दीपावली
05:57 AM Oct 31, 2024 IST
अंजुरी में भर उजियारे
को सहेज तेज,
रोज शाम।
बुझे हुए दीपकों को
फिर से जलाइये।
छूट गये रास्ते में,
भीड़ में बिछड़ गये,
ख़ुशियों के पल
देहरी तक लाइये।
शीत की जो प्रीत
इठलाने लगी बादलों में,
इक दीया प्रेम के
प्रतीक का जलाइये, जो
अग्नि विशेष,
महकती कस्तूरी बीच,
सूनी लगे चांदनी की मांग
चमकाइये।
शेष उजियारा सारा,
जग में बिखेरिये,
और इक दीया
बस विश्वास का जलाइये।
देह और मन दोनों,
झूम उठे, हर्षित हो।
ऐसा इक उजियारा
दुख-तकलीफ़ से
थके हुए,जीवन में,
उन्नति का
एक नया दीपक जलाइये।
अंजुरी में भर
उजियारे को सहेज।
ख़ुशियों का नया
युग फिर से लाइये।
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राजेंद्र कुमार कनोजिया
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