बच्चे की हर ज़िद पर न कहें हां
नीलम अरोड़ा
मार्केट प्लेस हो, मॉल हो या फिर कोई और दूसरी जगह। शॉपिंग करने के दौरान अकसर बच्चे अपने मां-बाप से जिद करते दिखते हैं। वह किसी ऐसी अनावश्यक चीज खरीदने की मांग अपने पैरेंट्स से करते हैं, जो उसके किसी इस्तेमाल की नहीं होती, बस उन्हें यूं ही अच्छी लग जाती है। कभी-कभी वह अपने लिए कोई ड्रेस, खिलौना या अपनी जरूरत की कोई ऐसी चीज खरीदने पर अड़ जाते हैं, जो उनके पैरेंट्स के पसंद की नहीं होती और वे इसे खरीदना नहीं चाहते। अपनी बात मनवाने के लिए बच्चे भीड़ की परवाह किए बगैर रोने-चिल्लाने लगते हैं, बुली हो जाते हैं। उस चीज को खरीदने के लिए अड़ जाते हैं। उनके इस व्यवहार से पैरेंट्स को बहुत शर्मिंदगी होती है व मजबूरी में उसकी बात मानकर वह चीज खरीदते हैं।
इनकार करें तो कायम भी रहें अभिभावक
अगर आपका बच्चा भी ऐसे ही करता है, तो उसकी हर जायज-नाजायज मांग को पूरी करने की गलती न करें। दूसरों के सामने उसका रोना-धोना देख दबाव में आकर उसकी जिद पूरी करना, हर मांग मान लेना, दरअसल बच्चे के विकास के लिए ही नकारात्मक साबित होती है। अगर एक बार जिद पूरी कर दी तो उसे अपनी बात मनवाने के लिए हर बार यही तरीका अपनाने का रास्ता मिल जाता है। अगर वह बात मनवाना चाह रहा है और आप उसे पहली बार मना कर देते हैं तो अपनी बात पर कायम रहें। जिद से पीछा छुड़ाने के लिए अपनी ना को हां में न बदलें।
इग्नोर करें
जिद करते समय बच्चे को समझाना बेकार होता है कि फलां चीज को खरीदने से आपको और उसे नुकसान है। उस वक्त उसे उसके हाल पर छोड़ दें, क्योंकि अकसर बच्चे ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए भी ऐसा करते हैं। इग्नोर करेंगे तो वह थोड़ी देर बाद अपनी मांग को भूल जाते हैं। इसके बाद मौका मिलने पर उसे उसका मनपसंद सामान न खरीदने की सही वजह प्यार से समझाएं। कई बार बच्चे इसे दिल पर ले लेते हैं और अपने पैरेंट्स को ही इमोशनली ब्लैकमेल करते हैं। आप उसकी बातों में न आएं। वहीं अगर वह अपने किसी सामान का नुकसान करते हैं और तुरंत नया खरीदने की मांग करते हैं तो उसे तुरंत नई चीज न दिलाएं ताकि उसे अपनी गलती का एहसास हो।
गलती का अहसास कराएं
उम्र के इस दौर में बच्चे को समझाना थोड़ा कठिन होता है। उनके सामने समझाने की बजाय वैसा व्यवहार करें, इसका असर बच्चों पर ज्यादा होता है। अगर वह कोई अनुशासन तोड़ते हैं तो सजा के तौरपर आप उसकी मनपसंद चीज अपने पास रख लें और उससे वायदा करने को कहें कि वह दोबारा ऐसी गलती नहीं करेंगे। उसे गलती का अहसास हो जाए, तभी उसका सामान दें। छोटी-छोटी चीजों की अहमियत समझाने के लिए उन्हें छोटी-छोटी सजाएं देना जरूरी होता है।
हस्तक्षेप न करें
सुधारने की कोशिश में परिवार के बाकी सदस्यों का रिएक्शन काफी मायने रखता है। परिवार में सभी को एकमत होना चाहिए कि अगर दादा-दादी, नाना-नानी, मम्मी पापा या कोई और सदस्य बच्चे को समझा रहा हो तो बच्चे के प्रति नर्मी का रुख अख्तियार करने के लिए बीच में न बोलें। क्योंकि इस तरह बच्चा भी कन्फ्यूज हो जाता है। वहीं बच्चे को मैसेज जाता है कि जिद करके पैरेंट्स से कोई भी बात मनवायी जा सकती है।
सुधारें खुद की आदतें भी
बच्चों को अनुशासित बनाने के लिए उनकी इच्छाओं पर नियंत्रण करना भी जरूरी है। उनकी अच्छी या बुरी आदतों पर परिवार के माहौल का बहुत असर होता है। अगर आपका बच्चा अपनी किताबों को अच्छी तरीके से संभालकर नहीं रखता है, ज्यादा स्टेशनरी खरीदता है या कॉपियों के खाली पन्नों का इस्तेमाल सही से नहीं करता है, तो गौर करें कि कहीं पैरेंट्स में भी तो इस तरह की आदतें नहीं हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप भी चीजों को लापरवाही से बरतते हैं? अगर ऐसा है तो सबसे पहले तो पैरेंट्स के लिए अपनी आदतों को ही सुधारना जरूरी है।
चीजों की सार-संभाल
अगर बच्चे की कोई चीज या खिलौना टूट जाता है तो उसे रिपेयर कराने की सोचें ताकि उसे चीजों की अहमियत पता चले। अपनी चीजें स्वयं संभालकर रखें और उनमें शुरू से चीजों को संभालकर रखने की आदतें विकसित करें। उसे यह अहसास न दिलाएं कि आपके पास बहुत पैसे हैं। इससे वह कभी पैसे का महत्व ही नहीं समझ पायेगा।
- इ.रि.सें.