मिसाल और मशाल बनने वाले डॉ. पाठक
राजकिशन नैन
गांधीवादी लेखकों द्वारा लिखी एवं डॉ. अनिल दत्त मिश्र द्वारा संपादित ‘मानवतावादी डॉ. विन्देश्वर पाठक’ पुस्तक में ‘टायलेट मैन’ के नाम से ख्यात सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक के दर्शन, संघर्ष व कार्य की विस्तृत तथा गहन मीमांसा की गई है। मैला ढोने वालों को अस्पृश्यता से उभारने वाले डॉ. पाठक समाज के सजग हितैषी और पर्यावरण के सच्चे प्रहरी थे।
डॉ. पाठक न तो इंजीनियर थे और न ही वैज्ञानिक, मगर संकल्प की दृढ़ता से उन्हाेंने ‘टू-पिट पोर फ्लश, डिस्पोजल कंपोस्ट टॉयलेट’ का आविष्कार किया। डॉ. पाठक ने अपनी पत्नी के गहने बेचकर 500 रुपये में सुलभ नाम से जो संस्था खड़ी की, वह आज 500 करोड़ का संगठन है और फिलवक्त उसमें 65,000 से ज्यादा कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। सुलभ के जरिये उन्होंने जो भी धन कमाया, उसका उपयोग मानव के कल्याण के लिए किया। सुलभ-परिवार के कल्याणकारी कार्य अभी 26 राज्यों, 4 संघीय क्षेत्रों, 1686 स्थानीय निकायों, 1735 शहरों और 552 जिलों में चल रहे हैं। देश में 200 बायोगैस प्लांट कार्य कर रहे हैं।
सन् 1994 से दिल्ली में सुलभ अंतर्राष्ट्रीय म्यूजियम स्थापित है, जहां 2500 बीसी से लेकर अब तक दुनिया में उपलब्ध शौचालय के विकास-क्रम को संजोया गया है। डॉ. पाठक ने नई दिल्ली में अंग्रेजी माध्यम का सुलभ पब्लिक स्कूल स्थापित किया, जिसमें स्कैवेंजर परिवार के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी जा रही है।
छुआछूत के जमाने में गांव रामपुर-बघेल (जि. वैशाली) के जिस संभ्रांत मैथिल ब्राह्मण-परिवार में डॉ. पाठक जन्मे, उसमें भी उन्हें अशुद्धि-शोधन का दंश झेलना पड़ा। परिवार के मुखिया की मृत्यु के कारण 13 वर्ष की कच्ची उम्र में डॉ. पाठक को रोजी-रोटी की खातिर अपने दादा की घरेलू नुस्खों वाली दस-दस किलो की बोतलें साइकिल पर लादकर गांव-गांव दवा बेचनी पड़ी। किंतु जब वे उठे तो इतिहास के लिए मिसाल भी बने और मशाल भी।
डॉ. पाठक ने समाजोत्थान हेतु तीस से ज्यादा पुस्तकें लिखी। पर्यावरण, शौचालय, स्वच्छता, जल, महिमा गंगा और काशी की तथा विधवा-रूपांतर समेत अशक्तों व अछूतों पर अनेक मार्मिक कविताएं रची। दुनिया के तमाम गणमान्य लोगों ने डॉ. पाठक के काम को मुक्त कंठ से सराहा। प्रसिद्ध लेखक मुल्कराज आनंद ने लिखा, ‘अब्राहम लिंकन ने अमेरिका में जो काम अश्वेतों के लिए किया, वही डॉ. पाठक ने भारत में स्कैवेंजरों की खातिर किया। दोनों ही महान उद्धारक हैं।’ मशहूर स्तंभकार खुशवंत सिंह ने कहा, ‘डॉ. विन्देश्वर पाठक राष्ट्र की कृतज्ञता के हकदार हैं।’ डॉ. पाठक को समझने के लिए यह एक जरूरी पुस्तक है।
पुस्तक : मानवतावादी डॉ. विन्देश्वर पाठक सम्पादक : डॉ. अनिल दत्त मिश्र प्रकाशक : राधा पब्लिकेशन्स, नयी दिल्ली पृष्ठ : 128 मूल्य : रु. 350.