रीयता आदि किसी भी आधार पर भेदभाव अनुचित है। सभी मनुष्यों की समानता को हृदय से स्वीकार करना चाहिए व इस आधार पर सभी की भलाई के लिए सोचना चाहिए। इस तरह के विचारों के प्रसार से समाज तरह-तरह की संकीर्णता व उस पर आधारित द्वेष व आक्रामकता से मुक्त होगा।
अपने से निर्धन या कमजोर स्थिति के किसी भी व्यक्ति के प्रति हमारा व्यवहार उसकी भलाई को बढ़ाने वाला व नम्रता का होना चाहिए। उसकी कमजोर स्थिति के आधार पर उसका शोषण कभी नहीं करना चाहिए अपितु यह सोचना चाहिए कि यथासंभव हम उसकी कितनी सहायता कर सकते हैं। शोषण की सोच से समाज को मुक्त करना समाज-सुधार का एक अति महत्वपूर्ण पर उपेक्षित पक्ष है।
परिवार में, आस-पड़ोस में व अन्य स्तरों पर लड़ाई-झगड़ों, क्रोध में बोले गए कठोर वचनों से बचना चाहिए। बदले की भावना में सुलगते रहने या अदालती झगड़ों में उलझने के स्थान पर यथासंभव किसी वाद-विवाद को स्वयं व मित्रों की सहायता से शीघ्र सुलझा लेना चाहिए। आस-पड़ोस में व गांव समुदायों में या शहरी मोहल्लों में अत्यधिक प्रतिस्पर्धा व ईर्ष्या के माहौल के स्थान पर आपसी सहयोग व मिल-जुलकर कार्य करने के माहौल को तैयार करना चाहिए। बच्चों को भी अत्यधिक प्रतिस्पर्धा की होड़ से बचाना चाहिए।
सादगी के जीवन को नए सिरे से प्रतिष्ठित करना चाहिए। विशेषकर समारोहों, उत्सवों, शादी-ब्याह आदि में अधिक खर्च करने से बचना चाहिए। समाज में व्यापक प्रयास से दहेज-प्रथा को यथासंभव समाप्त ही कर देना चाहिए। विवाह जैसे पारिवारिक जरूरी कार्यों के लिए कोई तनाव न हो व आपसी सहयोग, कम खर्च से सब परिवार अपनी जिम्मेदारियां निभा सकें, ऐसा प्रयास करना चाहिए।
तकनीकी विकास व बदलावों के दौर में समाज में यह चेतना विकसित होनी चाहिए कि नए तकनीकी उपकरणों से जहां अनेक लाभ होते हैं वहां इनका दुरुपयोग भी हो सकता है। इससे सामाजिक क्षति भी हो सकती है। अतः तकनीकी प्रसार के साथ इनके सुरक्षित व जिम्मेदारी भरे उपयोग के महत्व को भी समाज में रेखांकित करना चाहिए।
पर्यावरण रक्षा की जिम्मेदारी हम सभी की है व हमें इसे निभाना चाहिए। इस सोच का प्रसार निरंतरता से होना चाहिए। नागरिकों को कूड़ा निपटाने के बेहतर ढंग अपनाने चाहिए। पर्यावरण की रक्षा को सादगी की जीवनशैली से जोड़ने की समझ समाज में विकसित होनी चाहिए। सभी जीव-जंतुओं के प्रति करुणा की भावना विकसित होनी चाहिए।
जरूरी नहीं है कि समाज-सुधार का कार्यक्रम इस आधार पर ही बने पर ये कुछ महत्वपूर्ण संकेतक हैं जिनके आधार पर बेहतर समाज निर्माण हो सकता है जिसमें दुख-दर्द और तनावों को बहुत कम किया जा सके। यह भी जरूरी नहीं कि सभी गांवों व मोहल्लों में सब जगह एक-सा ही कार्यक्रम बने, पर जब एक बार वे आपसी सहमति से कार्यक्रम बना लें तो महिलाओं के नेतृत्व में इस कार्यक्रम को निष्ठापूर्ण व निरंतरता से आगे अवश्य बढ़ाएं।

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