साहित्य में पर्यावरणीय वैज्ञानिक दृष्टि का दस्तावेज
अरुण नैथानी
आज 21वीं सदी में दुनिया जिस ग्लोबल वार्मिंग के भयावह प्रभावों से त्रस्त है उसकी चेतावनी व समस्या के समाधान भारतीय पौराणिक ग्रंथों में स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं। कथित आधुनिक सभ्यता ने विकास के नाम पर विनाश का जो तांडव किया, उसकी जीवंत तस्वीर मानसून के दौरान जल प्रलय जैसे हालात के रूप में देखी जा सकती है। पर्यावरण की इन्हीं चिंताओं का चिंतन करता है साहित्यकार व शिक्षाविद् मीरा गौतम का शोध अध्ययन ‘साहित्य में पर्यावरण का वैज्ञानिक अध्ययन।’ मीरा गौतम पर्यावरणीय मुद्दों को लेकर बेहद संवेदनशील रही हैं। उनके अकादमिक अध्ययन व 31 पुस्तकों की रचना में इसका गहरा प्रभाव रहा है। दरअसल, उनके पिता, दादा और चाचा-ताऊ अविभाजित उत्तर प्रदेश के उत्तराखंड क्षेत्र में वन विभाग के बड़े पदों पर कार्यरत रहे हैं। वे न केवल अधिकारी के रूप में बल्कि एक संवेदनशील वन संपदा के संरक्षक के तौर पर सक्रिय रहे हंै, जिसके लिये परिवार ने वन माफिया तक का मुकाबला किया। प्रकृति के प्रति परिवार के गहरे अनुराग ने उन्हें इस शोध के लिये प्रेरित किया।
इस साढ़े चार सौ पृष्ठ के शोधग्रंथ की शोध योजना को छह अध्यायों में विभाजित किया है। प्रथम अध्याय में ‘पर्यावरण अध्ययन की अनिवार्यता, अर्थ, स्वरूप, क्षेत्र, प्रदूषण, परिस्थितिकी, दर्शन, वैष्णव दर्शन, शुद्धाद्वैत-दर्शन एवं पुष्टिमार्ग’ को चार उपशीर्षकों में विभाजित किया है। दूसरे अध्याय में ‘पर्यावरण का अर्थ, स्वरूप, परिभाषा व क्षेत्र’ के अंतर्गत पर्यावरण की अवधारणा की सैद्धांतिक व्याख्या की गई है। तृतीय अध्याय में ‘पर्यावरण और वर्तमान साहित्यिक-परिदृश्य’ में पर्यावरण की साहित्य-जनित चिंताओं का विश्लेषण है। चतुर्थ अध्याय में ‘पुष्टिमार्गीय काव्य में सामाजिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण’ में समाज और संस्कृति को परिभाषित करके पुष्टिमार्गीय काव्य के लीलागायन में संपन्न होने वाले वर्षोत्सव, संस्कार, लोकाचार, रीति-रिवाज और ब्रज संस्कृति के पर्यावरणीय पक्षों को विवेचित किया गया है। पांचवें अध्याय में ‘पर्यावरण एवं भारतीय संविधान’ में आजादी से पहले अंग्रेजों द्वारा वनों की लूट-खसोट का विध्वंसक चित्र उकेरा गया है। अंत में छठे अध्याय में ‘पर्यावरण के वर्तमान-संदर्भ में मीडिया की भूमिका एवं पुष्टिमार्गीय काव्य की प्रासंगिकता’ के तहत मौजूदा पर्यावरणीय संकट में मीडिया की भूमिका का उल्लेख है। कुल मिलाकर सभी अध्यायों के सार से यह बताने का प्रयास किया गया है कि हमारे पौराणिक ग्रंथों में पर्यावरणीय संकट के समाधान निहित हैं।
दरअसल, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद की फेलोशिप की शोध योजना के अंतर्गत मीरा गौतम द्वारा किया गया यह पर्यावरणीय चिंताओं का चिंतन पर्यावरण जिज्ञासुओं के लिये बेहद उपयोगी बन पड़ा है। जिसमें पर्यावरण को विस्तृत अर्थ देते हुए इसे मनुष्य, समाज और उसके परिवेश से जुड़े हर पक्ष को समाहित किया गया है। साथ ही बताया गया है कि सृष्टि को संचालित करने वाले पांच घटक पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश व वायु पर किस कदर संकट मंडरा रहा है। इस शोधकार्य में पौराणिक ग्रंथों से लेकर 21वीं सदी के अद्यतन ग्रंथों को शामिल किया गया है।
पुस्तक : साहित्य में पर्यावरण का वैज्ञानिक अध्ययन लेखिका : मीरा गौतम प्रकाशक : आइसेक्ट पब्लिकेशन, भोपाल पृष्ठ : 428 मूल्य : रु. 650.