लंबे आमरण अनशन में हड्डियों के अंदर के मांस से जिंदा रहता है इंसान
जींद, 4 जनवरी
जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक आमरण अनशन करता है तो पहले उसकी हड्डियों के ऊपर की चर्बी खत्म होती है। उसके बाद हड्डियों के अंदर के मांस से उसका शरीर चलता है। हड्डियों के अंदर का मांस पेट में जाता है। आमरण अनशन करने वाले की किडनी पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। वजन बहुत तेजी से गिरता है। ऐसी स्थिति से उबरने में वर्षाें लग जाते हैं।
यह अनुभव है हरियाणा में सरकारी कर्मचारियों के सबसे बड़े संगठन सर्व कर्मचारी संघ के संस्थापक प्रधान जींद निवासी फूल सिंह श्योकंद का। फूल सिंह श्योकंद ने 30 मार्च 1987 से 14 मई 1987 तक सरकारी कर्मचारियों की मांगों को लेकर आमरण अनशन किया था। पंजाब के खनौरी बॉर्डर पर किसानों की मांगों को लेकर40 दिन से आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के मामले में स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में उन्होंने अपने अनुभव बताए। फूल सिंह ने 46 दिन आमरण अनशन किया था। फूल सिंह ने बताया कि जिस दिन 30 मार्च 1987 को वह आमरण अनशन पर बैठे थे, तब उनका वजन 87 किलो था। 46 दिन के आमरण अनशन के दौरान उनका वजन 87 किलो से कम होकर महज 44 किलो रह गया था। उनके सिर के बाल उड़ गए थे। आमरण अनशन से उनकी किडनी पर भी बुरा असर पड़ा था। फूल सिंह बताते हैं कि वह शारीरिक रूप से इतने कमजोर हो गए थे कि इस कमजोरी से उबरने में उन्हें एक साल से भी ज्यादा का समय लग गया था, जबकि उनकी उम्र उस समय महज 28 साल थी। किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की उम्र बहुत ज्यादा है और आमरण अनशन का उनके शरीर पर और भी ज्यादा बुरा असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार को जगजीत सिंह डल्लेवाल की किसानों की जायज मांगों को तुरंत मानकर उनका अनशन समाप्त करवाना चाहिए। डल्लेवाल केवल उन मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, जिन पर खुद प्रधानमंत्री मोदी ने किसान आंदोलन समाप्त करवाते समय सहमति जताई थी। फूल सिंह खुद संयुक्त किसान मोर्चा के बड़े नेता हैं। वह किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
फूल सिंह बताते हैं कि जब कोई व्यक्ति आमरण अनशन करता है तो वह कई दिन तक तो पेट में बचे हुए खाने से ही अपनी भूख मिटाता है। इसके बाद वह हड्डियों के ऊपर की चर्बी से जिंदा रहता है। जब हड्डियों के ऊपर की चर्बी समाप्त हो जाती है तो हड्डियों के अंदर के मांस से सांसें चलती हैं।
अनशन पर अखबारों से भी मिलती थी खुराक
फूल सिंह बताते हैं कि किसी बड़े मसले पर आमरण अनशन पर बैठे व्यक्ति को अखबारों की कवरेज से भी खुराक मिलती है। जब वह अनशन पर बैठे थे तब दैनिक ट्रिब्यून, द ट्रिब्यून सहित अन्य अखबारों में अपने अनशन और कर्मचारी आंदोलन की रोजाना की कवरेज से उन्हें जिंदा रहने के लिए खुराक मिलती थी।