पोल खुलने के साथ ही बजते हैं ढोल
मृदुल कश्यप
पोल जब जन्म लेती है तभी यह लगभग तय हो जाता है कि वह एक न एक दिन खुलेगी अवश्य। अब यह अलग-अलग प्रकार की पोल पर निर्भर करता है कि वह कब खुलेगी पर खुलती जरूर है। हालांकि, इस बारे में कुछ बुद्धिजीवियों का मत है कि अगर गहन शोध किया जाए तो हो सकता है कि कुछ ऐसी पोल भी चिन्हित हो जाए जो कभी भी खुली न हो। या फिर जिनके अब खुलने की संभावना न के बराबर हो।
पर इस बारे में सभी लोग एक मत हैं कि अगर कोई पोल है तो वह एक न एक दिन अवश्य खुलेगी और पोल भी इस हिसाब से ही अपना मानस बनाकर चलती है कि उसे एक न एक दिन खुलना ही है।
जो पोल अपनी समयावधि के अनुसार खुल जाती है उनकी चर्चा खुलेआम होती है। वह ब्रेकिंग न्यूज़ बनती है। उसका वीडियो वायरल होता है। उस पर मीम्स बनाए जाते हैं पर जो पोल समयानुसार नहीं खुलती उसके बारे में खुसर-पुसर बातें होती रहती हैं। आम आदमी दबे स्वर में बतियाते हैं कि यहां बहुत पोल है या यहां बहुत गहरी पोल है। देखना एक न एक दिन खुल ही जाएगी। कई लोग पोल के साथ पोलम-पोल भी कहकर कविता-सा मजा लेते हैं और यह सुनकर सब लोग हंसने लगते हैं। पोल के कानों में जब यह फुसफुसाहट पड़ती है तो वह विचार करने लगती है कि उसके दिन अब पूरे हो गए।
पोल जीवन के अनेक क्षेत्रों में विद्यमान रहती है। छोटे भंडारे से लेकर बड़ी शादी तक, कस्बे के दफ्तर से लेकर राजधानी के ऑफिस तक, टप्पू के ढाबे से बड़े-बड़े होटलों तक, पहली कक्षा से लेकर भारी-भरकम एग्जाम तक यानी छोटी-बड़ी सभी व्यवस्था में पोलम-पोल मिस्टर इंडिया जैसी अदृश्य रूप में विद्यमान रहती है।
सामान्यत: कुछ विशेष प्रकार की पोल को बारिश से विशेष अनुराग होता है। इसलिए जब बादल उमड़ने लगते हैं तो पोल के दिल में कुछ-कुछ होने लगता है। और जब वे बरस पड़ते हैं तो पोल के धड़ाधड़ खुलने की खबरें आना शुरू हो जाती हैं। इस मौसम में सबसे पहले गटर का नम्बर आता है और फिर उसी के साथ-साथ बारिश से सड़क की पोल भी खुल जाती है। ज्यादा बारिश होती है तो मकान की पोल भी खुल जाती है। अगर और भी ज्यादा बारिश हुई तो पुल की पोल और कई बार बांध की पोल भी मिले सुर मेरा तुम्हारा गा उठती है। बारिश में पोल बाहर खुलती रहती है जबकि पोल का जनक झीने परदे के पार बैठा हुआ हरी चटनी के साथ पकोेड़े खाता रहता है।