घरेलू स्टार्टअप्स को संबल से हो चिप निर्माण
चीन की महाकाय टेलीकॉम कंपनी हुआवे ने 4 सितम्बर को 5-जी क्षमता वाला मोबाइल फोन मेट-60 बाजार में उतारा है। इसके परिप्रेक्ष्य में भारत को माइक्रोप्रोसेसर चिप के घरेलू उत्पादन की अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। फोन कंपनियां नित नए मॉडल बाजार में पेश करती रहती हैं। लेकिन एक चीनी कंपनी द्वारा मोबाइल फोन का नया मॉडल जारी करना भारत के लिए क्योंकर इतना मायने रखता है, खासकर जब हमारी आकांक्षा वैश्विक चिप-सुपरपॉवर बनने की है?
लेकिन हुआवे कोई ऐसी-वैसी मोबाइल उत्पादन कंपनी नहीं है। इसकी स्थापना टेलीकॉम शृंखला के तमाम क्षेत्रों में मूल्य-संवर्धन करते हुए चीन की स्वदेशी क्षमता बनाने के मकसद से हुई थी। इसके काम में संचार और सिग्नल तकनीक से लेकर चिप डिजाइनिंग, राउटर्स एवं दूरसंचार नेटवर्क और इसके लिए जरूरी कलपुर्जे और हैंडसेट उत्पादन शामिल हैं। यह कंपनी अपनी कुल आमदनी का 15-20 फीसदी अनुसंधान एवं विकास पर निवेश करती है। पूरी दुनिया में दूरसंचार तंत्र निर्माण में हुआवे सबसे सस्ती कंपनी है और वैश्विक बाजार में इसकी हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है।
अमेरिका ने अपने दूरसंचार ढांचा निर्माण कार्यों में हुआवे की भागीदारी प्रतिबंधित कर रखी है और अपने सहयोगियों को भी यही करने को प्रेरित करता है, क्योंकि उसे शक है कि हुआवे के उपकरणों और नेटवर्क के जरिए चीनी सरकार समस्त डाटा ट्रैफिक पर चोरी से नज़र रख सकती है। हालांकि हुआवे इसका पुरज़ोर खंडन करती है, लेकिन कोई असर नहीं। अमेरिकी सरकार के दबाव में, गूगल ने अपना एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम हुआवे को देना बंद कर दिया, हालांकि शेष चीनी फोन निर्माताओं पर रोक नहीं है। बाइडेन प्रशासन ने पूर्ववर्ती ट्रंप सरकार द्वारा चीनी कंपनियों पर लगाए तकनीक-प्रतिबंधों को और कस दिया ताकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्वांटम कंप्यूटिंग में चीन की क्षमता अमेरिका से आगे न निकल पाए। यह तकनीकें व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता में बढ़त देने के अलावा सामरिक रूप से बहुत महत्व रखती हैं।
इन प्रतिबंधों में एक था चिप-निर्माण में प्रयुक्त होने वाले उपकरण, गैस और रसायन चीनी कंपनियों को देने पर रोक। नीदरलैंड की एएसएमएल कंपनी का एक्सट्रीम अल्ट्रावॉयलेट लित्थोग्राफी तकनीक वाली मशीनें बनाने पर एकाधिकार है। इसमें फोकस्ड लेजर बीम से सिलिकॉन चिप पर अल्ट्रा-थिन ग्रूव्स (नलियां) बनाए जाते हैं, जिनमें वाष्पित तांबा भर जाने के बाद माइक्रोप्रोसेसर का फाइन सर्किट तैयार होता है। एएसएमएल ने अमेरिका द्वारा लगाए तकनीक-प्रतिबंधों का पालन किया क्योंकि मशीन बनाने की तकनीक अमेरिका से मिली है। यह कंपनी अपनी मशीनें सिर्फ निर्यात-लाइसेंस प्रावधान के अधीन बेच सकती है और चीन को ऐसा कोई लाइसेंस नहीं दिया गया।
इसके बावजूद हुआवे मेट-60 में जो चिप लगी है वह 7 नैनोमीटर सर्किट्री पर आधारित है, जिसे कुछ साल पहले तक परम-परिष्कृत तकनीक मानी जाती थी। नवीनतम आईफोन में विश्व के सबसे उन्नत चिप निर्माता ताइवान के सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग कॉर्पोरेशन द्वारा बनाई 3-नैनोमीटर चिप लगी हुई है। इंटेल, जो कि इंटीग्रेटेड सर्किट में सिरमौर है, वह भी आज की तारीख में इतनी उन्नत चिप नहीं बना सकता। हुआवे की चिप शायद चीन सरकार के आंशिक स्वामित्व वाली सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग इंटरनेशनल कॉर्पोरेशन (एसएमआईसी) में बनी है। अमेरिका ने यह जानने के लिए जांच बैठाई है कि एसएमआईसी ने यह चिप अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन करके कहीं से आयातित किए उपकरणों के जरिए बनाई है या स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास के बूते पर। केवल कुछ महीने पहले ही, एक चीनी स्टार्टअप ने 20 नैनोमीटर डिज़ाइन आधारित चिप सफलतापूर्वक जारी की है, जिसे स्वदेश में विकसित तकनीक और निर्माण-उपकरणों से बनाया गया है। बड़ी मशीनें और उपकरण, जिनमें चिप का सूक्ष्म आकार अनिवार्य नहीं है, जैसे कि कार, रेफ्रिजेरेटर इत्यादि, वहां चिप 20 नैनोमीटर वाली हो या 40 नैनोमीटर वाली लगे, कोई फर्क नहीं पड़ता।
