सिनेमा के पर्दे पर सुरों से सजी दिवाली
हेमंत पाल
त्योहारों का सिनेमा से लम्बा जुड़ाव रहा है। दर्शकों ने देखा है कि फिल्म के कथानक में सबसे ज्यादा होली, रक्षाबंधन और करवा चौथ को फिल्माया गया। लेकिन, सबसे बड़े त्योहार दिवाली को अपेक्षाकृत बहुत कम दिखाया। मूक फिल्मों के ज़माने में जब त्योहारों पर केंद्रित फ़िल्में ज्यादा बनती थी, उस समय जरूर दिवाली पर कुछ फ़िल्में बनी। लेकिन, धीरे-धीरे यह चलन घटता गया। आज भी दिवाली के प्रसंगों को पहले की तरह नहीं दर्शाया जाता। साल-दो साल में कभी कोई फिल्म आ जाती है, जिसमें दिवाली के कुछ दृश्य या कोई किसी प्रसंगवश गीत दिखाई दे जाता है। एक वक्त दिवाली वाली फिल्मों की सफलता सुनिश्चित रहती थी। किंतु, हाल के सालों में पर्दे पर दिवाली कम ही दिखाई देने लगी।
मान्यता के मुकाबले फिल्मांकन कम
दिवाली को पर्दे पर उसकी भव्यता और मान्यता के मुताबिक कभी फिल्माया ही नहीं गया। कथानकों में होली, गणेश चतुर्थी और रक्षा बंधन जैसी अहमियत दिवाली को कभी नहीं मिली। कुछ फिल्मों में यह त्योहार खुशियों के प्रतीक की तरह दर्शाया गया, लेकिन वो भी एक गीत या किसी प्रसंग तक सीमित रहा। ये कभी कथानक का अहम हिस्सा नहीं रहा। हाल के सालों में करण जौहर ने ‘कभी खुशी कभी गम’ में जरूर दिवाली को भव्य रूप में पेश किया था। फिल्म ‘मुझे कुछ कहना है’ में तो दिवाली पर्व को अलग ही अंदाज में फिल्माया गया था।
शुरुआती दौर में
1940 में आई जयंत देसाई की फिल्म ‘दिवाली’ इस त्योहार से जुड़कर बनी पहली फिल्म कही जाती थी। इसके बाद 1955 में गजानन जागीरदार की फिल्म ‘घर घर में दिवाली’ आई। सालभर बाद 1956 में दीपक आशा की ‘दिवाली की रात’ में भी दिवाली को कथानक बनाया गया था। साल 1961 में आई राज कपूर और वैजयंती माला की फिल्म ‘नजराना’ भी उन फिल्मों में थी, जिनका कथानक दिवाली के आसपास था। साल 1962 में आई ‘हरियाली और रास्ता’ में दिवाली के दृश्य नायक और नायिका के विरह को दर्शाते हैं। दिलीप कुमार और वैजयंती माला की फिल्म ‘पैगाम’ और ‘लीडर’ में भी दिवाली के माध्यम से किरदारों को जोड़ने का प्रयास किया था।
कहानी में मोड़ लाने को जोड़े प्रसंग
इसके बाद बनने वाली फिल्मों में दिवाली के प्रसंग को कहानी में मोड़ लाने के लिए जोड़ा तो गया, लेकिन फिल्म का कथानक दिवाली पर केंद्रित नहीं रहा। ‘यादों की बारात’ और ‘जंजीर’ भी उन फिल्मों में हैं, जिनकी शुरुआत दिवाली के दिन परिवार पर विलेन के हमले से होती है। आतिशबाजी की आवाजों के बीच गोलियां चलने और पूरे परिवार के खत्म हो जाने वाले दृश्य को अमिताभ बच्चन को सितारा बनाने वाली फिल्म ‘जंजीर’ में प्रभावशाली ढंग से फिल्माया गया था।
‘वास्तव’ का यादगार सीन
फिल्म ‘वास्तव’ (1999) में भी दिवाली का यादगार सीन है। चेतन आनंद की फिल्म ‘हकीकत’ (1965) में भी दिवाली का उल्लेख है। साल 1973 की फिल्म ‘जुगनू’ में दिवाली पर एक गीत है, जिसके बोल थे ‘दीप दिवाली के झूठे, रात जले सुबह टूटे, छोटे-छोटे नन्हे-मुन्ने, प्यारे-प्यारे रे, अच्छे बच्चे जग उजियारे रे!’
पृष्ठभूमि पर रचे गए गीत
दिवाली की पृष्ठभूमि पर रचे गए कुछ गानों को भी जबरदस्त लोकप्रियता मिली। फिल्म ‘रतन’(1944) के गीत ‘आई दिवाली दीपक संग नाचे पतंगा’ की पृष्ठभूमि में नौशाद ने विरह-भाव की रचना की थी। मास्टर गुलाम हैदर ने फिल्म ‘खजांची’(1941) के गीत ‘दिवाली फिर आ गई सजनी’ में पंजाबी टप्पे का आकर्षक प्रयोग किया था। साल 1961 की फिल्म ‘नजराना’ के गीत को लता मंगेशकर ने आवाज दी थी, जो दिवाली की रौनक को दर्शाता है। ‘शिरडी के साईं बाबा’ का गीत ‘दीपावली मनाई सुहानी’ आज भी पसंद किया जाने वाला गीत है।
‘दीये जलते हैं फूल खिलते हैं’
1951 की फिल्म ‘स्टेज’ का गाना जगमगाती दिवाली की रात आ गई, अपने दौर में काफी हिट हुआ था, जिसे आशा भोंसले ने आवाज दी थी। साल 1959 में आई ‘पैग़ाम’ में मोहम्मद रफ़ी का गाया और जॉनी वॉकर पर फिल्माया दिवाली गीत दरअसल कॉमेडी गाना था। ‘नमक हराम’ का राजेश खन्ना और अमिताभ पर फिल्माया गया गीत ‘दीये जलते हैं फूल खिलते हैं’ अपने फिल्मांकन के लिए दर्शकों को आज भी याद है। हम आपके हैं कौन, एक रिश्ता : द बॉन्ड ऑफ लव और ‘ख्वाहिश’ आदि में भी दिवाली के दृश्य तो दिखाए गए, लेकिन वे कहीं से भी कहानी का हिस्सा नहीं लगते! फिल्मों में भले ही दिवाली गीतों की भरमार रही हो, पर आज भी ऐसी किसी फिल्म का इंतजार है जिसके कथानक में दिवाली हो।