अराजक राजनीति से अपराध के दलदल में भद्रलोक
उमेश चतुर्वेदी
बंकिम चंद्र की शस्य-श्यामला माटी वाला पश्चिम बंगाल एक शक्ति-पूजक समाज है। शरद ऋतु के स्वागत के साथ बंगाल की धरती हर साल मां दुर्गा के स्वागत में विभोर हो जाती है। बंगाल में महिलाओं का सम्मान किस प्रकार की परंपरा का हिस्सा रहा है, इसे समझने के लिए दुर्गा पूजा के विधान को समझना चाहिए। मूर्तियों को बनाने के लिए सबसे पहले उन वेश्याओं के घर से मिट्टी लाई जाती है, जिन्हें समाज आम तौर पर त्याज्य और गंदा मानता है। इस प्रकार बंगाल की धरती कितनी नारी-पूजक रही है, यह स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में भी देखने को मिलता है, जो अन्य राज्यों में कम ही मिलता है।
स्वाधीनता संग्राम में जिन तीन महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई और अपने ज्ञान व संघर्ष से भारत को आलोकित किया, वे तीनों बंगाल की बेटियां थीं। पहली थीं अरुणा गांगुली, जिन्होंने बाद में अरुणा आसफ अली का नाम अपनाया। दूसरी थीं सुचेता मजूमदार, जो सुचेता कृपलानी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। तीसरी थीं सरोजिनी चट्टोपाध्याय, जिन्होंने बाद में भारत कोकिला सरोजिनी नायडू का नाम पाया।
बंगाल की माटी ने महिलाओं को कितना सम्मान दिया, इसका एक और उदाहरण कमला देवी चट्टोपाध्याय हैं। जब भारत के अन्य इलाकों की महिलाएं घूंघट के पीछे सिर्फ परिवार के काम में व्यस्त थीं, तब बंगाल ने अपनी बेटियों को वाजिब सम्मान और अवसर दिए। बंगाल में कभी महिलाओं के साथ बदसलूकी की कल्पना तक नहीं की जाती थी।
अब स्थिति बदल गई है। इसका एक उदाहरण हाल ही में राधागोविंद कर अस्पताल में हुई घटना है। स्वतंत्रता की 77वीं सालगिरह की रात, जब पूरा देश उत्सव में था, कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर की बर्बरतापूर्वक बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई। बंगाल में देर रात तक दफ्तर से लौटने वाली लड़कियों की कभी चिंता नहीं होती थी, लेकिन अब लोग अपनी बच्चियों के लिए चिंतित हो गए हैं। यह बंगाल में महिला के खिलाफ ऐसी बर्बरता की शायद पहली घटना है। इससे बंगाली समाज का क्रोध और क्षोभ स्वाभाविक है।
दिलचस्प यह है कि पश्चिम बंगाल इकलौता ऐसा राज्य है, जिसे महिला मुख्यमंत्री का गौरव प्राप्त है। एक महिला के शासन में इस प्रकार का दुराचार लोगों के लिए असहनीय है। इसलिए बंगाल इन दिनों बहुत उबाल पर है। बंगाल का बौद्धिक समाज सड़कों पर उतर आया है। पश्चिम बंगाल में हाल ही में संदेशखाली से महिलाओं के बलात्कार की खबरें आई थीं। वहां की घटनाओं की परतें खुलने पर पता चला कि बलात्कार की घटनाएं अपराध और राजनीति के नापाक गठजोड़ का नतीजा थीं। संदेशखाली की पीड़िताओं की खबरें भले ही उबाल ला पाईं, लेकिन आरजी कर अस्पताल की घटना ने कहीं अधिक ध्यान खींचा। इसका कारण यह हो सकता है कि संदेशखाली की पीड़िताएं ग्रामीण इलाकों से थीं, जबकि आरजी कर की घटना कोलकाता शहर में हुई, जिसे भद्रलोक समाज के लिए जाना जाता है।
पश्चिम बंगाल की कड़वी सच्चाई बांग्लादेश से हो रही अवैध घुसपैठ है। 34 वर्षों के वामपंथी शासन के दौरान इस घुसपैठ को वैधता मिली। वामपंथी शासन व्यवस्था के दौरान पार्टी कैडर के नाम पर बड़े झुंड उभरे। पश्चिम बंगाल के वासी इस संस्थागत व्यवस्था से इतने परेशान हो गए कि उन्हें ममता बनर्जी में नई उम्मीद दिखी। बंगाली समाज को लगा कि ममता एक नई बयार बनकर पश्चिम बंगाल की व्यवस्था में जमी काई को साफ करेंगी। लेकिन अफसोस, ऐसा नहीं हुआ। ममता भी उसी दिशा में चल पड़ीं, जिस दिशा में वामपंथी कैडर चलते थे।
प्रशासन लगातार या तो पंगु होता गया या फिर सत्ताधारी तंत्र का चारण बनता गया। प्रशासन का यह चारण रूप 16 अगस्त को भी दिखा, जब आरजी कर की पीड़िता की रिपोर्ट साढ़े ग्यारह बजे रात को दर्ज की गई, जबकि बलात्कार और हत्या पंद्रह अगस्त की रात दो से ढाई बजे के बीच हो चुकी थी। इसे सुप्रीम कोर्ट ने भी नोटिस किया और कोलकाता पुलिस को फटकार भी लगाई। ममता की अगुआई में कोलकाता में बलात्कार और हत्या के विरोध में धरना दिया गया। यह धरना ऐसा था, जो सरकार के खिलाफ सरकार द्वारा ही दिया गया था। ऐसा किसी भी लोकतांत्रिक समाज में कम से कम अब तक नहीं देखा गया है। ममता ने प्रशासन में कोई गुणात्मक बदलाव नहीं किया, बल्कि वामपंथ जैसी कैडर व्यवस्था को अपना लिया। इससे राज्य में अपराध बढ़ा और पुलिस का इकबाल कम हुआ। पुलिस की लाचारगी आरजी कर बलात्कार में भी नजर आई।
बंगाल के बारे में कहा जाता रहा है कि ‘बंगाल जो आज सोचता है, वैसी सोच भविष्य में अन्य राज्यों की होती है।’ इस उम्मीद को कायम रखते हुए भद्रलोक समाज को चाहिए कि वह इस दिशा में भी सोचे। उसका गुस्सा एक ऐसे बंगाल की रचना करे, जहां रवींद्र संगीत गूंजता रहे, बंकिम के गीत गाए जाएं और नारियां स्वतंत्र रूप से काम कर सकें। जहां सिंदूर खेला होगा, घुंघुंची नृत्य होगा और दुर्गा देवी की पूजा होगी।