जो चिप भारत में वेदांता ग्रुप बनाने की सोच रहा है और जिसके पीछे केंद्र सरकार द्वारा घोषित उदार सब्सिडी के संबल के अतिरिक्त राज्य सरकार का भी पूरा सहयोग है, वह पुरानी पीढ़ी की चिप है। अब तक, एक भी चिप निर्माता कंपनी आगे नहीं आई जो भारत में नवीनतम और परम-परिष्कृत चिप बनाने की पेशकश करे। अमेरिका, यूरोप, जापान और दक्षिण कोरिया अपने यहां नए चिप उत्पादकों को दहाई बिलियन डॉलर की सब्सिडी दे रहे हैं, इस दौड़ में भारत क्या सच में इन देशों के सामने टिकता है? क्या यह करने का वास्तविक लाभ भी है? प्रतिबद्ध निवेश के रूप में भारत इस क्षेत्र में जो कुछ पा सका है, वह केवल असेम्बली, टेस्टिंग और पैकेजिंग (एटीएमपी) प्लांट स्थापित करने तक सीमित है न कि निर्माण कार्य।
हुआवे फोन द्वारा 7 नैनोमीटर वाली और चीनी स्टार्टअप का 20 नैनोमीटर वाली चिप बना लेना दर्शाता है कि वे स्थापित विदेशी चिप निर्माताओं से इतर स्वदेशी निर्माण उपकरण और तकनीक से चिप बनाने में सक्षम हो गए हैं। यह वह लीक है, जिस पर भारत को ध्यान केंद्रित करना चाहिए। आखिरकार स्वदेशी चिप निर्माण करने की जहमत क्यों उठानी चाहिए? इसके पीछे तीन कारण हो सकते हैं। एक है चिप आयात करने में जो विशाल विदेशी मुद्रा हाथ से जाती है, उसे रोकना। चिप आयात का हमारा खर्च आयातित तेल के भुगतान से ज्यादा बढ़ने की संभावना है। एक अन्य वजह है भविष्य में चिप की सतत् आपूर्ति बनाना ताकि कोविड-19 जैसी आपदा से विघ्न न बनने पाए। यदि चिप देश में ही बनने लगे तो वैश्विक व्यापार में किन्हीं वजहों से आपूर्ति शृंखला में आई अड़चन का असर नहीं होगा। तीसरा कारण है, यह सुनिश्चित करना कि भू-राजनीतिक आधार पर यदि कोई देश उन्नत चिप देने से मना कर दे, तो भी काम न रुके।
क्वाड संगठन में जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत अमेरिका का सहयोगी है, इसकी स्थापना का प्रयोजन इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते दबदबे में प्रति-संतुलन बनाना है, ऐसे में स्वदेशी चिप उत्पादन के लिए जरूरी और महत्वपूर्ण तकनीक पाने में मनाही का डर कम ही होना चाहिए। लेकिन हमारी इस सोच को अमेरिकी राजनीति द्वारा पक्षपाती रवैया रखकर काम करने वाली मानसिकता से पार पाना होगा, क्योंकि अमेरिकी संसद में बहुमत रिपब्लिकन पार्टी का हो या डेमोक्रेट्स का, परिष्कृत तकनीक भारत को देने से मनाही के पीछे मुख्य आधार यह हो सकता है कि चिप निर्माण एवं प्रबंधन काबिलियत किसी अन्य देश (पक्ष) के हाथ में न जाने पाए।
भारत ने सामरिक महत्व के विषयों में आत्मनिर्भरता बनाने का ध्येय आजादी पाने के बाद से ही रखा है और सामरिक क्षमता बनाने में प्रयास लगातार जारी रखे हैं, इसमें अन्य देशों से लिए जाने वाले तमाम हथियार और आयुध की तकनीक पाना भी शामिल है। इसी लीक पर कायम रहते हुए, भारत के पास खुद की चिप निर्माण क्षमता होनी चाहिए, वह जो महत्वपूर्ण तकनीक अपने नियंत्रण में रखने वाले किसी देश की राजनीतिक चालों की बंधक न हो। इसके लिए चिप निर्माताओं को स्टार्ट-अप कार्यक्रम के तहत भारत में इकाई स्थापित करने के लिए सब्सिडी आवंटन प्रावधान रखा गया ताकि चिप-निर्माण में प्रयुक्त विविध कलपुर्जे और मशीनों का तंत्र देश के भीतर स्थापित हो सके। इस प्राप्ति के लिए जो इंजीनियरिंग कौशल और नवउद्यम ऊर्जा चाहिए, वह भारत के पास है। कमी है तो बड़ी संख्या में नव-स्टार्टअप्स के लिए जरूरी उदार फंड की उपलब्धि की। ताकि इनमें कुछ बहुत बढ़िया कर दिखाएंगे।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।