नशे का नासूर
हाल के दिनों में देश के विभिन्न भागों में बड़ी मात्रा में नशीले पदार्थों की बरामदगी हमारे नीति नियंताओं की गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। ये घातक नशा न केवल युवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट करता है बल्कि अपराध की एक अंतहीन शृंखला को भी जन्म देता है। जाहिरा तौर पर नशे के अंतर्राष्ट्रीय सौदागर देश में कानून-व्यवस्था का संकट भी पैदा करना चाहते हैं। यह संकट कितना बड़ा है, वह इस बात से पता चलता है कि एक माह के भीतर भारतीय एजेंसियों ने गुजरात तट पर नशे की एक दूसरी बड़ी खेप बरामद की है। एनसीबी, तटरक्षक बल व गुजरात आतंकरोधी दस्ते के साझे अभियान को तब बड़ी कामयाबी हाथ लगी, जब पोरबंदर तट पर करीब 480 करोड़ रुपये का नशीला पदार्थ जब्त किया गया। इसके साथ ही एक अंतर्राष्ट्रीय गिरोह के लिये काम करने वाले छह पाकिस्तानियों की गिरफ्तारी भी महत्वपूर्ण है, जिसके जरिये समुद्र मार्ग से हो रही नशीले पदार्थों की बड़ी तस्करी के सूत्र तलाशने में भारतीय एजेंसियों को मदद मिल सकेगी। ज्यादा दिन नहीं हुए जब पिछले महीने ही गुजरात के तट पर एक ईरानी नाव से तैंतीस सौ किलोग्राम नशीले पदार्थ बरामद किये गए थे। गाहे-बगाहे देश के अन्य भागों से भी नशीले पदार्थों की बरामदगी की खबरें मिलती रहती हैं। अकेले गुजरात से ही पिछले दो सालों के दौरान करीब छह हजार करोड़ रुपये के नशीले पदार्थ बरामद किए गए हैं। इस आंकड़े से इस बात का अहसास किया जा सकता है कि पूरे देश में नशीले पदार्थों की बरामदगी का आंकड़ा कितना बड़ा होगा। यह भी कि देश की युवा पीढ़ी को तबाह करने की कितनी बड़ी साजिश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रची जा रही है। बड़ी बरामदगियों में पाकिस्तान, ईरान व अफगानिस्तान की भूमिका से गहरी साजिश की ओर इशारा मिलता है। निश्चित रूप से ड्रग्स से हासिल रकम का उपयोग पूरी दुनिया में आतंकवाद की जड़ें सींचने में किया जा रहा है। अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था में ड्रग्स की भूमिका किसी से छिपी नहीं है।
निस्संदेह, देश में जब भी कहीं कोई नशे की बड़ी खेप की बरामदगी होती है आम भारतीय की फिक्र बढ़ जाती है। कल्पना कीजिए कि यदि हाल में बरामद ड्रग्स की खेप भारत में दाखिल होती तो कितने युवा पथभ्रष्ट होते? वहीं देश की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा बड़ी मात्रा में आतंकवाद को सींचने के लिये चली जाती। हमें न केवल बाहर से आने वाली नशे की खेपों पर अंकुश लगाना है, बल्कि उन काली भेड़ों पर भी लगाम कसनी है जो अंतर्राष्ट्रीय तस्करों की मददगार बनी हुई हैं। हमें देश के भीतर नशे सप्लाई करने वाले तंत्र की जड़ों तक भी पहुंचना होगा, अन्यथा हजारों घरों के चिराग असमय काल-कवलित होते रहेंगे। देश के विभिन्न भागों से नशे की ओवर डोज से मरने वाले युवाओं की खबरें अकसर आती रहती हैं। अपनों को खोने वाले परिवारों की पीड़ा को देश के नीति-नियंताओं को समझना होगा। नशे की इस भयावह लत का एक घातक पहलू यह भी है कि यह समाज में कई तरह के अपराधों को भी जन्म देती है। विगत में कई ऐसे मामले प्रकाश में आए हैं कि जब महंगे नशीले पदार्थों को खरीदने के लिये युवा अपराध की तंग गलियों में विचरण करने लगते हैं। कई सोने की चेन छीनने की घटनाओं में तमाम ऐसे युवक पकड़े गए हैं जो अच्छे खाते-पीते घरों के थे, कई अच्छे शिक्षा संस्थानों में अध्ययनरत थे। संकट का एक पहलू पड़ोसी देश पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठानों की भूमिका भी है। जम्मू-कश्मीर व पंजाब में ड्रग मनी का इस्तेमाल आतंकवादियों को हथियार उपलब्ध कराने तथा भारत विरोधी अभियान चलाने में किया जाता है। यहां तक कि सीमा पर सुरक्षा बलों की कड़ी चौकसी के बाद अब ड्रोन के जरिये नशीले पदार्थ सीमावर्ती जिलों में गिराये जा रहे हैं। सीमा सुरक्षा बल ने ऐसे कई ड्रोन मार भी गिराए जो नशे की खेप लेकर भारतीय सीमा में घुस रहे थे। निश्चित रूप से यह बड़ा संकट है। देश की सुरक्षा के लिए सरकार व उसकी खुफिया एजेंसियों को नियोजित ढंग से नशे के नापाक कारोबार के खिलाफ बड़ा मोर्चा खोलना होगा।