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डॉक्टरों की हड़ताल

06:54 AM Aug 19, 2024 IST
डॉक्टरों की हड़ताल

निश्चित रूप से कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कालेज के अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर की दुराचार के बाद की गई हत्या ने पूरे देश को झकझोरा है। यह हमारे लिये शर्मनाक घटना है कि देर रात मरीजों को नया जीवन बांटने में लगी जूनियर डॉक्टर की अस्मिता व जीवन की रक्षा हम नहीं कर पाये। इस घटना के विरोध में देशव्यापी प्रदर्शन के बाद आक्रोशित डॉक्टरों ने हड़ताल का आह्वान किया था। जो हमारी स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था के भीतर व्याप्त गंभीर संकट को ही उजागर कर गई। निस्संदेह, डॉक्टरों का आक्रोशित होना स्वाभाविक है, उनकी न्याय की मांग भी उचित है, लेकिन गंभीर रोगों से जूझ रहे मरीजों खासकर गरीब मरीजों पर इस हड़ताल का असर बेहद चिंताजनक है। पहले ही देश में स्वास्थ्य व्यवस्था अपर्याप्त सुविधाओं और अत्यधिक बोझ से ग्रस्त है। ऐसे में कमजोर वर्ग के मरीजों को इस विरोध का खमियाजा भुगतने को मजबूर करना न तो उचित ही है और न ही मानवीय है। इसमें दो राय नहीं कि चिकित्सा वर्ग की सुरक्षा व संरक्षा की मांग तार्किक है, जिसे नजरअंदाज नहीं ही किया जाना चाहिए। रात-दिन मुश्किल हालात में अपने दायित्वों का निर्वहन करने वाले डॉक्टरों को जिन संकटों से गुजरना पड़ता है, उसको लेकर चिंता होना वाजिब ही है। उचित होता यदि रोगियों की देखभाल की अनदेखी किये बिना संतुलित तरीके से समस्या का समाधान निकाला जाता। काले बैज पहनकर क्रमिक हड़ताल करना इसका एक प्रभावी विकल्प हो सकता था।
कहने का अभिप्राय है कि डॉक्टरों को अपनी चिंताओं को भी अभिव्यक्त करना चाहिए लेकिन आवश्यक चिकित्सा सेवाएं भी बाधित नहीं होनी चाहिए। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने पहले भी हड़तालों के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं को निर्बाध रूप से चलाया जाना सुनिश्चित करने पर जोर दिया था। साथ ही चिकित्सकों के रोगियों के प्रति कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी निभाने पर भी बल दिया गया था। सरकार को इस दिशा में तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। सरकार को चिकित्सा व्यवस्था के बुनियादी ढांचे में बदलाव करके पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए। जिससे डॉक्टरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही उनके असंतोष के मूल कारणों को भी संबोधित किया जा सके। उदाहरणत: रात की पाली में काम करने वाले डॉक्टरों को सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में पर्याप्त सुरक्षाकर्मी उपलब्ध कराये जाने चाहिए। ऐसे वक्त में जब गरीब व कमजोर वर्ग के मरीजों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना अपने आप में एक चुनौती है, अक्रोशित डॉक्टरों की हड़ताल उनकी पीड़ा को ही बढ़ाती है। यह एक हकीकत है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते देश की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार नहीं हो पा रहा है। जिसकी कीमत मरीजों को चुकानी पड़ रही है। इस संकट के समाधान के लिये केंद्र सरकार को तेजी से काम करना चाहिए। सरकार की कोशिश हो कि समाज के सबसे कमजोर वर्ग को नुकसान पहुंचाए बिना तत्काल न्याय दिया जाए। मरीजों की सेहत देखभाल के मौलिक अधिकारों की रक्षा के साथ डॉक्टरों की वाजिब चिंताओं को दूर करना सरकार का अनिवार्य नैतिक दायित्व है।

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