नशीले पदार्थों का शिकंजा
देश की युवा पीढ़ी को खोखला कर रहा नशे का कारोबार तेजी से अपना शिकंजा कस रहा है। इस तरह की आशंकाएं तो अक्सर जतायी जाती रही हैं, लेकिन राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एन.सी.आर.बी. की हाल में जारी वार्षिक रिपोर्ट आंख खोलने वाली है। जिसकी चर्चा सारे देश में की जा रही है। नशीली दवाओं के बढ़ते दायरे पर एन.सी.आर.बी. की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। जो संकट की विकट होती स्थिति को दर्शाते हैं। नशीली दवाओं के सिंडिकेट्स के लगातार होते फैलाव को देखते हुए जरूरत महसूस की जा रही है कि इसके खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर रणनीति तैयार की जाए। रिपोर्ट ने पूर्व की धारणाओं को खंडित करते हुए नई तस्वीर उकेरी है। अब तक पुरानी रिपोर्टों को देखते हुए यह धारणा रही है कि पंजाब में नशीली दवाओं का सर्वाधिक सेवन किया जा रहा है। एन.सी.आर.बी. की बीते साल की रिपोर्ट बताती है कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस यानी एनडीपीएस अधिनियम की सभी श्रेणियों में दर्ज 26,619 प्राथमिकियों के साथ केरल पहले नंबर पर नजर आता है। वहीं 13, 830 एफआईआर के साथ महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर उभरता है। इसके उपरांत पंजाब एनडीपीएस अधिनियम की विभिन्न धाराओं में दर्ज 12,442 एफआईआर के साथ तीसरे स्थान पर दिखायी देता है। निश्चित रूप से केरल का नशीली दवाओं के हॉटस्पॉट के रूप में उभरना देश की बड़ी चिंता होना चाहिए। लेकिन ये आंकड़े किसी राज्य की वास्तविक स्थिति पर पर्दा डालने का आधार नहीं देते। यह भी देखने की जरूरत है कि पुलिस कितनी ईमानदारी से एनडीपीएस अधिनियम की विभिन्न धाराओं में मामले दर्ज करती है। बहरहाल, एनसीआरबी के आंकड़े यह चिंताजनक निष्कर्ष दे रहे हैं कि नशीले पदार्थों का संजाल, उत्पादन, तस्करी तथा खपत पूरे देश में बढ़ रही है। जिसके खिलाफ जब तक कानून सख्त नहीं बनाये जाते और केंद्र व राज्य सरकारों तथा एजेंसियों में बेहतर तालमेल से नशा तस्करों व उत्पादकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती, तब तक तसवीर नहीं बदलेगी।
बहरहाल, नशे के अंधे कारोबार का दायरा कितना घातक होता जा रहा है, वह हाल में जारी एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों से पता चलता है। पिछले साल भारत में नशीले पदार्थों के ओवरडोज के कारण 116 महिलाओं की मौत दर्ज की गई। कुल 681 लोगों की मौत नशीली दवाओं के अधिक सेवन से हुई। इसमें सबसे ज्यादा 144 मौतें पंजाब में हुई, जो राज्य में नशे के सामान की उपलब्धता व सेवन की वास्तविक स्थिति को दर्शाती है। इसके बाद राजस्थान में 117 मौतें हुई तथा मध्य प्रदेश में 74 लोग नशे के आत्मघाती कदम के शिकार बने। पंजाब में तस्करी के लिये नशीले पदार्थ रखने से संबंधित 7,433 मामले एनडीपीएस की विभिन्न धाराओं में दर्ज किये गये। निश्चित रूप से नशे की सामग्री रखने के मामले देश में सबसे अधिक हैं। वहीं व्यक्तिगत उपयोग के लिये ड्रग्स रखने के लिये 5009 प्राथमिकियां भी दर्ज की गई। बहरहाल, एनसीआरबी के ये आंकड़े इस बात का प्रमाण भी हैं कि नशीले पदार्थों के खिलाफ लड़ाई अब एक देशव्यापी चुनौती है। विडंबना यह है कि पंजाब में सभी मामले दर्ज नहीं किये जा रहे हैं। निश्चित रूप से इस नशे के खिलाफ कारगर अभियान के लिये अंतरराज्यीय योजनाओं और केंद्रीय सहायता की जरूरत है। यकीनी तौर पर एनडीपीएस मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने में वृद्धि कुछ राज्य सरकारों के सक्रिय दृष्टिकोण को दर्शाती है। लेकिन वहीं दूसरी ओर सजा की निम्न दर हमारी चिंता का विषय होनी चाहिए। देर से प्रस्तुत और कमजोर आरोप पत्र तथा ड्रग माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय सिर्फ तस्करों को पकड़ने के मामले निश्चित रूप से इस संकट को बढ़ाने में मददगार ही साबित होंगे। यह एक गंभीर चुनौती है और इस संकट से मुकाबले के लिये प्रशासन व पुलिस के अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही समाज में नशे के खिलाफ जागरूकता अभियान भी चलाने की जरूरत है। वहीं नशे की लत के शिकार लोगों को चिकित्सा सहायता व कारगर परामर्श उपलब्ध कराने की दिशा में गंभीर पहल करने की जरूरत महसूस की जा रही है।