गधे भले मेहनती हों मगर हम मेहनती को गधा कहते हैं
शमीम शर्मा
काबुल घोड़ों के लिये प्रसिद्ध है पर कहावत है कि क्या काबुल में गधे नहीं होते? मतलब साफ है कि गधे हर जगह विद्यमान हैं और जिसे गधे को बाप बनाना आ जाये, वही चतुर सुजान है। घोड़े तो फिर भी शादी और सेना में दिख जाते हैं पर गधे नदारद हैं। कल एक धोबी को बाइक के पीछे मैले कपड़ों का गट्ठर लादे धोबी घाट की ओर जाते हुए देखा तो ज़हन में सवाल आया कि इस आटो, बाइक, कार आदि के युग में गधे पता नहीं किस काम आते होंगे? गधे बेचारे बिल्कुल खाली से हो गये लगते हैं। जैसे चुनावों के बाद समर्थक खाली हो गये हैं।
एक लोककथा है कि शेर बूढ़ा होने पर गीदड़ से बोला, कोई शिकार ढूंढ़ कर लाओ। गीदड़ गया और एक गधे को यह समझाकर ले आया कि शेर बूढ़ा हो चला है और तुम्हें अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहता है। गधे को देखते ही शेर ने उसकी पूंछ पर पंजा मारा और पूंछ टूट कर नीचे गिर गई। गधा तो वहां से भाग लिया। गीदड़ उसे यह कहकर दोबारा ले आया कि तुम्हारी पूंछ इसलिये हटाई है ताकि तुम्हें सिंहासन पर बैठने में कोई दिक्कत न हो। अब की बार शेर ने गधे के कानों पर पंजा मारा तो दोनों कान झड़ गये। और गधा वहां से जान बचाकर फिर भाग लिया। गीदड़ ने उसे यह कहकर फुसला लिया कि कानों के कारण तुम्हारे सिर पर मुकुट कैसे लगता। अब की बार शेर ने उसके सिर पर पंजा मारा और खून बह निकला। गधा धम्म से वहीं बैठ गया। शेर एक मिनट के लिये गुफा के भीतर गया तो पीछे से गीदड़ ने गधे के सिर से उसका मगज निकाल कर चुपचाप खा लिया। शेर आया तो मगज खाने के लिये गधे के सिर में झांकने लगा। शेर ने पूछा- मगज तो है ही नहीं। गीदड़ बोला- जनाब! अगर मगज ही होता तो यहां आता?
सच्चाई यही है कि मगज हो या मलाई, बिचौलिये खा जाते हैं। आम गधे तो बेचारे मारे जाते हैं। गधों को यह शिकायत है कि भ्रष्ट लोगों को गधा क्यों कहा जाता है क्योंकि गधे तो मेहनत का खाते हैं, हराम का नहीं। एक कमाल यह भी है कि गधे मेहनती होते हैं और हम मेहनत करने वाले को गधा कहते हैं।
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एक बर की बात है अक सुरजा मास्टर बालकां तैं दारू के नुकसान समझाते होये बोल्या- गधे के सामीं एक बाल्टी पानी अर एक बाल्टी दारू की धरांगे तो वो पानी ए पीवैगा, दारू नहीं। या सुणते ही नत्थू बोल्या- वो तो मेरा बटा कती गधा है।